गोड्डा जिले के पांडुबथान के कालीपीठ मंदिर में निःशुल्क शिक्षा देने का काम कर रही है वंदना दुबे, वंदना अपने पति के साथ मिलकर मानव सेवा व शिक्षा के प्रति समर्पित होकर कई निशुल्क स्कूल खोल रखी है जहां बच्चों को शिक्षा प्रदान किया जाता है ।
कालीपीठ पांडूबथान में अल्पसंख्यक हिंदू बच्चे साथ-साथ कर रहे हैं अध्ययन,नक्सल प्रभावित सुंदरपहाड़ी के पिछड़े गांव में 5 साल से चल रहा है पाठशाला ।
परमानंद मिश्र/वरुण “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना” इकबाल के इस पंक्ति को चरितार्थ कर रहा है सदर प्रखंड के पांडूबथान कालीपीठ के सायंकालीन पाठशाला। गंगा जमुनी तहजीब के आधार पर इस मंदिर प्रांगण में हिंदू और मुस्लिम लड़के लड़कियां साथ साथ पढ़ाई करते हैं। 2 घंटे की पाठशाला में बच्चों को स्कूल में पाठ्यक्रम का कोचिंग के तर्ज पर निशुल्क पढ़ाया जाता है। दरअसल स्वामी विवेकानंद अनाथ आश्रम की संचालिका वंदना दुबे द्वारा कालीपीठ प्रांगण में 6 महीने से सायंकालीन पाठशाला प्रारंभ किया गया है जिसमें कालीपीठ के आसपास के गांव के काफी संख्या में हिंदू मुस्लिम के बच्चे एवं बच्चियां शिक्षा ग्रहण करने यहां पहुंचते हैं। इन बच्चे बच्चियों को समय-समय पर निशुल्क किताब, कॉपी, स्कूल बैग आदि भी दिए जाते हैं। बच्चों के पढ़ाने के लिए द़ो शिक्षकों को भी रखा गया है । इसके अतिरिक्त बंदना के पति सावन कुमार जो उत्क्रमित उच्च विद्यालय सुंदर मोड़ के प्रधानाध्यापक हैं बच्चों के बीच में कक्षा लेते हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देते हैं।
राष्ट्रीय गान के साथ होती है कक्षा प्रारंभ:
मंदिर प्रांगण में बच्चे के पहुंचने के बाद राष्ट्रीय गान गाया जाता है तत्पश्चात बच्चे पढ़ाई आरंभ करते हैं। कोचिंग के तर्ज पर संध्या 4:00 बजे से 6:00 बजे तक मंदिर प्रांगण में विद्यालय लगती है। जहां दो शिक्षक शिक्षिका बच्चों को पढ़ाते हैं । हिंदू से ज्यादा मुस्लिम बच्चे यहां पर क्लास करने पहुंचते हैं जिसमें अल्पसंख्यक लड़कियों की संख्या भी काफी अधिक है।अभी कुल 151 छात्र नामांकित हैं जिनमें 108 छात्र-छात्राएं अल्पसंख्यक हैं।धीरे धीरे स्कूल की प्रसिद्धि क्षेत्र में बढ़ती जा रही है।
अल्पसंख्यक अभिभावकों को मंदिर प्रांगण में बच्चों की पढ़ाई से कोई गुरेज नहीं :
अल्पसंख्यक बच्चों के अभिभावक खुशी-खुशी अपने बच्चों को विद्यालय भेजते हैं उनका कहना है कि बच्चों में शिक्षा का विकास हो यह जरूरी है बच्चे इधर उधर भटकने से अच्छा है कि एक जगह बैठकर कुछ ज्ञान की बातें सीखे। बच्चे अच्छे संस्कार सीखे। इसी उद्देश्य वे लोग अपने बच्चे बच्चियों को यहां पढ़ने भेजते हैं। वही संचालिका बंदना दूबे का कहना है कि बहुत बच्चे स्कूल नही जाकर सुबह शाम नशा करते है गलत संगत में पड़कर गलत रास्ते की ओर मुड़ जाते हैं वैसे बच्चे भी धीरे धीरे संस्था से जुड़ने लगा है।
शिक्षा के लिए समर्पित है पति-पत्नी का जीवन:
