- गबन के आरोप में गोड्डा जिला के दो उप डाकपाल जेल में
- एक कर्मी की आत्महत्या के मामले में डाक निरीक्षक फरार
- गबन के आरोप में गोड्डा जिला के दो उप डाकपाल जेल में
अभय पलिवार/गोड्डा/इस जिले में डाक विभाग की गतिविधियां चर्चा का विषय बनी हुई है। गबन के आरोप में जिले के दो उप डाकघर के उप डाकपाल जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं। अपने एक कर्मी की आत्महत्या के मामले में गोड्डा के अनुमंडल डाक निरीक्षक भी फरार चल रहे हैं।
सदर प्रखंड के सरौनी उप डाकघर के तत्कालीन उप डाकपाल निर्भय कुमार तकरीबन 20 करोड़ रुपए के घोटाले के आरोप में पिछले करीब तीन माह से जेल की सलाखों के पीछे हैं। गौरतलब है कि सहायक डाक अधीक्षक, दुमका की जांच रिपोर्ट में सरौनी उप डाकघर के उप डाकपाल निर्भय कुमार के विरुद्ध करीब 90 लाख रुपये घोटाले की बात सामने आई थी।
लेकिन जब ईडी ने मामले की जांच की तो घोटाले की रकम 20 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गई।
सरौनी उप डाकघर के घोटाले की चर्चा अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि महागामा उप डाकघर के उप डाकपाल चितरंजन दास के खिलाफ विभागीय जांच में 43 लाख 37 हजार रुपए गबन का मामला सामने आया।
यदि इस मामले की भी ईडी जांच करे, तो घोटाले की रकम बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मालूम हो कि महागामा उप डाकघर में घोटाले के आरोपी चितरंजन दास इसके पूर्व पथरगामा उप डाकघर के उप डाकपाल थे। विभाग द्वारा पथरगामा उप डाकघर को किस कारणवश जांच के उद्देश्य से खंगाला नहीं जा रहा है, यह अपने आपमें एक बहुत बड़ा सवाल है। संभावना जताई जा रही है कि चितरंजन दास ने पथरगामा उप डाकघर के उप डाकपाल के रूप में भी घोटाले को अंजाम दिया होगा। बहरहाल, सच्चाई जांच के उपरांत ही सामने आ सकती है। लेकिन विभाग के उच्चाधिकारी गहराई से जांच करने के प्रति उदासीन बने हुए हैं।
विभागीय उच्च अधिकारियों की लापरवाही से हो रहा घोटाला:
सरौनी उप डाकघर से करोड़ों रुपए एवं महागामा उप डाकघर से लाखों रुपए का घोटाला एक दिन या एक माह में नहीं हुआ होगा। जाहिर है, वर्षों से घोटाले को अंजाम दिया जा रहा होगा। ऐसी परिस्थिति में सवाल उठता है विभाग के उच्चाधिकारियों को घोटाले की बू क्यों नहीं आ पाती है? क्या करते हैं अनुमंडल डाक निरीक्षक? क्या डाक निरीक्षक पोस्ट ऑफिस की जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति करते हैं?
दोनों उप डाकघर में घोटाले की बात सामने आने से स्पष्ट जाहिर होता है कि अनुमंडल डाक निरीक्षक पोस्ट ऑफिस की जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति करते हैं। यदि अनुमंडल डाक निरीक्षक गहराई से डाकघरों की जांच करते, तो घोटाले की बात बहुत पहले प्रकाश में आ गई रहती। इससे घोटाले की रकम बढ़ती नहीं।
बताया जाता है कि अनुमंडल डाक निरीक्षक को साल में कम से कम एक बार उप डाकघरों की जांच करना जरूरी होता है। बावजूद इसके डाकघरों में घोटाला पर घोटाला सामने आता जा रहा है और डाक निरीक्षक सिर्फ जांच के नाम पर खानापूर्ति करते रहे हैं।
केंद्र सरकार के प्रतिष्ठान डाकघर में हो रहे घोटाले के मामले में विभाग के उच्चाधिकारियों की भूमिका सवालों के घेरे में है। कुछ लोगों का दावा है कि डाकघरों की गहराई से जांच होने पर भारी भरकम घोटाले का पर्दाफाश हो सकता है।
एक जिले में ही पोस्टिंग कराते रहते हैं उप डाकपाल:
इस जिले में आधा दर्जन से अधिक उप डाकपाल ऐसे हैं जो निरंतर इसी जिला में एक उप डाकघर से दूसरे उप डाकघर में अपना स्थानांतरण कराकर मौज उड़ाते रहते हैं। चर्चा है कि इस मामले में दुमका के डाक अधीक्षक या वरीय डाक अधीक्षक से मिलीभगत करके उप डाकपाल मनचाहे डाकघर में अपना स्थानांतरण करवाते रहते हैं। केंद्र सरकार का प्रतिष्ठान होने के बावजूद उप डाकघरों के उप डाकपाल को दूसरे जिले में स्थानांतरित नहीं किया जाना अपने आपमें एक बहुत बड़ा सवाल है। क्यों नहीं डाक अधीक्षक उप डाकपाल को अपने डिवीजन के अंतर्गत दूसरे जिले में स्थानांतरित करते? बताया जाता है कि स्थानांतरण में पैसे का जमकर खेल होता है, जिसके बल पर उप डाकपाल एक ही जिला के दूसरे उप डाकघर में अपना ट्रांसफर करवाने में सफल हो जाते हैं।
विभागीय कर्मी के आत्महत्या मामले में पुलिस की जांच 9 दिन में चले ढाई कोस वाली स्थिति में:
करीब एक माह पूर्व जिला मुख्यालय के मुख्य डाकघर के एक प्रभारी ओवरसीयर दिनेश कुमार राय की आत्महत्या मामले में पुलिस की जांच 9 दिन में चले ढाई कोस वाली स्थिति को चरितार्थ करती प्रतीत हो रही है। स्वर्गीय दिनेश राय ने गले में फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। मृतक की जेब से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ था, जिसमें लिखा था कि “मेरी मौत के लिए पंकज कुमार पंकज डाक निरीक्षक जिम्मेवार हैं।”
इस संबंध में मृतक की पत्नी के बयान पर नगर थाना में डाक निरीक्षक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। इस मामले के उद्भेदन के लिए पुलिस अधीक्षक द्वारा एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है। लेकिन हैरत की बात यह है कि पुलिस जांच टीम अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं कर पाई है कि सुसाइड नोट की लिखावट मृतक दिनेश राय की है या नहीं? इस मामले में पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में है। कुछ लोग चर्चा कर रहे हैं कि पुलिस इस मामले को जमींदोज करने की फिराक में है। यही कारण है कि सुसाइड नोट की सत्यता की जांच भी पुलिस अभी तक नहीं करा पाई है।