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बंदूक छोड़कर कुदाल थाम ली! लाल आतंक का पर्याय रहा दानियल कैसे बन गया पर्यावरण दूत ।

लोहरदगा/कभी प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) और पीएलएफआई के पूर्व कमांडर रहे दानियल लकड़ा की जिंदगी बाकी युवाओं के लिए एक सबक भी है और प्रेरणा भी। कभी लाल आतंक का पर्याय कहा जाने वाला दानियल आज सफल कृषक बनकर समाज और राज्य के विकास में योगदान दे रहा है। दानियल ने मुख्यधारा में जुड़कर अब हरित क्रांति के जरिए गरीबी उन्मूलन और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम करना शुरू कर दिया है। उसकी कहानी जानिए।

वर्षों तक इलाके में आतंक का पर्याय थे दानियल
लोहरदगा का रहने वाला दानियल कई वर्षों तक भाकपा (माओवादी) और पीएलएफआई जैसे कुख्यात आतंकी संगठन का हिस्सा रहा। कई हिंसक वारदातों को अंजाम देने में उसका नाम रहा। कहा जाता है कि पारिवारिक विवाद, जिल्लत और मारपीट की घटना से तंग आकर वो घर छोड़कर भाग गया था। उसने जंगल को ही अपना ठिकाना बना लिया था। इस बीच उसने हथियार उठा लिया। उग्रवादी संगठन का हिस्सा बन गया और कई वर्षों तक खूनी खेल खेलता रहा। इलाके में दानियल आतंक का पर्याय बन गया था। पुलिस की हिट लिस्ट मे भी उसका नाम था। लोहरदगा जिला में भंडरा थानाक्षेत्र अंतर्गत धनामुंजी गांव का रहने वाले दानियल की जिंदगी कैसे बदली ये भी जान लेते हैं।

2011 में शील तिग्गा से दानियल ने किया प्रेम-विवाह
साल 2011 तक लोहरदगा सहित आसपास के कई जिलों में दानियल के नाम का खौफ था। उसके हाथों में हमेशा कार्बाइन या राइफल हुआ करता। इसी बीच उसने शील तिग्गा नाम की युवती से प्रेम विवाह किया। विवाह के बाद शील को पता चला कि उसका पति दानियल नक्सली है। ये जानकर शील तिग्गा घबरा गईं। वो हर दिन इसी खौफ में बितातीं कि पता नहीं किस घड़ी दानियल पुलिस की गोली का शिकार हो जायेगा। पर शील ने हिम्मत नहीं हारी और पति दानियल को मुख्यधारा में लौटने के लिए समझाया। बताया कि जंगल की भागती जिंदगी से आगे एक सुकून भरी जिंदगी है। जिसमें अपना घर और परिवार है। इज्जत और बहुत सारा सुख है।

पत्नी के समझाने पर किया आत्मसमर्पण का फैसला
साल 2013 का फरवरी महीना। दानियल ने तय कर लिया कि वो मुख्यधारा में लौटेगा। उसने झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। पुलिस प्रशासन द्वारा इस मौके पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पुलिस के आला अधिकारियों ने मुख्यधारा में दानियल का स्वागत किया। दानियल को आत्मसमर्पण करने के एवज में ढाई लाख रुपये का चेक दिया गया ताकि वो नई जिंदगी शुरू कर सके। सजा पूरी करने के बाद दानियल ने बंदूक छोड़ दिया और कुदाल पकड़ ली। दानियल ने खेती को जिंदगी का मकसद बना लिया।

दानियल के गांव वालों ने उसका सहयोग किया
दानियल जब जेल से बाहर आया तो उम्मीद के विपरित गांव वालों ने उसका खुले दिल से स्वागत किया। सबलोगों ने उसका भरपूर सहयोग किया। पत्नी ने भी दानियल लकड़ा का सहयोग किया। बागवानी में हाथ बंटाया। खेती में कदम से कदम मिलाकर काम किया। आखिरकार दानियल ने मनरेगा के तहत अपनी 2 एकड़ पुश्तैनी जमीन पर आम्रपाली, हिमसागर, मालदा, जर्दालु और सोनपरी जैसी वैरायटी का आम का पेड़ लगाया। उसने लाल आतंक का रास्ता छोड़कर हरित क्रांति की राह पकड़ ली। उसका सकारात्मक परिणाम दिखा। दानियल बताते हैं कि अब वे प्रति साल डेढ़ से दो लाख रुपया का मुनाफा कमाते हैं। जिंदगी खुशहाल हो गई। मित्र के सहयोग से खाली पड़ी कुछ जमीन पर मिर्च बोई। इसमें भी फायदा होने की उम्मीद है।

दानियल लकड़ा को किस बात का मलाल रह गया
इतना सब कुछ होने के बाद भी दानियल लकड़ा को एक बात का मलाल है। झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत उन्हें जमीन, आवास और नौकरी मिलनी चाहिए थी जोकि नहीं मिली। दानियल ने बताया कि उन्होंने खूंटी में आत्मसमर्पण किया था। वहां से उनको लोहरदगा भेज दिया गया और फिर हजारीबाग स्थित ओपन जेल शिफ्ट किया गया। आत्मसमर्पण नीति के तहत उनको सरकार की तरफ से केवल ढाई लाख रुपये का चेक मिला। उनका कहना है कि उन्होंने कई बार आत्मसमर्पण नीति के तहत मिलने वाली सुविधाओं के लिए आवेदन लिखा लेकिन कोई सुनवाई नहीं की गई। उन्हें इस बात का मलाल है।

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