झारखण्ड के खुबसुरती में रंग भरते “पलाश” फुलभारत के हरेक राज्यों कि अपनी एक अलग खासियत है जिसके कारण वहाँ की एक अलग पहचान है। उसी प्रकार झारखण्ड के वादियों और यहाँ के मनमोहक दृष्य में खो जाने को दिल करता है। झारखण्ड का शाब्दिक अर्थ है “वन प्रदेश” । झारखण्ड एक आदिवासी बहुल राज्य है। यहां 32 प्रकार के जानजातियों निवास करती है।
आदिवासी हमेशा से जल, जंगल और जमीन के संरक्षण में अहम भुमिका निभायी है और हमेशा से प्रकृति की पुजा अर्चना करते आ रहे है। वसंत ऋतु के आगमन होते ही ठंड आपनी चादर समेट लेती है और पेड़-पौधे में नये पत्ते का सृजन होना शुरु हो जाता है। इस मौसम के आगमन से जंगलों की खुबसुरती का एक अलग ही नजारा है। जंगलों में पतझड़ के मौसम में चार चाँद लगा देते है पलाश और सेमल के फुल।
जंगलों के इस खुबसुरती में खो जाने को जी करता। इस महीने में आप अगर जंगलों के रास्तों में रेल द्वारा सफर कर रहे हो तो आप इन फुलों का नजारा आपको देखने को जरुर मिलेगा।
संथाल परगना में इस फूल का अलग ही महत्व
हमारे झारखण्ड के राजकीय पुष्प पलाश जिस तरिके से जंगलों में खुबसुरती का जलवा बिखेरती है उससे ये लगता है कि ये अद्भुत नजारे हमारे आखों से कभी ओझल ही ना हो और ये हमारे दिलों में एक अलग ही छाप छोड़ जाती है। झारखण्ड में इन फुलों का आगमन फरवरी माह से ही शुरु हो जाता है।
पलाश फुल की दो खास बातें है पहली तो ये की जब पेड़ों से पत्ते गिरने लगते है तभी ये फुल खिलते है और दुसरी खास बात ये की फागुन माह में होली के त्योहार में इस फुल से रंग भी तैयार किया जाता है। ये एक प्रकृति रंग बनता है इसके रंग शरीर में किसी प्रकार के कोई हानि नही करती है। जैसे-जैसे पलाश के फुल जंगलों में पुरी तरह खिल उठते है वैसे-वैसे पलाश के फुल जंगलों में लाल रंगो से खिलखिला उठता है।
कल-कल करती नदियाँ और उसके किनारे पे पलाश के फुल मन लुभाते है और उन फुलों का आर्कषण हमें उनकी ओर खींच लाता है। कुदरत की ये अनोखी भेंट सचमुच इतनी सुहानी है एक तरफ पतझर का मौसम तो दुसरी तरफ फुलों की रवानी।
य़े फुल हमें एक संदेश दे जाती है जिंदगी में कितने भी कठिनाईयाँ हो उसे संघर्ष कर जिना सिखों क्योंकि जिंदगी इसी का नाम है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मै चिलचिलाती धुप और तपती गर्मी में भी मै अपनी खुबसुरती बरकरार रखती हुँ और लोगो के दिलों में राज करती हुँ।
आदिवासी बालाओं के जुड़े में सजने वाले झारखंड के इस राजकीय फूल पलाश की गरिमा खास है. इसके फूल से रंग, गुलाल, सिंदूर आदी बनाई जाती है. इससे बनने वाले गुलाल की होली में डिमांड काफी बढ़ जाती है. इसका यहां कि संस्कृति और सभ्यता से भी गहरा लगाव है,झारखंड इन दिनों सिंदूरी रंग में रंगा नजर आ रहा है. जो एक मशहूर फिल्मी गाने की याद ताजा कर रहा है जिसके बोल थे ‘आके तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी’. फागुन आने पर झारखंड के जंगलों में प्रकृति अपनी छटा बिखेर रही है. इस मौसम में यहां के जंगल लाल रंग की चादर ओढ़ लेते हैं, जो प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाते हैं.झारखंड में फागुन के आगमन के साथ ही पलाश के फूलों से पूरा वातावरण खिलने लगा है. पलाश के फूल होली का एहसास करा रहे हैं. पलाश के फूलों के चमकदार रंग आंखों को सुकून पहुंचाते हैं, बसंत ऋतु आगमन के साथ ही पलाश के फूलों से पूरा वातावरण खुशनुमा हो जाता है.
