राघव मिश्रा/अभी ठीक एक महीने पहले थाईलैंड से चले तूफ़ान “पाबुक” ने वहाँ भरपूर तबाही मचाने के बाद “अंडमान निकोबार” के तटों पर भारी तबाही मचाया। उसके कुछ समय पहले बंगाल की खाड़ी से उठे तूफ़ान “गाजा” ने तबाही मचाया था। “गाजा” संस्कृत शब्द “गज” से बना है, जिसका अर्थ हाथी होता है, तथा ये नाम श्रीलंका ने दिया है। उसके कुछ समय पहले उड़ीसा में भारी तबाही मचाने वाले तूफ़ान “तितली” का नाम सबने सुना ही होगा, जिसके दौरान जन्म लेने वाली कई बच्चियों का नामकरण ही “तितली” कर दिया गया।
कैटरिना, नीना, इरमा, नर्गिस, नीलम इत्यादि तूफानों के नाम सबने सुन ही रखा होगा। क्या हमने कभी सोचा है कि इन तूफानों का नामकरण कैसे किया जाता है? और अधिकतर नाम स्त्रीलिंग ही क्यों होते हैं? आइये जानते हैं!
“इवान आर तन्नेहिल की लिखी पुस्तक “हरिकेन्स” से पता चलता है कि 19वीं सदी के पूर्वाध में आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञानी क्लीमेंट रैगी ने तूफानों के नाम “महिलाओं के नाम पर” रखने की परम्परा शुरू की थी। उसका तर्क यह था कि तूफानों की प्रवृत्ति महिलाओं की मानसिक प्रवृत्ति से मेल खाती है। दोनों के ही मानसिकता का पूर्वानुमान लगाया जाना मुश्किल है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तो यह नामकरण की परम्परा इतनी अधिक जोर पकड़ी कि उस समय की प्रखर नारीवादी रॉक्सी बोल्टन ने मौसम सेवा को एक आपत्तिनामा भेजकर पूछा, ‘क्या महिलाएं जीवन और समाज के लिए नाशक हैं? क्या महिलाएं तूफान की तरह ही तबाही लाती हैं?’ बोल्टन ने अमेरिकी संसद के पुरुष सदस्यों और मंत्रियों के नाम पर चक्रवातों के नामकरण की वकालत की, ताकि पुरुषों को महिला समाज का अपमान समझ में आए। उनकी आवाज में जब हजारों लोगों की आवाज मिली तो 1979 में पुरुष तूफानों का जन्म हुआ। फिर पुरुषों के नाम से भी तूफानों के नाम रखे जाने लगे। पर अभी भी महिला तूफानों के नाम कहीं ज्यादा हैं ।
वेस्टइंडीज के निवासी तूफानों और चक्रवातों के नाम, अपने किसी संत के नाम पर रखते रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे हमारे भारत में रेनबो को हिंदू देवताओं के मुखिया इंद्र से जोड़ते हुए इंद्रधनुष कहते रहे हैं।
दरअसल तूफानों के नाम एक समझौते के तहत रखे जाते हैं। इस पहल की शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के माध्यम से हुई थी। अटलांटिक क्षेत्र में ह्यूरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा 1953 से ही जारी है जो मियामी स्थित नैशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी। 1953 से अमेरिका केवल महिलाओं के नाम पर तो ऑस्ट्रेलिया केवल भ्रष्ट नेताओं के नाम पर तूफानों का नाम रखते थे। लेकिन 1979 के बाद से एक मेल व फिर एक फीमेल नाम रखा जाता है।
अपने यहां का सिस्टम थोड़ा सा अलग है. भारत सारे नाम खुद ही तय नहीं करता है। भारत में तूफानों को नाम देने का चलन 2004 में शुरू हुआ था। उस वक्त भारत, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाइलैंड ने मिलकर नाम देने का एक फॉर्मूला बनाया। इसके मुताबिक सभी देशों ने अपनी ओर से नामों की एक लिस्ट वर्ल्ड मीटियोरोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन को दी है।
भारत की लिस्ट में ‘अग्नि’, ‘आकाश’, ‘बिजली’, ‘मेघ’ और ‘सागर’ जैसे नाम हैं. पाकिस्तान की भेजी लिस्ट में ‘निलोफर’, ‘तितली’ और ‘बुलबुल’ जैसे नाम हैं। नाम देने लायक चक्रवात आने पर आठ देशों के भेजे नामों में से बारी-बारी एक नाम चुना जाता है। इस बार नाम देने की बारी पाकिस्तान की थी. और पाकिस्तान की ओर से इस बार तितली नाम दिया जाना था। तो अब इस बार जब भारत में तूफान आ गया, तो उसे पाकिस्तान का नाम दिया गया था तितली।
भारतीय प्रायद्वीप में, अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार उपरोक्त आठ सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया गया है। जैसे ही चक्रवात इन आठ देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची में मौजूद अलग सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इससे तूफान की न केवल आसानी से पहचान हो जाती है बल्कि बचाव अभियानों में भी इससे मदद मिलती है। अब तक चक्रवात के करीब 64 नामों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। कुछ समय पहले जब क्रम के अनुसार भारत की बारी थी तब ऐसे ही एक चक्रवात का नाम भारत की ओर से सुझाये गए नामों में से एक ‘लहर’ रखा गया था।
वैसे तो अब नामकरण की यह सारी कवायद इसलिए की जा रही कि कोई विवाद न हो, किसी की भावनाएं आहत न हों लेकिन इतनी सावधानियों के बाद भी कुछ न कुछ समस्या हो ही जाती है। जैसे 2013 में श्रीलंका सरकार ने एक तूफान का नाम ‘महासेन’ रख दिया था जिसको लेकर काफी विवाद भी हुआ था। इसकी वजह थी कि महासेन श्रीलंका के इतिहास में समृद्धि और शांति लाने वाले राजा के तौर पर दर्ज हैं, जिनके नाम पर एक विनाशकारी तूफान का नाम रख दिया गया था। बाद में सरकार ने यह नाम वापस ले लिया था।
एक और सामान्य ज्ञान नोट कर सकते हैं पाठकगण, कि जानमाल का अधिक नुक्सान करने वाले तूफानों का नाम दुबारा नहीं दुहराया जाता है, उन्हें रिटायर कर दिया जाता है, जैसे अब आप ‘कैटरीना’ का नाम दुबारा नहीं सुनेंगे!
वैसे चलते-चलते फिर से एक बात याद दिलाता चलूँ कि हाल ही में इलिनॉय यूनिवर्सिटी के एक शोध में यहां तक बता दिया गया कि महिला तूफान, पुरुष तूफानों से तीन गुना खतरनाक होते हैं। ‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ हरीकेन, टायफून एंड साइक्लोन’ में लिखा गया है,… “तूफानों के अप्रत्याशित व्यवहार और चरित्र के कारण, उनका नामकरण महिलाओं के नाम पर किया जाता है”।