परमानंद मिश्र,बरुन/सरकार जनोपयोगी योजनाओं को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए कृत संकल्पित हैं और विभिन्न प्रचार माध्यमों से जनता के बीच योजनाओं की उपलब्धि गिनाते नहीं थक रहे हैं ।सरकार आपके द्वार ,जनता दरबार आदि कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं । लेकिन इन योजनाओं का लाभ अंतिम व्यक्ति तक कितना पहुंच पाता है । इसकी समीक्षा में पूरी व्यवस्था फेल है चाहे वह 20 सूत्री की बैठक, चाहे जनता दरबार या फिर प्रखंड में योजनाओं की समीक्षात्मक बैठक नतीजा सिफर ही रहता है। समाज में आज भी अंतिम व्यक्ति ऐसे हैं जिनके ना पेट में दाना है, ना आशियाना का ठिकाना है। बस है तो सिर्फ किस्मत का रोना है। इनके पास व्यवस्था के चक्रव्यूह में फंस कर कराहने की आवाज के सिवा कुछ भी नहीं बचा है। इनकी कराहने की आवाज ना तो सरकार तक और ना ही जनप्रतिनिधि तक पहुंच पाती है।
केस स्टडी 1
पथरगामा प्रखंड के सोनार चक पंचायत के अंबा संग्राम गांव के कंगाली रविदास। इन्हे आशियाने के नाम पर खजूर के पत्ते का दीवार के बीच टूटा फुटा कच्चा मकान और उस पर फुस की हल्की छावनी उस झोपड़ी में ना तो बरसात का पानी रुक पाता है । बड़ी मुश्किल से सर छुपा पाता है। न खेती ना बाड़ी और ना ही राशन कार्ड है । वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलता। लाचारी बस भीख मांग कर गुजारा करता है। ग्रामीणों की माने तो कभी-कभी कई दिन तक इनका फाकाकशी में गुजर जाता है। सरकारी कार्यालयों में के चक्कर लगाते लगाते ,हर किसी के आगे हाथ जोड़ते जोड़ते घर तो दूर दीवार तक नसीब नहीं हुआ है।
केस स्टडी 2
पोड़ैयाहाट प्रखंड के बांझी पंचायत के बांझी गांव के कमला मंडल बैलगाड़ी में मजदूरी करके अपने विकलांग बेटे और वृद्ध पत्नी का भरण पोषण करने को मजबूर है । घर भी जर्जर है कब कौन सा दीवार ढह जाए और वह दीवाल कब कब्र बन जाए कहना मुश्किल है । ना तो प्रधानमंत्री आवास मिला है ना ही राशन कार्ड है और ना ही वृद्धावस्था पेंशन मिला है। पत्नी का वृद्धावस्था पेंशन मंजूर हुआ है बस उसी आश्रय के सहारे जीवन किसी तरह चल रहा है। कमला मंडल बताते हैं कि हम हर जगह हर प्रयास किया लेकिन किस्मत ही खराब है और जब किस्मत खराब है तो दोष किसको दें ।गरीबों का कोई सुनने वाला नहीं है बिना पैसा का कोई काम नहीं होता है और इतना पैसा गरीब के घर में आएगा कहां से। इसलिए कष्ट झेलने के लिए मजबूर हैं।
केस स्टडी 3
गोड्डा सदर प्रखंड के झिलवा पंचायत के घटवार टोला में समरी मोहली अपने पति एतवारी मोहली के साथ झोपड़ी में रह रही है ।कहने का तो इसका भरा पूरा परिवार है । 2 बेटा ,4 बेटी ,2 बेटी का शादी हो गया है। बेटा बाहर कमाने गया है। पैसा कोई नहीं देता है। दोनों पति-पत्नी मेहनत मजदूरी करके किसी तरह जीवन यापन कर रहा है । 5 वर्ष पूर्व आवास मिला था । इनकी आंखों में भी पक्के मकान में रहने की सपने जागे थे । लेकिन बिचोलिया मिट्टी के गारे से ईट की जुड़ाई कर और उसकी छत की ढलाई की जगह फुस लगा दिया। ना तो किसी प्रखंड के पदाधिकारी ने आज तक इन्हें देखा और ना ही पंचायत प्रतिनिधियों ने । परिणाम आज भी है कि यह झोपड़ी में रहने को मजबूर है । पेंसन नही मिलता है।राशनकार्ड भी नही है। रहने का घर भी नही। समरी ने व्यवस्था पर आक्रोशित होकर बताती है कि इस राज्य में सब मोटका( संपन्न व्यक्ति ) लोगों को मिलता है गरीबों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है ।
केस स्टडी नंबर 4
पोड़ैयाहाट प्रखंड के आषाढ़ी माधुरी पंचायत के घनश्यामपुर गांव में प्रमोद मंडल निहायत ही गरीब है । किसी तरह मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करता है। बावजूद इसके सरकार की किसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। प्रधानमंत्री आवास का क्रमांक में 86 नंबर पर है। बरसों से उम्मीद संजोए था कि उनका प्रधानमंत्री आवास जरूर मिलेगा लेकिन व्यवस्था की खामियों ने उन्हें इस कदर तोड़ दिया कि उन्हें हिम्मत नहीं हो रही है कि वह प्रखंड जा पाए क्योंकि प्रखंड जाते जाते हुए थक चुका है. उससे ज्यादा वाले क्रमांक 88,96,98,117 आदि दर्जनों जरूरतमंदों का इंदिरा आवास प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत भी हो गया है कुछ का बन भी रहा है । लेकिन बिचोलिया व्यवस्था ने इन्हें आज तक प्रधानमंत्री आवास तो दिया नहीं अन्य कोई योजनाओं का लाभ भी नही मिल रहा है। हालांकि प्रखंड विकास पदाधिकारी कंचन सिंह ने कहा कि इनकी प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत कर दी गई है। लेकिन अभी तक जमीन में कहीं कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है।
यह तो महज कुछ उदाहरण है उसी तरह पथरगामा प्रखंड के लतौना के महेश सिंह, कांति सिंह, पोड़ैयाहाट प्रखंड के परसिया की मनकी देवी आदि दर्जनों परिवारों के नाम हैं जो अंतिम व्यक्ति के पायदान पर खड़े होकर सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होकर अपने किस्मत का रोना रोकर जी रहे हैं।