62 वर्षों से समाज में ज्ञान के दीप जला रहे हैं केदारनाथ
जितना वर्ष लोगों की औसत आयु होता है उतना बरसे तो वे पढ़ा रहे हैं।
बरुन मिश्रा/ऐसा लगता है अध्यापन ही उनका स्वास्थ्य का मूल मंत्र है।कहा जाता है शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होते वह अपने अनुभवों के आधार पर बच्चे ,अभिभावक एवं समाज का पथ प्रदर्शक बना रहता है। आज भी समाज में ऐसे शिक्षक हैं जिनकी सेवा भावना, सदाचार , राष्ट्र निर्माण के प्रति उनके कार्यों से शिक्षक समाज का मस्तक गौरवान्वित होता है। ऐसे शिक्षक किसी शिक्षक दिवस के लिए मोहताज नहीं होता बल्कि उनके लिए हर दिन शिक्षक दिवस होता है।
जिनकी मेहनत और लगन की कहानी मन मस्तिष्क को छू जाती है। वैसे ही एक नाम है तेरानवे वर्षीय शिक्षक केदारनाथ राय जो अषाढ़ी माधुरी गांव के रहने वाले हैं । सेवानिवृत्ति के 27 साल बाद भी अध्यापन कार्य से जुड़े हुए हैं। 93 साल की उम्र में भी वह गांव के उत्क्रमित उच्च विद्यालय में प्रत्येक दिन 8:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक जाते हैं वहीं बैठ कर अपना सृजनात्मक कार्य करते हैं। कोई शिक्षक नहीं रहे तो फिर यह हिंदी और संस्कृत के कक्षा भी ले लेते हैं।
62 सालों से कर रहे हैं अध्यापन का कार्य :
कहा जाता है कि सेवा की जूनून जहां रहती है वहां उम्र और समय सभी कुछ बोने पड़ जाते हैं । ऐसा ही कुछ बात केदारनाथ राय के साथ है। 62 वर्षों से लगातार अध्यापन का कार्य कर रहे हैं । उनके लिए अध्यापन सेवा नहीं पूजा है ।उन्होंने 24 वर्षों तक (1956 से 80) पोडै़याहाट प्रखंड के बक्सरा सर्वोदय उच्च विद्यालय में अध्यापन कार्य किया । बारह वर्षों तक (1981 से 92) पीएन एंगलो संस्कृत उच्च विद्यालय नया टोला पटना में अध्यापन कार्य किया वहीं से सेवानिवृत्त हुए । अध्यापन की ललक और लगन न्यू उन्हें अध्यापन कार्य से जोड़े रखा और 1993 से 2016 तक 24 वर्षों तक राजेंद्र पब्लिक स्कूल कंकड़बाग में ही उन्होंने सेवा भाव से बच्चों के बीच पढ़ाना शुरू किया।
लेकिन उम्र के एक पड़ाव पर आने के बाद उन्होंने अपना पैतृक गांव की ओर रुख किया और एक बार फिर अपना समय गांव के बच्चों में के बीच देने का संकल्प लिया । वे 2016 से अपने गांव असारी माधुरी में आकर रहने लगे। आज उनकी उम्र 93 वर्ष हो गई है ।बावजूद वो स्कूल पहुंचकर बच्चों को निशुल्क पढ़ाई करते हैं। वे संस्कृत और हिंदी पढ़ाते हैं। आज इस उम्र में भी वह सुबह उठकर योग प्रणाम करते हैं और 3 किलोमीटर पैदल चलते हैं। इतना ही नहीं स्कूल में बैठकर व कविता एवं गद्य में सृजनात्मक कार्य करते रहते हैं। उनका कहना है कि स्कूल के बगैर उनका जीवन अधूरा है वह स्कूल आ जाते हैं तो उसकी उन्हे मानसिअ शांति मिलती है और यहां अध्यापन और अध्ययन करने में काफी सुकून मिलता है। उन्होने कई कविताएं भी लिखी हैं उनका एक गद्य भी प्रकाशित हुई है। इस उम्र में भी वह देशभक्ति व वीर रस की कविता पाठ करते करते पूरे जोश में आ जाते हैं। इनको देख कर अमीर कँज़ल बख्श की यह पंक्ति याद आती है कि लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं, मैंने उस हाल में जीने की कसम खाई है।