संथाल परगना सहित पूरे झारखंड में पलाश के पेड़ काफी मात्रा में पाए जाते हैं. जो कई औषधीय गुणों से युक्त है और काफी लाभकारी माना जाता है. राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित आदिवासी साहित्यकार बताते हैं कि पलाश के फूल पर्यावरण के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. इसे झारखंड की संस्कृति और पहचान के रूप में भी जाना जाता है।
कई नाम और कई काम
रंग ही नहीं औषधि भी हैं टेसू के फूल,पलाश (पलास, परसा, ढाक, टेसू , किंशुक, केसू )
बसंत शुरू होने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों तथा जंगलों में पलाश फूल खिलना शुरू हो जाते हैं। पलाश फूलों से छठा सिंदूरी हो जाती है। पेड़ों पर पलाश फूल होली के कुछ दिन बाद तक रहते हैं जिसके बाद झडऩा शुरू हो जाते हैं। पलाश के फूल ही नहीं इसके पत्ते, टहनी, फली तथा जड़ तक का बहुत ज्यादा आयुर्वेदिक तथा धार्मिक महत्व है। देश में प्रचुर मात्रा में होने के बावजूद इसका व्यवसायिक उपयोग नहीं हो पा रहा है। आयुर्वेद की माने तो होली के लिए रंग बनाने के अलावा इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। यही नहीं पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है।
कुछ वर्षों पूर्व तक होली मात्र पलाश फूल से बने प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी। ये प्राकृतिक रंग त्वचा के लिए भी फायदेमंद होते थे लेकिन बाजार में केमिकल वाले रंग पहुंच चुके हैं तथा अब प्राकृतिक रंगों का उपयोग नहीं के बराबर होता है।
पलाश फूलों से पहले कपड़ों को भी रंगा जाता था। पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता।
पलाश के फूल की उपयोगिता को कई लोग जानते नहीं है और जिसके कारण ये बेशकीमती फूल पेड़ से नीचे गिरकर नष्ट हो जाते हैं। पलाश के पेड़ के पत्ते भी बेहद उपयोगी हैं। पत्तों का उपयोग ग्रामीण दोना पत्तल बनाने के लिए करते हैं। पलाश के जड़ से रस्सी बनाकर धान की फसल को भारा बांधने के उपयोग में लाया जाता हैं। पलाश की फली कृमीनाशक है |
आधुनिकता के इस युग में भी ब्रज क्षेत्र में टेसू से होली खेलने की परंपरा है। रासायनिक रंगों के मुकाबले ये ज्यादा सुरक्षित हैं और त्वचा रोग के लिए औषधितुल्य होते हैं।
आधा किलो टेसू के फूल पन्द्रह लीटर पानी में लिए बहुत है।बृज के मथुरा, आगरा, हाथरस, दाऊजी, गोकुल आदि क्षेत्र में इसका जबरदस्त प्रचलन है। नंदगांव बरसाने की लट्ठमार होली हो या फिर दाऊजी का हुरंगा, इनमें टेसू के फूलों का जमकर प्रयोग होता है। बिहारी जी के मंदिर में खेली जाने वाली होली में भी टेसू के फूलों का प्रचलन है।त्वचा रोग विशेषज्ञ का कहना है कि इससे एलर्जी नहीं होती है जबकि केमिकल वाले रंग-गुलाल त्वचा के लिए हानिकारक है। इनसे शरीर पर जलन होती है।
टेसू के फूल में औषधि के बहुत से गुण है। टेसू के फूल त्वचा रोग में लाभकारी है। टेसू के फूल को घिस कर चिकन पाक्स के रोगियों को लगाया जा सकता है।टेसू का फूल असाध्य चर्म रोगों में भी लाभप्रद होता है। हल्के गुनगुने पानी में डालकर सूजन वाली जगह धोने से सूजन समाप्त होती है। चर्मरोग के लिये टेसू और नीबूटेसू के फूल को सुखाकर चूर्ण बना लें। इसे नीबू के रस में मिलाकर लगाने से हर प्रकार के चर्मरोग में लाभ होता है।