पोडै़याहाट /पोडै़याहाट प्रखंड के डिबरी नदी पर प्रस्तावित सुगाथन डेम को लेकर फिर से एक बार चर्चा गर्म हो गई है। रविवार को उपायुक्त एवं अनुमंडाधिकारी के निर्देश पर बैठक की गई। प्रभावित गांव सुगाथान, गौरीपुर, राजदाहा, काठीबाड़ी, गुणघासा सहित दर्जनों गांव के तकरीबन हजार की संख्या में रैयत जमा हुए थे। रैयतों ने पटवारी हांसदा ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में इस चर्चित सुगाथन डैम को सदा के लिए पटाक्षेप करने का प्रस्ताव पास किया ।
प्रस्ताव में कहा कि इस डेम का यहां बनाने का कोई औचित्य नहीं है। इससे काफी संख्या में कई गांव के लोग विस्थापित होंगे । सभी विस्थापित गरीब एवं आदिवासी हैं । इसके साथ ही यहां पर खेती योग्य काफी भूमि है और जनसंख्या का घनत्व भी ज्यादा है । इसलिए यहां पर किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। ग्रामीणों ने पंरपरागत हथियार के साथ विरोध प्रदर्शन किया। बैठक में मुख्य रूप से हरियाली पंचायत की मुखिया मेरी हांसदा, अमवार पंचायत की मुखिया मेरी बेसरा ,सुशील टूडू ,अंचल निरीक्षक केशव प्रसाद, घनश्याम यादव सहित काफी संख्या में रैयत उपस्थित थे।
सुगाथान डैम के विरोध में ग्रामीण काफी मुखर रहे हैं
प्रस्तावित सुगाथान डैम का सर्वे करने आई टीम को कई बार ग्रामीणों ने बंधक बनाकर विरोध में पोडै़याहाट गोड्डा मुख्य मार्ग को सड़क जाम किया था। बंधकों को छुड़ाने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी । कई बार डीपीआर तैयार करने को लेकर सर्वे टीम यहां का निरीक्षण कर चुकी है लेकिन हर बार ग्रामीणों के विरोध के कारण सर्वेक्षण टीम को मुंह की खानी पड़ी है ।
1967 -68 से है प्रस्तावित :
किसानों के हित में सुगाथन नदी पर डैम बने इसको लेकर 1967 – 68 में ही प्रस्ताव दिया गया था लेकिन 1971 में जब बक्सरा गांव के जगदीश नारायण मंडल सांसद बनने पर इस नदी पर डैम बनाने को लेकर गंभीरता से विचार किया गया। लेकिन उस समय के नेता शिबू सोरेन और सूरज मंडल के विरोध के कारण यह योजना ठप हो गया। उस समय का जो सर्वे किया गया था उसमें तकरीबन 22 गांव विस्थापित हो सकता था। क्योंकि वह बहुत बड़ा डैम का प्रस्ताव था।
नहीं होगा एक भी घर विस्थापित :
सांसद निशिकांत दुबे जब पहली बार जीते तो उन्होंने सुगाथान डैम बनाने के लिए सरकार के पास प्रस्ताव भेजा। सूत्रों की मानें तो इस बार डैम की ऊंचाई इतना कम कर दिया गया है कि इससे एक भी घर डूबना नहीं है किसी को विस्थापित नहीं होना है। इतना ही नहीं जहां डैम बनना है वहां सरकार की भी काफी जमीन पड़ी हुई है। इस संबंध में कई गांव के आदिवासी नेताओं को भी मुख्य अभियंता से मिलावाकर उन्हें बताया गया था कि इसकी ऊंचाई कम होगी एक भी घर विस्थापित नहीं होगी।
सांसद निशिकांत दूबे ने सार्वजनिक तौर पर भी अपने भाषण में सुगाथन डैम का जिक्र करते हुए कहा है कि जब किसी आदिवासी का घर विस्थापित नहीं होना है तब फिर इसका विरोध क्यों । सिर्फ राजनीति करने के लिए यह विरोध है। उन्होंने यहां तक कहा था कि जरूरत पड़ी तो वे उच्च न्यायालय के शरण लेने में पीछे नहीं हटेंगे।
किसानों के लिए वरदान होगा सुगाथान डैम :
क्षेत्र के लोगों का मानना है कि यदि सुगाथान डैम बन जाता है तो प्रखंड के तकरीबन 42 गांव को इससे पटवन होगा और तीन फसल आराम से हो जाएगा। जिस प्रकार त्रिवेणी बीयर अभी पोडै़याहाट पश्चिमी के लिए लाइफ लाइन है उसी प्रकार सुगाथन डैम बनने से 42 गांव का खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा।
राजनीति या सच में किसानों की चिंता ?
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि सुगाथान डैम पर सिर्फ राजनीति हो रही है और कुछ नहीं । आम राय बनाने का प्रयास नहीं किया जा रहा है । ग्रामीणों को गुमराह करके नेता अपना रोटी सेक रहे हैं। जब छोटा डैम बनना है और किसी का घर विस्थापित नहीं होना है तो फिर विरोध किस बात का। सरकार को चाहिए कि पदाधिकारी, ग्रामीण नेताओं और विभाग के अभियंता के साथ बैठक कर सारी स्थिति को स्पष्ट कर आम सहमति बनानी चाहिए। आसपास के ग्रामीणों को भी कोई कष्ट ना हो और यहां के किसान भी सालों भर खुशहाल रहे।
कहीं सरकारी जमीन हड़पने का विरोध तो नहीं :
पोडै़याहाट के कई बूढ़े बुजुर्गों का कहना है कि नदी के किनारे सैकड़ों एकड़ जमीन सरकारी है जिसे प्रधान ने या तो बंदोबस्ती कर लिया या ग्रामीणों ने अपने दखल में कर लिया है। आज उस पर वह या तो बसोबास कर रहा है या तो फिर अपना खेती में उपयोग कर रहा है। यदि सुगाथन डैम बनता है तो ऐसे लोगों को न मुआवजा मिलेगा और जमीन भी छोड़ना पड़ेगा । दरअसल यह सारा चाल सरकारी जमीन को हड़पने की प्रयास हो सकता है। लोगों ने सुझाव दिया है कि पहले सरकारी जमीन की माप हो और सरकार उसे अपने कब्जे में ले।उसके बाद देखे कि कितना जमीन लोगों का लेना है तब तस्वीर बहुत कुछ साफ हो जाएगी।
सुगाथन डैम निर्माण के समर्थन में मोर्चा निर्माण की जरूरत :
कहीं गांव के किसानों ने बताया कि यदि डैम छोटा बने और किसी का विस्थापन न हो और ना किसी का जमीन जाता हो तो इस डैम का विरोध किसी भी तरह से उचित नहीं होता है। इसको लेकर आज तक इसके निर्माण के समर्थन में ग्रामीण एकजुट नहीं हो पाए हैं जबकि बताया यह जा रहा है कि 42 गांव को इससे लाभ मिलेगा। टकराव से नहीं बल्कि आपसी सलाह मशविरा एवं सहयोग से रास्ता निकाला जाना चाहिए ऐसा कई गांव के लोगों का मानना है। जिस प्रकार त्रिवेणी बियर के आसपास के खेतों में सदैव हरियाली रहता है वैसे ही इस डैम से निकलने वाले बियर से भी हजारों एकड़ जमीन लहलहाने लगेगी।