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सौहार्द : 30 सालों से पताका बना रहा है इस्माइल का परिवार !

महावीरी झंडा बना कर दे रहे है दो धर्म के बीच आपसी प्रेम का संदेश

वो लड़ते और लड़ाते है मंदिर और मस्जिद के वास्ते, वो हर चीज में सियासत करते हैं ! हम सजदा खुदा की करके श्री राम लिखा भगवा सिते हैं !दो रोटी मिलती अगर ईमानदारी के काम से, हम उसी को खुदा मानकर इबादत करते हैं।

 दो धर्म के बीच ये कुछ चंद लाइन को इस्माइल और उसका पूरा परिवार चरितार्थ कर रहा है। धार्मिक सौहार्द में विश्वास रखने वाले  शहर के असनबनी मुहल्ले  के इस्माइल  हर साल रामनवमी के अवसर पर सिर्फ महावीरी पताका बनाने के लिए पूरा परिवार एक माह पहले ही तैयारी करता है।

 

 

इस्माइल और उसका पूरा परिवार पिछले 30 वर्षों से रामनवमी के मौके पर महावीरी झंडा बनाकर दो धर्म के बीच आपसी प्रेम का परिचय दे रहा है।  इनके झंडों के खरीदार पहले ही मिल जाते हैं और पेमेंट भी समय पर हो जाता है। यूं तो हिंदू मुस्लिम सौहार्द की ढेरों उदाहरण हैं। लेकिन असनबनी मुहल्ले का यह परिवार की दूसरे धर्म के बीच का संबंध थोड़ा अलग है।  इतना ही नहीं इस काम में  इस्माइल के रिश्तेदार भी शामिल होकर एकता की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। इस्माइल बताते है कि पताका बेचने का सिलसिला 30 वर्ष पूर्व गोड्डा में रह कर शुरू किया था। वे मारवाड़ी के दुकान पर कपड़ा सिलने का काम करते थे।

एक बार रामनवमी के मौके पर  दुकानदार के मालिक राजेश बजाज ने कहा कि वह पताका सिलने का काम क्यों नहीं करते हो? इस त्योवहार में काफी कमा भी सकते हो। उस वक्त उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। जिसके बाद उसने पताका सिलना शुरू किया। उसके बाद से वे प्रत्येक वर्ष महावीरी झंडा बनाते है।

दरअसल रामनवमी के मौके पर शहर के अलग-अलग चौराहों पर इन झंडों को लगाया जाता है। इस्माइल का कहना है कि त्योहार के दौरान उन्हें काम भी मिलता है और इस बात की खुशी भी होती है कि वे धार्मिक आयोजन में अपना योगदान दे रहे हैं। वे यहां पांच से 250 रुपए तक के महावीरी झंडे बनाते हैं। वे इस काम को काफी लगन से करते हैं।

 

पताका में डिजाइन करतीं है महिलाएं :

पताका बनाने में घर की महिलाएं भी कहीं से कम नहीं है। पूरा परिवार इस कार्य में लगा रहता है। पताका में डिजाइन करने का काम घर की महिलाएं करतीं है। इस्माइल की पोतहू रेशमा प्रवीण बताती है कि घर की महिलाएं पताका में लेस व चमकी लगाने का काम रकती है। वे भी सिलाई मशीन पर बैठक कर इसे पताका के साथ जोड़ती है।

 

 

रामवनमी के एम माह पूर्व ही घर में पताका बनाने का कार्य शुरू हो जाता है। शहर ही नहीं गांव के दूर दराज से भी पहले ही ऑर्डर मिल जाता है। झंडे तैयार करने के लिए एक महीने पहले से ही परिवार के सभी सदस्य तैयारी में जुट जाते हैं। झंडा बनाने के कपड़े बंगाल से मंगाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि ऑर्डर के अनुसार भी झंडे बड़े-छोटे बनाते हैं।

इशारों में उन्होंने बताया कि कोई रंग और कोई नाम खराब नही होता है। जिसको लिखने से दो वक्त की रोटी नसीब हो जाये वही शब्द बढ़िया है।

मैं हूँ गोड्डा से अभिषेक राज की ख़ास रिपोर्ट 
2018-03-24

About Raghav Mishra

Raghav Mishra is a freelance journalist, has established himself as a young journalist in the field of journalism, Born in 1988 Raghav Mishra is a resident of Latouna village in Godda district of Jharkhand state, he started maihugodda digital media in 2012. Since its inception, since then, maihugodda has been continuously touching new heights everyday. Raghav Mishra's early studies were written in Godda district. He liked to engage with technology since childhood and kept exploring new things everyday. As of today, Raghav Mishra is also working as a technical expert on several big digital news channels. He loves to catch up on his technology and do creative work daily. Raghav Mishra is the founder of "maihugodda" digital news channel.

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