बच्चे को जन्म देने के लिए अस्पताल में भटकती रही आदिवासी महिला,लापरवाही में गई बच्चे की जान । – मैं हूँ गोड्डा- maihugodda.com
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बच्चे को जन्म देने के लिए अस्पताल में भटकती रही आदिवासी महिला,लापरवाही में गई बच्चे की जान ।

फिर एक बार सदर अस्पताल में मानवता शर्मसार होती नजर आई .बेटी की जान बचाने को दर दर भटकते नजर आई आदिवासी महिला .कभी इसी अस्पताल में जिला उपायुक्त का हुआ था प्रसव ।

घटना की शुरुआत रविवार से ही होती है जब बिटीमय टुडू नामक आदिवासी महिला जो प्रसव पीड़ा से कराहती हुई सुन्दर पहाड़ी से रेफर कर सदर अस्पताल लायी गयी थी .

प्रसूता की माँ के अनुसार उसकी बेटी के पेट में बच्चा उल्टा था
और उसका हाथ बाहर निकल गया था .रविवार को रात भर,सोमवार को दिन भर सदर अस्पताल में नार्मल डिलीवरी कराने की कवायद होती रही जो हो न सका .

 

और अंततः बच्चे ने माँ के पेट में ही दम तोड़ दिया मगर सदर अस्पताल कर्मियों की कारगुजारी देखिये मंगलवार की शाम को प्रसूता की माँ को ये सुचना दी जाती है कि बच्चा मर गया ,मगर शाम के 6 बजे तक महिला का ऑपरेशन नही किया जा सका .न तो वहाँ कोई महिला चिकित्सक उपस्थित थी न ही अस्पताल मैंनेजर .हमारे संवादाता द्वारा जब सीवील सर्जन को जानकारी दी गयी तब अस्पताल मैंनेजर भागी दौड़ी आई .पूछने पर कहा ये तो डॉक्टर ही बता सकती हैं .

सदर अस्पताल में बिलखते परिजन
सदर अस्पताल में बिलखते परिजन

गौरतलब है कि ये वही सदर अस्पताल है जहां कुछ महीने पहले गोड्डा की उपायुक्त किरण कुमारी पासी अपना प्रसव कराई थी.उस वक्त यह संदेश अन्तराष्ट्रीय मीडिया छाया हुआ था कि गोड्डा सदर अस्पताल में प्रसव की बेहतर सुविधा हुई है सूबे की महिलाओं को अब सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधा मिलने की उम्मीद जताई गई थी और इसको लेकर  तात्कालिक गोड्डा उपायुक्त की जमकर तारीफ हुई थी ।

लेकिन सुस्त हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था का एक उदाहरण यह भी है कि उसी सदर अस्पताल में एक गरीब महिला की तबतक ऑपरेशन न हो सका जबतक उसके पेट मे बच्चा मर न गया .और तो और मरने के बाद भी 12 घण्टे तक ऑपरेशन नही हुआ ।

क्या सदर अस्पताल की व्यवस्था इतनी असंवेदनशील हो चुकी है कि एक मासूम जो नई दूनियां देखने की उम्मीद में अपनी मां के गर्भ से बाहर निकलने की आस लगाए बैठा था उसे सरकारी तंत्र की ऐसी व्यवस्था ने दम तुड़वा दिया जो कभी विकास का दंभ भर रही थी ।

सवाल :

12 घंटे से अधिक समय से मृत बच्चा माँ के पेट में पड़ा हुआ है ,अगर इन्फेक्शन फैलती है तो जच्चे की जान की जिम्मेदारी कौन लेता ?
सवाल ये भी कि रविवार की रात में ही जब स्थिति सही नहीं थी तो क्यों नहीं ऑपरेशन कर बच्चे को निकाला गया शायद बच्चा आज जिन्दा होता ?

जिस सरकारी तंत्र पर भरोषा कर एक माँ अपने बच्चे को जन्म देने के लिए सदर अस्पताल आती है और लापरवाही के कारण अपना बच्चा खो देती है तो उस बच्चे की मौत का जिम्मेवार कौन ?

क्या ऐसी ही लापरवाही गोड्डा उपायुक्त किरण कुमारी पासी के समय भी किया गया था ?

अस्पताल में परिजन
अस्पताल में परिजन

बरहाल सवाल अनेकों हैं लेकिन घुन लग चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ता है ।

हलांकि द फॉलोअप को दिए एक इंटरव्यू में सूबे के स्वास्थ्य व्यवस्था और स्वास्थ्य मंत्री पर तो खुद सरकार के विधायक इरफान अंसारी ने सवाल उठा दिया है .उन्होंने कहा है कि जहां MBBS .MD रहते हुए मैट्रिक पास को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया जाय तो क्या कहियेगा ?

एक तरफ इसी सदर अस्पताल की तारीफ जमकर होती है जब उपायुक्त का प्रसव होता है तमाम अस्पताल कर्मी के भी अपने योगदान की सराहना हुई थी लेकिन जब आज प्रसूता सहित पूरे परिवार ने सदर अस्पताल की लापरवाही पर सवाल उठाई तो उसके सवाल का जवाब देने के लिए कोई उपलब्ध नही था ।

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