देश की एक सबसे बड़ी राष्ट्रवादी पार्टी जो धरती की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा भी करती है उसमें ही सबसे ज्यादा पार्टी विरोधी नेता पैदा लेते है।
इतिहास भी गवाह है कि अक्सर कोई ना कोई बड़ा नेता पार्टी से टकरा कर अपनी नई पहचान बनाने की कोशिश करता है लेकिन वो असफल हो जाता है और बाद में पुनः घर वापसी कर लेता है। दिल्ली से गुजरात,यूपी से एमपी,बिहार,झारखण्ड से लेकर कर्नाटक तक ये सिलसिला चला लेकिन सभी बड़े नेता अपने कार्यकर्ताओं के साथ घर वापस आ गए साथ ही साथ फिर से उसी मुकाम पर पहुँच कर सत्ता हासिल होने पर जगह ले लिए। सभी घर वापस आ जाते है इसीलिए पार्टी भी किसी पर कोई बड़ी कार्रवाई नही करती है क्योंकि पता है कि ये फिर यही आकर …..गा।
पूरे देश मे यही हाल है। बिहार का एक छोटा बंदूक सांसद भी खुले आम देश के प्रधानमंत्री को नसीहत ही नही देते है बल्कि विपक्ष के नेताओं का बखान भी कर देते है लेकिन किसी की भी हिम्मत उनके खिलाफ कार्रवाई करने की नही होती है।
अपने प्रदेश मे भी कमोबेश यही हाल है। सत्ता,पार्टी या नेता को खुलेआम गाली दो लेकिन कुछ बिगड़ने का डर ही नही है।
पार्टी विरोधी काम भी कीजिये लेकिन पार्टी के साथ भी रहिये।
अपने लोकसभा क्षेत्र में भी यही हाल है। पार्टी के मंच -मोर्चा का पदाधिकारी खुलेआम एक माननीय के विरोध में लिखे जा रहे है। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के साथ फोटो पोस्ट किया जा रहा है और दिल्ली तक पहुंचने के लिए क्षेत्र की जनता से गुहार भी कर रहे है लेकिन पार्टी चुप है।
यही हाल अपने जिला में भी है। पार्टी के टिकट से विधानसभा लड़ने वाले लोकसभा में खुलकर विरोध करते है और आज फिर साथ मे मंच साझा करते है। बीच मे तो परछाई की तरह साथ मे ही चल रहे थे। पिछली विधानसभा चुनाव में भी खुलकर साथ नही दिया क्योंकि तब उनकी पार्टी जीत जाती तो फिर 2019 में टिकट का उम्मीद भी तो नही रहता। अब कम से कम थोड़ी सी उम्मीद की रोशनी नज़र तो आती है।
उसी तरह कुछ स्तरहीन कार्यकर्ता भी है जो लोकसभा में खुलकर विरोध किये। पोस्टर से लेकर मोबाइल वीडियो भी चलवाये लेकिन आज पूरी तरह साथ में है।
उस समय दवाब के कारण पार्टी से निष्कासित भी कर दिया गया था लेकिन आज बिना विधिवत पार्टी में जुड़े हुए पूरी तरह सक्रिय है।
गोड्डा का स्तर यही है कि सभी संघटन के रीढ़ है लेकिन कोई किसी से जुड़ा हुआ नही है। दिल्ली वाले के विरोधियों का राँची वाला हितैषी है उसी तरह राँची वालों से जिनको नही पटता है वो सीधे मठाधीश से संपर्क साधते है। पिछले 10 साल के इतिहास को टटोला जाए तो सभी पार्टी विरोधी आज किसी ना किसी पद से जुड़े हुए है। जिनको जिला में कोई पद नही मिल पाया उनको उपराजधानी भेज दिया गया। आज वैसे बेपेंदी के लोटा दूसरों को नसीहत दे रहे है।
अभिजीत तन्मय