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पत्रकारिता की सबसे ऊंची मीनार कुलदीप नैयर नहीं रहे ।

इस दौर में अब कुलदीप नैयर का नहीं रहे

दोपहर एक बजे लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा ।

सुबह सुबह बुरी खबर से सामना हुआ ,कुलदीप नैयर के जाने की खबर आई ,श्रद्धांजलि उस शख्स को , जिसका लिखा पढ़कर हम हमेशा देश दुनिया,सियासत और समाज को समझते रहे, नैयर साहब कुछ दिनों से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे ,लड़ते जूझते कुलदीप नैयर ने जब आखिरी सांसे ली तो लगा कि एक ऐसा चिराग बुझ गया , जिसने करीब छह दशकों तक अपनी कलम के दम पर पत्रकारिता को रोशन रखा ।

नैयर साहब की लिखी चर्चित किताबें
नैयर साहब की लिखी चर्चित किताबें

95 साल के थे कुलदीप नैयर और उम्र के होश पड़ाव पर भी इस कदर होशमंद थे कि लगातार लिखने और पढ़ने में मशगूल थे, कुलदीप नैयर अपनी पीढ़ी के आखिरी पत्रकार थे , जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के कब्जे भी हिन्दुस्तान को देखा और आजाद होते हुए भी आजाद भारत के सत्तर साल की पत्रकारिता में नैयर साहब सबसे ऊंची मीनार की तरह थे ,उम्र के हिसाब से देखें तो आखिरी ऊंची मीनार थे,कुलदीप नैयर ने देश के विभाजन का दंश भी झेला और अपनी जमीन से बेदखल होने का संताप भी , सियालकोट में जन्मे , लाहौर में पले बढ़े और सरहद की लकीरें खिची तो इस पार आ गए नेहरु , गांधी , पटेल, शास्री , राजेन्द्र प्रसाद , पंत ,मौलाना आजाद लेकर जेपी तक “सबके करीब रहकर सबको समझा और अपने जीवन को इस को दौर को आजाद मुल्क के इतिहास से जोड़कर एक शानदार किताब लिखी “बियांड द लाइंस”, जो हिन्दी में अनुदित होकर ’एक जिंदगी काफी नहीं’ के नाम से छपी , इस किताब के पहले चैप्टर बचपन और बंटवारा में नैयर साहब ने अपने बारे में लिखा है ।

नैयर साहब की पुरानी तश्वीर
नैयर साहब की पुरानी तश्वीर

जिंदगी में हर नई शुरुआत अपने आपमें अनोखी होती है, मेरी अपनी मिसाल भी एक नमूना है, मैं गलती से पत्रकारिता में आ गया . मैं वकालत के पेशे में आना चाहता था , जिसके लिए लाहौर यूनिवर्सिटी से डिग्री भी हासिल की लेकिन इससे पहले कि मैं अपने शहर सियालकोट में अपने- आपको एक वकील के रुप में रजिस्टर करवा पता , इतिहास बीच में आ घुसा और भारत का बंटवारा हो गया ,मैं दिल्ली आ गया , जहां मुझे एक उर्दू अखबार ‘अंजाम’ में नौकरी मिल गई ,मैं पत्रकारिता के पेशे में आगाज की बजाय अंजाम से दाखिल हुआ , इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि मेरे सहाफात का आगाज अंजाम से हुआ ‘ कुलदीप नैयर का जीवन, उनकी पत्रकारिता और आजादी के बाद की भारतीय सियासत को समझने के लिए ये एक बेहतरीन किताब है ,ऐसा मैं इसलिए भी कह रहा हूं कि क्योंकि नेताओं की बायोग्राफी तो लोग लाइब्रेरी की खाक छानकर भी लिख लेते हैं लेकिन कुलदीप नैयर सब कुछ देखकर लिख रहे थे ,गांधी की हत्या के तुरंत बाद मौके पर पहुंचने वाले पत्रकारों में कुलदीप नैयर ही थे ,उन दिनों नैयर साहब एक उर्दू अखबार ‘अंजाम’ में काम कर रहे थे ,कुलदीप नैयर ने लिखा है 30 जनवरी 1948 का दिन सर्दियों के किसी भी दूसरे दिन की तरह था ,सुहानी धूप और ठंढ़क भरा, दफ्तर के एक कोने में पीटीआई की टेलीप्रिंटर लगातार शब्द उगल रहा था ,डेस्क इंचार्ज ने मुझे लंदन की खबर अनुवाद करने के लिए दे दी ,मैं धीरे धीरे चाय पीते हुए काम कर रहा था , तभी टेलीप्रिंटर की घंटी बजी ,मैं लपककर टेलीप्रिंटर के पास पहुंचा और मैंने उस पर उभरा फ्लैश पढ़ा “गांधी शॉट” मेरा एक सहकर्मी मुझे मोटरबाइक पर बिड़ला हाउस ले गया ,मैंने शोक का माहौल देखा ,गवर्नल जनरल लॉर्ड माउंटबेटन को वहां पहुंचते और महात्मा के शरीर को सलामी देते देखा ‘ इसके बाद का पूरा घटनाक्रम कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में चश्मदीद की तरह ही लिखा है ।

