पूरे संतालपरगना मे फैला है मानव तस्करों का नेटवर्क
अभिषेक राज:गोड्डा/झारखंड के गोड्डा जिले में मानव तस्कर शुरू से हावी रहा है। इसका मुख्य कारण है कि यहां के गरीब आदिवासी, पहाड़िया लोगों के भोलेपन, अशिक्षा और गरीबी का फायदा मानव तस्कर उठाते रहे है।
आज फिर गोड्डा का नाबालिग को तस्करी कर उसे विभिन्न प्रकार के यातनाएं देने का मामला गर्म है। लेकिन बुधवार को नाबालिग ने रिम्स में आखरी सांस लेने के बाद सबसे मुख्य गवाह पुलिस के पास नहीं रही।
एक आकलन के मुताबिक झारखंड में 90 फीसदी ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार हमारी आदिवासी बेटियां हो रही हैं। मानव तस्कर महानगरों में इनकी मासूमियत की खुलेआम बोली लगाकर मालामाल हो रहे हैं और ये नर्क की जिंदगी जीने को अभिशप्त हैं।
इसके बावजूद मानव तस्करी का काला धंधा आज भी बेरोक-टोक जारी है। गोड्डा जिले के सुंदरपहाड़ी और बोआरीजोर प्रखंड मानव तस्करों के लिए किसी कारखाने से कम नहीं है।
जहां पर अशिक्षित, गरीब आदिवासी ग्रामीणों को नौकरी देने के नाम पर अपने बेटियों को दलाल के पास दे जाती है। यह दो प्रखंड सबसे पिछड़ा प्रखंड के गिनती में आता है।
आज भी सरकार की योजनाओं इन गरीब आदिवासी और पहाड़िया परिवारों तक नहीं पहुंच पाती है। बेरहम दिल्ली में आदिवासी बेटियों की सौदेबाजी का दर्द ह्यूमन ट्रैफिकिंग यानी मानव तस्करी।
पशुओं की तरह इंसानों की खरीद-फरोख्त। दिल्ली जैसे महानगरों में काम दिलाने की आड़ में सौदेबाजी करने वाली अनगिनत प्लेसमेंट एजेंसियों की मंडी सजी हुई है, जहां कानून को धत्ता बता इंसान खुलेआम बिकते हैं।
खासकर नाबालिग लड़कियां। यह सुनकर थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन कारोबारी दुनिया का एक स्याह सच यह भी है कि खूबसूरत झारखंड की सैकड़ों भोली-भाली मासूम आदिवासी बेटियां इस बाजार में नीलाम हो चुकी हैं।
यह कोई और नही विगत तीन वर्ष के बाल सरंक्षण विभाग द्वारा रेस्क्यू करने वाली टीम भी मानती है। मानव तस्करों की मकड़जाल इतनी मजबूत है कि बेरहम दिल्ली में बेटियों की खुलेआम लग रही बोली तक नहीं गूंज पाती।
लेकिन मानव तस्करों के चंगुल में फंसी सैंकड़ों बेटियां आज भी लापता हैं जिनका कोई सुराग नहीं। आज भी शासन-प्रशासन के सामने उन्हें मानव तस्करी के दलदल से सकुशल वापस लाने की चुनौती बरकरार है।
जो पहले हो चुकी होती है शिकार, वही बन जाती है शिकारी : इस प्रकार के कार्यो में अधिकांशत लोकल एजेंट संलिप्त होते हैं। कई बार ऐसी युवतियां भी इस तरह के कार्य में शामिल होती हैं।
जो पहले खुद मानव तस्करी का शिकार हो चुकी होती हैं और दलाल के रूप में काम करती हैं। ये बाहर से आने के बाद अपने रहन-सहन और पहनावे से दूसरों को आकर्षित करती हैं और उन्हें भी अमीरों जैसी जीवन जीने के लिए बाहर महानगरों की ओर जाने के लिए प्रेरित करती हैं और उकसाती हैं।
रोजगार के नाम पर कई प्लेसमेंट एजेंसियां झारखंड के ग्रामीण आदिवासी बहुल इलाकों के अशिक्षित तथा कम पढ़ी लिखी किशोरी व युवतियों को बड़े शहरों व महानगरों की राह दिखाती है।
प्रलोभन व गरीबी की मार ङोल रही ये युवतियां इनके झांसे में आकर बिचौलियों व अन्य असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंस जाती हैं। कहा जा सकता है कि गोड्डा में ही नही मानव तस्करी का पांव पूरे संताल परगना में पांव पसारे हुए है। इसमें दुमका, पाकुड़ के आदिवासी बाहुल इलाके काफी प्रभावित है।
मानव तस्करी का मुख्य उद्देश्य यौन शोषण व बंधुआ मजदूरी रहा है।