नगर निकाय चुनाव गोड्डा के कुछ नेताओं के लिए गले की हड्डी बन गया है। ना उगलते बन रहा है और ना ही निगलते। स्थानीय दवाब से लेकर आलाकमान तक का प्रेशर बना हुआ है। वर्तमान चुनाव में अगर परफॉर्मेंस खराब हुआ तो इसका सीधा असर 2019 के चुनाव पर पड़ेगा जिसकी उल्टी गिनती अब शुरू हो चुकी है। पार्टी कोई भी बहाना सुनने को तैयार ही नही है।
दो अलग-अलग दल के नेता दोनों की इस चुनाव में अग्निपरीक्षा है। आगामी चुनाव में टिकट की इच्छा भी इसी रिजल्ट से संभव है।
दोनों नेताओं के साथ एक विषम परिस्थिति है। जाति का वोट एक मुश्त जाने के आसार है इससे वर्तमान में खुद के पार्टी के जीत के आसार कम दिखाई दे रहे है। अगर ये दोनों नेता किसी खास प्रत्याशी के खिलाफ काम करते है तो जात नाखुश होता है और जात को खुश रखते है तो पार्टी के नेताओं के सामने खुद का परफॉर्मेंस खराब दिखाई दे रहा है।
अगले ही साल चुनाव भी है ये डर भी सता रहा है। सबसे बड़ी बात ये सामने आ रही है कि अगर इस चुनाव में अगला चमक गया तो भविष्य भी गड़बड़ा सकता है वैसे भी राजनीति में सभी ऊंचे ओहदे तक पहुँचने के लिए प्रयासरत भी रहते है। जीता हुआ कंडीडेट पर कई पार्टियां जुआ भी खेलती है।अगर ऐसा हुआ तो बना बनाया समीकरण मिट्टी पलीद हो जाएगा इसीलिए नेताजी सत्तू बांध कर लग भी गए है। अंदर ही अंदर दोनों नेताओं में डील भी हो चुकी है कि मैं खिलु या मुरझा जाऊं लेकिन आपका निशाना नही चूकना चाहिए।
बूढ़े नेता जी के लिए भी 2019 अंतिम मौका होगा क्योंकि उम्र भी जवाब देने लगी है और अगर गठबंधन हो गया तो इससे बढ़िया मौका भी नही मिलेगा।
अभिजीत तन्मय