स्वामी विवेकानंद अनाथ आश्रम की संचालिका वंदना दुबे एवं उनका पति सावन कुमार शिक्षा के प्रति काफी समर्पित है। इसके पूर्व भी नक्सल प्रभावित सुदंरपहाड़ी के सघन जंगली क्षेत्र बड़ा पकतरी व कटहलडीह गांव में स्कूल खोल चुके हैं। सुंदरपहाड़ी प्रखंड के बड़ा पकतरी गांव में कोई स्कूल नहीं रहने के कारण वहां के बच्चे शिक्षा से वंचित रहते थे। एक बार वहां के लोगों ने वंदना दुबे जब यह बात कही तो दोनों पति पत्नी गांव पहुंचे तो इन्हें काफी आश्चर्य हुआ कि बच्चे सिर्फ खेलने में व्यस्त हैं उन्हें अक्षर का भी ज्ञान नहीं है और यह बात बंदना दुबे को काफी प्रभावित कर गई। उन्होंने उस गांव में झोपड़ी बनाकर एक स्कूल खोल दिया। जिसमें 2 स्थानीय शिक्षकों के द्वारा बच्चों का अध्यापन का कार्य किया जा रहा है ।अभी उसे स्कूल में तकरीबन 50 बच्चे हैं ।वहीं 2019 में कटहलडीह गांव में दूसरा स्कूल खोला गया। उस गांव में जब बंदना दुबे पहुंचे तो वहां सरकारी स्कूल तो था लेकिन वहां के बच्चे पढ़ने के प्रति जागरूक नहीं थे उन्हें सबसे आश्चर्य हुआ कि डोरमा गांव के 12 वर्षीय रामा पहाड़िया तथा रतन पहाड़िया एवं कटहल जी के 9 वर्षीय एनोसेंट मरांडी आज तक स्कूल गया ही नहीं है। उन्होंने तुरंत वहां भी एक स्कूल खोल दिया। आज स्कूल में भी तकरीबन 40 बच्चे प्रतिदिन अध्ययन करने पहुंचते हैं।
नक्सल प्रभावित 5 गांव में निशुल्क विद्यालय खोलने की है योजना:
सुंदर पहाड़ी के जंगलों में नक्सल प्रभावित गांव व इलाकों में भी और पांच स्कूल खोलने पर चर्चा हो रही है।सुंदर पहाड़ी प्रखंड से 40 किलोमीटर दूर कटहलडीह व पकतरी के अतिरिक्त अन्य 5 गांव में स्कूल खोलने की योजना पर कार्य चल रहा है। इस संबंध में वंदना दुबे ने बताया कि सर्वेक्षण के बाद 5 गांव में स्कूल खोला जाएगा।
गरीब व अनाथों के लिए समर्पित है वंदना दुबे का जीवन: 2016 में राजीव गांधी मानव सेवा पुरुस्कार से राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों सम्मानित होने वाले बंदना दुबे का पूरा जीवन ही अनाथ व गरीबों के लिए समर्पित हैं । पांडुबथान में स्वामी विवेकानंद अनाथालय का संचालन करती हैं और अन्य सामाजिक गतिविधियों में काफी बढ़ चढ़कर भाग लेती हैं।उन्होंने बताया कि वैसे बच्चे जो शिक्षा से वंचित है और उनके व्यक्तित्व विकास के लिए काम करूंगी।वहां की स्थिति में सुधार लाना औऱ बच्चो को भटकाव से रोकना जरूरी है।किसी भी क्षेत्र मे आगे बढ़ने के लिए शिक्षित होना जरूरी है। शिक्षा ही हुआ अस्त्र है जिसके द्वारा गरीबी रूढ़िवादिता एवं समस्याओं को परास्त किया जा सकता है ।
हेमंत सोरेन ने एक लाख की दी है मदद :
सुंदरपहाड़ी क्षेत्र में स्कूल निशुल्क स्कूल खोले जाने की खबर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संज्ञान लिया और एक लाख की आर्थिक मदद संस्था को की गई।