उनके द्वारा लिखी चर्चित किताबों में एक
उनके द्वारा लिखी चर्चित किताबों में एक

नेहरू की ताजपोशी और उनके ताज से झांकते कांटों को भी कुलदीप ने नैयर ने देखा और आजादी की लड़ाई के योद्धाओं से बनी उनकी कैबिनेट में चल रही भीतरी उठापटक को भी , 
शहीद भगत की जिंदगी और फांसी के मुकदमे पर कुलदीप नैयर की लिखी किताब WITHOUT FEAR को पढ़कर हम सबने भगत सिंह को करीब से जाना ।
इमरजेंसी के दौर में जब खुशवंत सिंह मठाधीश इंदिरा गांधी और संजय गांधी की शान में ढ़ोल,मजीरे बजा रहे थे , तब कुलदीप नैयर जैसे लड़ाके पत्रकार ,संपादक ही थे , जो सलाखों की परवाह किए बगैर चौथे खंभे की बुनियाद थामे बैठे थे ,जेल जाएंगे लेकिन झुकेंगे नहीं ।
एक तरफ अखबारों का गला घोंटकर घुटने पर लाने की कवायद में जुटी संजय गांधी की सेना और दूसरी तरफ कुलदीप नैयर जैसे इमरजेंसी पर लिखी उनकी किताब EMWEGENCY RETOLD के हर पन्ने पर उस दौर की दास्तान दर्ज हैं ।

लालबहादुर शास्त्री के साथ कुलदीप नैयर
लालबहादुर शास्त्री के साथ कुलदीप नैयर

जब आजाद भारत के बुनियाद की इंटें रखी जा रही थी तो कुलदीप नैयर चश्मदीद बनकर इतिहास बनते देख रहे थे ,उन्होंने पीआईबी में सूचना अधिकारी सरकारी नौकरी की ,लाल बहादुर शास्री से लेकर पंत तक साथ बतौर सूचना अधिकारी रहे ,उस दौर में पीटीआई के लिए काम किया , संसद , साउथ ब्लॉक और नार्थ ब्लॉक की सियासत को भीतरी दरवाजे में दाखिल होकर भी देखा और दूर रहकर भी,नेहरु – इंदिरा की कांग्रेस को चढ़ते भी देखा और गिरते भी, जेपी आंदोलन और इमरजेंसी के दौर में कुलदीप नैयर देश के सबसे बड़े और चर्चित पत्रकारों में थे ,वीपी सरकार बनने से पहले देवीलाल और चंद्रशेखर के दांव पेंच के भी चश्मदीद रहे ,उसी दौर में इंगलैंड में भारत के राजदूत भी रहे ,लंबी कहानी है ,जो उन्होंने खुद ही बहुत खूबसूरत तरीके से अपनी किताब में लिखी है. कोशिश करुंगा कि कुछ कहानियां आप तक पहुंचे ,अगर आपने पढ़ी है तो नजरअंदाज करके आगे बढ़ सकते हैं .कुलदीप नैयर काफी दशकों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय थे.,उन्होंने कई किताबें भी लिखी थीं,आपको बता दें कि कुलदीप नैयर ने अपने करियर की शुरुआत बतौर उर्दू प्रेस रिपोर्टर की थी,वह समाचार पत्र द स्टेट्समैन के संपादक भी रह चुके थे. पत्रकारिता के अलावा वह बतौर एक्टिविस्ट भी कार्यरत थे,इमरजेंसी के दौरान कुलदीप नैयर को भी गिरफ्तार किया गया था,कुलदीप नैयर का जन्‍म 14 अगस्‍त 1924 में सियालकोट में हुआ था,कुलदीप नैयर ने लॉ की डिग्री लाहौर में ली थी। उन्होंने यूएसए से पत्रकारिता की डिग्री ली और दर्शनशास्‍त्र से पीएचडी की,उन्होंने भारत सरकार के प्रेस सूचना अधिकारी के पद पर कई सालों तक काम किया. इसके बाद वो यूएनआई, पीआईबी, द स्‍टैटसमैन और इंडियन एक्‍सप्रेस के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे,वह 25 सालों तक ‘द टाइम्‍स लंदन’ के संवाददाता भी रहे,वह शांति और मानवाधिकारों को लेकर अपने रुख के लिए कारण जाने जाते हैं. उनका कॉलम ‘बिटवीन द लाइन्स’ काफी चर्चित रहा, जिसे 80 से ज्यादा अखबारों ने प्रकाशित किया था,कुलदीप नैयर 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे,1990 में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन में उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था,अगस्त 1997 में राज्यसभा में नामांकित किया गया था । इतना ही नहीं कुलदीप नैयर डेक्कन हेराल्ड (बेंगलुरु), द डेली स्टार, द संडे गार्जियन, द न्यूज, द स्टेट्समैन, द एक्सप्रेस ट्रिब्यून पाकिस्तान, डॉन पाकिस्तान, प्रभासाक्षी सहित 80 से अधिक समाचार पत्रों के लिए 14 भाषाओं में कॉलम और ऑप-एड लिखते थे ।

मैं हूँ गोड्डा .कॉम की पूरी पत्रकारिता टीम की तरफ से कुलदीप नैयर साहब को भावभीनी श्रद्धांजलि

 

About मैं हूँ गोड्डा

MAIHUGODDA The channel is an emerging news channel in the Godda district with its large viewership with factual news on social media. This channel is run by a team staffed by several reporters. The founder of this channel There is Raghav Mishra who has established this channel in his district. The aim of the channel is to become the voice of the people of Godda district, which has been raised from bottom to top. maihugodda.com is a next generation multi-style content, multimedia and multi-platform digital media venture. Its twin objectives are to reimagine journalism and disrupt news stereotypes. It currently mass follwer in Santhal Pargana Jharkhand aria and Godda Dist. Its about Knowledge, not Information; Process, not Product. Its new-age journalism.

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