एक समय की खलखलाती कझिया उड़ा रही है धूल
गोड्डा जिला की जीवनदायिनी नदी कझिया जिसके किनारे सैकड़ों गाँव बसे हुए है और हजारों किसानों की जिंदगी इस पर निर्भर रहती है।

दम तोड़ती कझिया
हजारों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई का एक मात्र सहारा यही नदी है लेकिन आज की वर्तमान स्थिति ऐसी हो गयी हैं कि ये नदी खुद अपनी दुर्दशा पर आँसूं बहा रही ही।

बालू से भरा हुआ इसका किनारा आज गंदगी का पटा हुआ है। पिछले कई दशकों से गोड्डा शहर के पेयजल के लिए यही नदी एक मात्र सहारा थी जो आज खुद एक एक बूंद के लिए तरस रही है।

बालू माफियाओं ने यहां के चंद पदाधिकारियों और चंद ग्रामीणों के साथ मिलकर इस नदी से इसकी खूबसूरती का हरण कर लिया।
कुछ घाटों के बंदोबस्ती होने के बावजूद लगभग पूरी नदी के बालू को समाप्त कर दिया। वैध-अवैध की चक्की में पिस कर कझिया आज दम तोड़ रही है।
पिछले कुछ सालों से गोड्डा के पूर्वी भाग के कुछ गाँव के युवा आगे आए हैं जिन्हें गाँव के कुछ बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त है वे ही कझिया बचाने की मुहिम चला रहे है।

पानी के बिना खेत की धरती फटने पर किसान दे रहे आमरण अनशन
किसानों के द्वारा यह आमरन अनशन सिर्फ पैदावार बचाने और नदी बचाने को लेकर है ,उनका कहना है कि हमारी सरकार से मुख्य मांग यह है कि सबसे पहले अविलम्ब व्यकल्पिक कुछ व्यवस्था करे और साथ ही सिंहवाहिनी नदी में चेक डेम का निर्माण करवाये।अगर नही हो पाया ऐसा तो हम किसान अपनी जान दे देंगे । हालांकि अब पानी के बिना खेतों में लगे फसल दम तोड़ रही है,ऐसे में किसान करे सो क्या करे ,”मरता क्या नही करता”

कुछ राजनीतिक करने के मनसे से चमका रहे हैं चेहरे
किसान का यह गैर राजनीतिक मंच होते हुए भी इस आंदोलन का कुछ मंझे हुए नेता और राजनीतिक दल हमेशा यूज कर अपनी राजनीति चमका लेते है। आज फिर से एक आंदोलन को बुलंद कर कुछ युवा आमरण अनशन पर बैठे हैं।
मांगो को लेकर लगातार डटे हुए हैं किसान
आज किसानों की मांग है कि अनवरत बालू के उत्खनन होने से नदी के किनारे से सिंचाई के किये निकली डांड अब ऊँची हो गयी है जिससे पानी खेतों तक पहुंचता ही नही है।
मुख्यमंत्री के पत्र के बावजूद नही बन पाया है चेक डेम
खेत सूख रहे हैं, बिचड़े बिन पानी के जल रहे है और इन सबों को देखकर पूरे साल इसी खेती पर आश्रित रहने वाला किसान इसको देख कर खून के आँसू को रोता है। सरकार और जिला प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों ने इस इलाके को सिर्फ ठगने का काम किया है।

यहाँ के किसानों ने मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था जिस पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने जिला के पदाधिकारियों से इस नदी पर चेक डैम बनाने के लिए जमीन तलाशने को कहा था लेकिन पदाधिकारियों ने रिपोर्ट में लिख कर भी दिया था कि अत्यधिक बालू उठाव के कारण सिंचाई का काम बाधित हो चुका है इसके बावजूद उत्खनन का काम जोरों पर चल रहा है।
भाजपा के किसान नेताओं का मिला समर्थन
किसानों की इस स्थिति को देखते हुए कुछ भाजपा नेता भी समर्थन में आये हैं उनमें से भाजपा जिला महाामंत्री एवं पूर्व जिला परिषद सदस्य एवं एक किसान राजारमन झा का कहना है कि आज की तारीख में किसानों का मुख्य आहार खेती ही है।सभी किसान अपने जमा पूंजी को लगा देने के बावजूद अगर पानी के बिना उपजा नही हुई तो सचमुच जान देने के कागार पर आ जाएंगे ।उन्होंने कहा कि अविलम्ब चेक डेम की व्यवस्था करनी चाहिए ,फिलहाल बालू से भरी बोरी भरकर भी डेम की तरह बांध बनाया जा सकता है।उन्होंने कहा कि पार्टी दल बाद में है पहले जमीन और जान है ।
पिछली बार भी ये आंदोलन इसी सिंहवाहिनी मंदिर के प्रांगण से एक हुंकार के साथ आगे बढ़ा था लेकिन कुछ राजनीतिक षड़यंत्र के कारण पूरा का पूरा आंदोलन बीच मे ही दम तोड़ दिया। इस बार पूरे दमखम के साथ कई गांवों के ग्रामीण एक साथ उतरे है इस लड़ाई में लेकिन अगर एकता रही तो मुकाम तक पहुँचेंगे वर्ना संघटन में छेद रही तो बालू की भीत की तरह ढह जाएंगे।