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विडंबना : नही है सरकार के पास दिव्यांगों के सही आंकड़े ,ऐसे में कैसे देगी दिव्यांगों को सरकार सुविधा ।

असग़र खान/रांची: झारखंड में दिव्यांगों की सही संख्या सरकार के किसी भी संस्था के पास नहीं है. झारखंड राज्य चुनाव आयोग की माने तो 2011 के सेंसेक्स के मुताबिक राज्य में दिव्यांगों की कुल आबादी  का मात्र आठ प्रतिशत ही है. जबकि झारखंड बाल समाज कल्याण विभाग के आंकड़े के अनुसार राज्य में लगभग दो लाख विकलांगता पेंशनधारी हैं. राज्य निःशक्तता आयुक्त कार्यलय के अनुसार राज्य में आधिकारिक तौर पर 4.5 लाख है. लेकिन झारखंड राज्य चुनाव आयोग के पास दिव्यांगों की संख्या मात्र 53 हजार ही है.

दरअसल राज्य के दिय्वांग संस्थाओं का कहना है कि ऐसे में राज्य का दिव्यांग समाज मुख्यधार से नहीं जुड़ पायेगा, क्योंकि सरकार के पास दिव्यांगों का सही आकंड़ा ही नहीं है. राज्य में दिव्यांगों की संख्या 2011 के जनगणना के मुताबिक लगभग एक लाख और बढ़ी है. वहीं अगर नये कानून के मुताबिक दिव्यांगों की संख्या देखी जाए तो ये दस लाख से भी अधिक हो सकती है.

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राज्य निःशक्तता आयुक्त कार्यलय का कहना है कि झारखंड में आधिकारिक तौर पर दिव्यांगों की संख्या 4,58,024 है, और 2011 की जनगनणा के लिहाज से 59 फीसदी लोगों को दिव्यांगता प्रमाणपत्र दिया जा चुका है. शेष 3 लाख दिव्यांगों की क्ष्रेणी में वैसे भी लोग हैं जो संपन्न घराने आते हैं, या फिर पलायन कर गए हैं.

दिव्यांग संस्थाओं का कहना है कि क्योंकि 2001 की जनगणना में झारखंड में दिव्यांगों की संख्या लगभग 4.5 लाख थी. यही 2011 में बढ़कर 7,69,980 हो गई. अब अगर केंद्र सरकार द्वारा दिव्यांगों के लिए बनाए गए नये कानून के मुताबिक दिव्यागों की गिनती की जाए तो स्वाभाविक है कि संख्या में काफी वृद्धि होगी. गौरतलब है कि नये कानून के तहत दिव्यांगों की श्रेणी सात प्रकार से बढ़ाकर 21 प्रकार कर दी गई है. कुल मिलाकर ये स्पष्ठ है कि सरकार के किसी भी संस्था के पास राज्य के दिव्यांगों का सही आंकड़ा नहीं है.

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इधर इसी वर्ष के सितंबर महीने में चुनाव आयोग को प्राप्त हुई दिव्यांग मतदाता सूची को लेकर कई दिव्यांग संस्थाओं ने इतराज जताया है. झारखंड विक्लांग मंच के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ने चुनाव आयोग के आकंड़े को गलत ठहराते हुए मांग की है कि इसका फिर से सर्वे किया जाए, और भारी संख्या में जो दिव्यांग छूट गए हैं, उन्हें जोड़ा जाए. इनका मानना है कि राज्य में दिव्यांगों की आधी आबादी सरकारी सुविधाओं से वंचित है. नये कानून को लागू किया जाए तो दिव्यांगजन की संख्या दोगनी हो जाएगी.

हालांकि इस बात से झारखंड राज्य निःशक्तता आयुक्त सतीश चंद्रा भी सहमत हैं. इन्होंने कहा, चुनाव आयोग की सूची पर मैंने भी एतराज जाताया है. ये जल्दी में जिला समाज कल्याण पदाधिकारी के द्वारा को चुनाव आयोग को उपलब्ध कराई गई मतदाता सूची है. ये संभव ही नहीं है कि अधिकारिक तौर पर 4.5 लाख दिव्यांग मतदाता सूची में सिर्फ 53 हजार ही हों. इनकी संख्या कम से कम तीन लाख होनी चाहिए. विरोध के बाद झारखंड चुनाव आयोग ने बाल समाज कल्याण विभाग एवं सभी जिलों के समाज कल्याण पदाधिकारी को निर्देश दिया है कि छूट गए मतदाताओं का नाम दर्ज किया जाए.

