अभिजीत तन्मय/आजकल गोड्डा में भी यही हो रहा है। गणतंत्र दिवस का अवसर हो या स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर होने वाला कार्यक्रम हो सब जगह बंदरबांट शुरू हो गया है।
जिला प्रशासन के अगुवाई में दो कमिटी बनती है जो खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को करवाती है। इनसब में होने वाले खर्च के लिए व्यवस्था भी करवाती है। पिछले कुछ सालों से कुछ कंपनियों के द्वारा भी मोटी रकम हाथ लग जाती है।
इस बार भी खर्च के लिए राशि की व्यवस्था की जा रही थी। कुछ लोगों(कंपनी या विभाग के पदाधिकारी) को बुला कर खर्च वहन करने का दवाब बनाया जा रहा था।
इसी क्रम में शहर के एक जनप्रतिनिधि को उनके विभाग से राशि आवंटित करने को कहा गया। महोदय भी पुराने खिलाड़ी है उन्होंने स्पष्ट कह गया है मेरा विभाग कैश नही देगा! आप लिस्ट दीजिये मैं समान दे दूंगा!
इस बात को सुनते ही कुछ सदस्यों के चेहरे का रंग उड़ गया।
अब रेट में हेराफेरी भला कैसे हो पाएगी?
हाल के दिनों में ही एक दूसरे कमिटी के हिसाब किताब में काफी बवाल मचा था जिस कारण कुछ सदस्य चुपचाप बैठे रहे क्योंकि पिछले साल वाली बात इस साल की कुर्सी में रह नही गयी है। इस बार वाला पहले से खरियाया हुआ है।
इसी क्रम में खर्च पर जब बात आकर रुकी तो पता चला कि पिछली बार यानी 15 अगस्त के कार्यक्रम में लगभग 90 हज़ार का आँकड़ा छुआ था लेकिन एक खास कम्पनी से 2 लाख 40 हजार का भुगतान किया गया था तो सवाल ये उठता है बांकी की बची हुई राशि कहाँ गयी?
कम्पनी के ही एक अधिकारी की मिलीभगत से ये जुगाड़ हो पाया था क्योंकि पहली बार बिल तो 88 हजार का ही गया था तो फिर 2.40 लाख मिला तो गया कहाँ?
कम्पनी के एक अधिकारी ने बताया कि बात ऊपर तक चली गयी थी लेकिन मैं बैकफुट पर आ गया क्योंकि किसी सीनियर के खिलाफ बोलना अच्छा नही लगा। अब ऊपर वाले और एक प्यादे के बीच कौन सी खिचड़ी पकी ये पता नही लेकिन आजकल खिचड़ी खूब पक रही है।
तब उसी बातचीत के क्रम में कम्पनी के अधिकारी ने हँसते हुए कह दिया कि आजकल भगवान जी के नाम पर भी अच्छी उगाही हो जाती है। शहर में एक मंदिर में कुछ भक्तिमय आयोजन हुआ था जिसके तहत 50 हजार रुपये भी ले गया लेकिन वहां एक बैनर तक नही लगाया जबकि कार्यक्रम किसी मंच के द्वारा किया गया था। अब किस पर भरोसा किया जाए।