विधानसभा अध्यक्ष और राज्य के मंत्री के निर्देश के बावजूद नही हो पाया शांति के इलाज की व्यवस्था, दिनों दिन बढ़ता जा रहा बीमारी ।
गोड्डा / सुंदरपहाड़ी प्रखंड क्षेत्र की रहने वाली आदिवासी लड़की शांति बास्की कई महीनों से गंभीर बीमारी से जूझ रही है ,शांति को ब्रेस्ट में कई गांठ हैं जिसे डॉक्टरों ने बेहतर इलाज के लिए बाहर रेफर किया है ।
हाल ही में शांति के इलाज के लिए ट्विटर के माध्यम से गुहार लगाई गई थी जिसपर संज्ञान लेते हुए मंत्री चंपई सोरेन ने एवं विधानसभा अध्यक्ष ने उपायुक्त गोड्डा को निर्देश दिया था कि शांति बेटी की इलाज के लिए समुचित व्यवस्था कर सूचित करें ,लेकिन विधानसभा अध्यक्ष और मंत्री के निर्देश के बावजूद शांति को बेहतर इलाज के लिए अबतक नही भेजा जा सका है ।
हालांकि ट्वीट करने के बाद जिला प्रशासन ने फिर से शांति की जांच करवाई , सिविल सर्जन के अनुसार शांति के बेहतर इलाज की व्यवस्था गोड्डा में नही है इसलिए उसे रेफर किया गया है जिसकी सूचना उपायुक्त कार्यालय को भी दे दिया गया है ,बावजूद शांति बास्की अबतक इलाज के अभाव में रोज दर्द झेल रही है ।शांति बताती है कि उसकी बीमारी रोज बढ़ती जा रही है और प्रशासन के निष्क्रिय रवैये के कारण वो अपना इलाज कराने में सक्षम नही है ।
गौरतलब बात यह है कि शांति बास्की अनाथ आदिवासी बेटी है जो मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र सुंदरपहाड़ी प्रखंड क्षेत्र के सुंदरमोड़ गांव की रहने वाली है , शांति के परिवार से उसका बड़ा भाई मोहन का कोरोना काल के समय भूख के कारण मौत हो गई ,जिसके बाद शांति अपनी बड़ी बहन परमिला के साथ कस्तूरबा में रहकर पढ़ाई कर रही ,लेकिन बीमार होने के बाद शांति ने फोन कर समाजसेविका बंदना दुबे से सहारा मांगा और उनके पास चली आई ,बंदना दुबे ने शांति का प्राथमिक इलाज और जांच करवाई जिसके बाद डॉक्टरों ने जांचोपरांत शांति को बाहर रेफर कर दिया है ।
अब शांति के पास न पैसा है न उसके कोई अभिवावक जो उसका इलाज करा सके ,इसलिए शांति ने मुख्यमंत्री से अपने इलाज की गुहार लगाई थी ,खबर प्रकाशित होने के बाद शांति के लिए विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो और मंत्री चंपई सोरेन ने ट्विटर पर ट्वीट करके गोड्डा उपायुक्त को इलाज की समुचित व्यवस्था करने को कहा था ,लेकिन मंत्री और अध्यक्ष के निर्देष के बावजूद शांति के इलाज का प्रबंध नही हो पाया है ।हां शांति के इलाज के लिए जिला प्रशासन ने खानापूर्ति जरुर किया है ,पुनः जांच करवाया गया ,डॉक्टरों ने फिर से शांति को देखा रिपोर्ट्स चेक किये फिर शांति को रेफर कर दिया है ।
अब सवाल है कि क्या एक आदिवासी बच्ची अपने इलाज के लिए ऐसे ही भटकते रहेगी ?
क्या अनाथ बच्ची का सहारा बनने के लिए जिला प्रशासन के पास कोई इंतेजमात नही हैं ?क्या अपने भाई की तरह शांति भी सिस्टम का शिकार हो जाएगी ? ऐसे कई सवाल है जो सिर्फ लोगों को ही नही बल्कि यह सवाल शांति के मन मे भी कचोटता है ।
शांति बताती है कि मेरे भैया की मौत सिस्टम के लापरवाही के कारण ही हुई थी ,उसे प्रशासन ने नजरअंदाज कर दिया था,आज मैं बीमार हूं ,मेरी पढ़ाई भी रुकी हुई है ,मेरी बहन मेरे साथ है ,हम दोनों बहन अनाथ है कौन बनेगा मेरा सहारा ,क्या मैं इलाज के अभाव में मर जाऊंगी ?शांति का यह सवाल लाजमी है ,क्योंकि शांति ने प्रशासन की लापरवाही से अपना भैया को खोया है ।
इधर हाल ही में मुख्यमंत्री ने घोषणा किया है कि मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी में मिलने वाली सहयोग राशि दोगुनी कर दी गई है तो क्या सिस्टम इस आधार पर भी उसका इलाज नही करवा सकती है ?शांति का इलाज संभव है अगर उसे समय रहते किसी बड़े अस्पताल में दिखाया जाय लेकिन लापरवाह सिस्टम अबतक सिर्फ खानापूर्ति करने में लगी है ।
मुख्यमंत्री के क्षेत्र की रहने वाली एक आदिवासी अनाथ बच्ची पिछले कई दिनों से अपने इलाज की गुहार लगा रही है और पूरा सिस्टम सिर्फ जांच कर खानापूर्ति कर रही है ,ऐसे में अगर शांति को कुछ होता है तो उसका जिम्मेवार कौन होगा ?
शांति के लिए सहारा बनी समाजसेविका बंदना दुबे कहती है कि शांति के इलाज के लिए जिस तरह से प्रशासन का रवैया उदासीन रहा है इससे साफ जाहिर होता है कि प्रशासन को एक अनाथ बेटी की जिंदगी से कोई मतलब नही है ,प्रशासन सिर्फ यही कर सकती है कि जब कोई आगे आकर किसी की मदद करे तो फिर कानून का पाठ पढ़ाकर यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती है कि यह बाल संरक्षण के अधीन है ,इसलिए एक ओर न तो प्रशासन शांति के लिए ध्यान देती है और दूसरी ओर कानून का भय दिखाकर एक बेसहारे को मरने के लिए मजबूर करती है ,यही जिला प्रशासन का काम बचा है ।अब शांति किसके पास जाएगी यह प्रशासन पहले तय करे ।