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लेकिन राज्य के दिव्यांगजन की समास्या सिर्फ यहीं तक नहीं है. भले ही राज्य निःशक्तता आयुक्त कार्यलय में अधिकारिक तौर दिव्यांगो की संख्या 4.5 लाख से अधिक हो, लेकिन विक्लांगता पेंशन दो लाख को ही मिल पाता है. निःश्कता आयुक्त शतीश चंद्रा इसे समास्या मानते हैं, लेकिन वोह कहते हैं कि दिव्यांयों से जुड़ी ऐसी कई समास्याओं को कार्यलय की ओर शिविर लगाकर दूर किया जा रहा है. पेंशनधारियों की भी संख्या बढ़ रही है. वहीं राज्य सरकार की स्कीम और योजनाओं का लाभ दिए जाने की दिशा में कार्यालय काम कर रहा है.

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गौरतलब है कि नया कानून दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम 2016 स्वामी विवेकानंद प्रोत्साहन भत्ता के तहत प्रति माह 600, इंदिरा गांधी पेंशन, सरकारी नौकरियों चार प्रतिशत आरक्षण, उच्च एवं व्यवसायिक शिक्षा में पांच प्रतिशत आरक्षण  और सभी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों व योजनाओं में पाच प्रतिशत आरक्षण है. जबकि नये कानून के तहत दिव्यांग के सात प्रकार को बढ़ाकर 21 प्रकार का कर दिया गया है.

दिव्यांगों की 21 श्रेणियां

(1) मानसिक मंदता-समझने व बोलने में कठिनाई.

(2) ऑटिज्म-गुमसुम रहना, आंखें मिलाकर बातें नहीं करना, किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई.

(3) सेरेब्रल पल्सी- पैरों में जकड़न, चलने में कठिनाई,हाथ से काम करने में दिक्कत.

(4) मानसिक रोगी-अस्वाभाविक व्यवहार, खुद से बात करना, मति भ्रम, किसी से डर या भय.

(5) श्रवण बाधित-बहरापन, ऊंचा सुनना या कम सुनना.

(6) मूक नि:शक्तता-बोलने में दिक्कत, सामान्य बोली से अलग बोलना, बोली कोई समझ नहीं पा रहा हो.

(7) दृष्टि बाधित-देखने में कठिनाई, पूर्ण दृष्टिहीन.

(8) अल्प दृष्टि-कम दिखना, 60 वर्ष से कम आयु की पहचान नहीं कर पाना.

(9) चलन नि:शक्तता-हाथ या पैर या दोनों की नि:शक्तता.

(10) कुष्ठ रोग से मुक्त-हाथ या पैर या अंगुलियों में विकृति, टेढ़ापन, शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे, हाथ या पैर या अंगुलियां सुन्न हो जाना.

(11) बौनापन-व्यक्ति का कद व्यस्क होने पर भी 4 फुट10 इंच या 147 सेमी या इससे कम होना.

(12) तेजाब हमला पीड़ित-तेजाब हमले से शरीर के अंग, हाथ, पैर, आंख समेत अन्य अंगों का क्षतिग्रस्त या असामान्य होना.

(13) मांसपेशी दुर्विकास-मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति.

(14) स्पेसिफिक लर्निंग डिसएबिलिटी-बोलने, सुनने,लिखने, साधारण जोड़, गुणा, भाग में आकार, भार, दूरी इत्यादि समझने में परेशानी.

(15) बौद्धिक नि:शक्तता-सीखने, समस्या का समाधान एवं तार्किकता इत्यादि में कठिनाई, अनुकूल व्यवहार में दिक्कत.

(16) मल्टीपल स्कलेरोसिस-दिमाग एवं रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी.

(17) पार्किंसंस रोग-हाथ, पैर, मांसपेशियों में जकड़न,तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी दिक्कत.

(18) हीमोफिलिया (अधिरक्त स्त्राव)- चोट लगने पर अत्यधिक खून बह जाना, खून बहना बंद नहीं होना.

(19) थैलेसीमिया- खून में हीमोग्लोबिन की विकृति,खून की मात्रा कम होना.

(20) सिकल सेल रोग- खून की अत्यधिक कमी, खून की कमी से शरीर का अंग खराब होना.

(21) बहु नि:शक्तता- दो या दो से अधिक नि:शक्तता से ग्रसित होना.

मैं हूँ गोड्डा के लिए असग़र खान की रिपोर्ट 

असग़र एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और बीबीसी एवं द वायर के लिए लिखते हैं ।

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