अभिषेक राज/कहने को तो सदर अस्पताल में एसएनसीयू की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन यहां भर्ती होने वाले नवजात डॉक्टरों की डाक्टरों की कमी जैसी समस्या से अभी भी जूझते है। आलम यह कि यहां भर्ती नवजातों की इलाज की जिम्मेदारी इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर की ही है। ऐसे में यहां भर्ती होने वाले नवजातों को कई बार विकट स्थिति से गुजरना पड़ता है। एनआइसीयू के खुले हुए दो साल बीतने के बाद भी यहां संसाधनों की कमी मरीजों पर भारी पड़ रही है। जबकि नियमों के अनुसार एनआइसीयू में विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती किया जाना अनिवार्य है। लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सक की कौन कहें, यहां तो एसएनसीयू में तैनात चिकित्सक के भरोसे रहना पड़ता है। यह स्थिति तब है, जबकि सरकार ने एनआइसीयू की स्थिति में सुधार के लिए कई बार दिशानिर्देश जारी किया है। लेकिन जिला स्तर पर चिकित्सकों की कमी का हवाला देकर स्वास्थ्य महकमा ने अभी तक सरकार के निर्देश का पालन नहीं किया। ऐसे में यहां एनआइसीयू में भर्ती होने वाले मरीज को अस्पताल से छुट्टी तक मिलने तक एएनएम की देखरेख में रहना पड़ता है। यह बात अलग है कि जरुरत पड़ने पर इमरजेंसी में तैनात चिकित्सक यहां आकर मरीज की आकर जांच करते हैं।
सदर अस्पताल की लचर स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां नेत्र रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर को इमरजेंसी ड्यूटी में तैनात कर दिया जाता है। इनकी तैनाती करने वाले अधिकारी शायद यह बात भूल जाते हैं कि इमरजेंसी में हादसे के हार्ट व लीवर जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोग पहुंचते हैं। ऐसे में यहां विशेषज्ञ डाक्टरों की जरूरत होती है।
रेफर करने पड़ते है मरीज :
सदर अस्पताल के एनआइसीयू में विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी के कारण गंभीर रूप से बीमार नवजातों को रेफर कर दिया जाता है। यही कारण है कि विगत जुलाई माह में कुल 59 नवजातों को भर्ती किया गया। लेकिन इसमें 15 से 20 मरीजों को रेफर कर दिया गया। इमरजेंसी में डॉक्टरों की कमी की समस्या एक साल से भी अधिक अवधि से बनी हुई है। बावजूद इसके स्थिति में अबतक सुधार नहीं हो सका है।
क्या कहते हैं सिविल सर्जन
विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। इसके बावजूद आइसीयू में बेहतर सेवा दिया जा रहा है। प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों को आइसीयू में तैनात किया गया है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण कई बार मरीज की गंभीर हालत को देखते हुए रेफर करना पड़ता है।
-डा आरडी पासवान, सिविल सर्जन, गोड्डा