कौन है वंदना दुबे : जन्म देने वाली से ज्यादा महत्व पालने वाली मां का होता है तभी तो देवकी से ज्यादा मैया यसोदा को लोग जानते हैं ।गोड्डा में भी एक ऐसी ही मां वंदना दुबे है जो 40 बच्चों का लालन-पालन कर रही है वह भी बिना सरकारी सहायता के। आत्मीयता, ममता और लगाव की मूरत वंदना ने कई गरीब, अनाथ बच्चों को सहारा के साथ मां का प्यार भी दिया है। वंदना दुबे आज एक ऐसा नाम बन चुकी है। महज 33 साल की उम्र में जैसा नाम काम कुछ वैसा ही मतलब वंदनीय. वंदना को मानव सेवा के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. ये पुरस्कार पाने वाली वो पहली झारखंडी हैं. वंदना दुबे बचपन में गरीबी और अभाव के बीच बीता। उन्हें बचपन में ही रिश्तेदारों के घर छोड़ दिया। वो अपने अनुभव पर बताती हैं कि जहां पर जीवन मेरे लिए कठिन था। जहां भोजन तो मिलता था लेकिन प्यार और स्नेह नहीं। आज जितने भी बच्चे हैं मैं कोशिश यही कर रहे हैं कि मेरे जैसा जीवन उन्हें ना मिले। ताने भी बहुत मिलते थे लेकिन हौसला कम नहीं था। लोग पागलपन की दृष्टि से देखते थे और कहते थे जिसके पास स्वयं कुछ नहीं है वह दूसरे के लिए क्या सोच रही है ।मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य था आगे बढ़ना और कुछ करके दिखाने का।
यह उनके काम का प्रभाव है कि पूर्व मंत्री लुईस मरांडी, वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो आदि उनके आश्रम तक पहुंच चुके हैं और उनके कार्यों का सराहा है। नारी शक्ति है। जगत की पालक है और ममता की सच्ची तस्वीर है। वंदना के प्रयासों से इसकी पुष्टि भी होती है तभी तो आज की भाग दौड़ में एक बच्चे का लालन-पालन लोग नहीं कर पाते हैं जबकि वह 40 बच्चों का जिम्मेदारी भी हंसते हंसते उठा रही है।
मासूमों के लिए काम कर रही है वंदना :
स्वामी विवेकानंद अनाथ आश्रम गोड्डा की संचालिका वंदना दुबे 12 जनवरी 2005 से लगातार नाबालिक मासूम बच्चों के पालन पोषण एवं शिक्षा के लिए काम कर रही है। जिन्हें ना तो मां की ममता मिल पाई और ना ही पिता का प्यार। यह वंदना का जुनून और जिम्मेदारी ही है कि उन्होंने बिना सहायता एक मां बनकर बच्चों की सेवा कर रही है। बंदना इन बच्चों का ख्याल एक मां की तरह रखती है फिर चाहे उनके कपड़े बदलना हो गई या फिर बाल बांधना वंदना खुद अपने हाथों से बच्चों का काम करती है।
वंदना को नहीं मिली सरकारी सहायता:
2007 से ही वंदना सोसायटी एक्ट के आधार पर स्वामी विवेकानंद आश्रम चला रही है। जिसमें जिसमें सीडब्ल्यूसी ने भी कई बच्चों को रखा है।दूसरी तरफ सड़क पर फेंके गए बच्चों को भी वंदना अपनी ममता की छांव में रखती हैं।इन्हें कई बच्चे मां कह कर पुकारते लेकिन बावजूद इसके सरकार से मिलने वाली तमाम सुविधाओं से वंदना वंचित है ।वंदना कहती है कि वह बच्चों के लिए काम करती है और उनकी सेवा उनका धर्म है कि उन्हें इस बात का अफसोस जरूर होता है कि उन्हें किसी भी तरह की सहायता नहीं मिलती है। बड़ी मुश्किल से समाज के लोगों के कुछ सहयोग से ही वह ऐसा कर पा रही है। पति सरकारी शिक्षक हैं वह भी वंदना के इस समाज सेवा में जी जान से मदद कर रहे हैं।