कोरोना वायरस को लेकर आज की तारीख़ के दो अपडेट हैं- एक ये कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। दूसरा ये कि इसके कारण इटली एक कम्प्लीट लॉकडाउन में चला गया है।
अगर हम कोरोना वायरस को एक वैश्विक महामारी की तरह देखते हैं और उससे चिंतित हैं तो हमें चीन नहीं इटली की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। चीन में वह स्थानीय बीमारी थी, इटली में वह वैश्विक रोग है। मेरे सामने विश्व स्वास्थ्य संगठन की 11 मार्च की रिपोर्ट है, जो बतला रही है कि कोरोना वायरस से चीन में अब तक 3162 मौतें हुई हैं और इसके बाद इटली का नम्बर आता है, जहां अब तक इससे 631 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। यह 3 दिन पुराना आंकड़ा है। 12 मार्च की रिपोर्ट इटली में मृत्युओं का आंकड़ा 31 प्रतिशत की नाटकीय बढ़ोतरी के साथ 827 बतला रही है। यह विनाश की चक्रवृद्धि गति है। यह किसी भी ग़ैर-चीनी, ग़ैर-एशियाई देश के लिए बहुत बड़ा आंकड़ा है। तीसरे नम्बर पर ईरान है, जहां 290 मृत्युएं हुई हैं।
जब पहले-पहल हमने कोरोना वायरस का नाम सुना था, तो इसे वुहान-विषाणु कहकर पुकारा था। यह चीन के एक प्रांत में फैल रहा था। हमने इसके लिए चीन की खानपान की आदतों को दोषी ठहराया था। मेरी टाइमलाइन पर 31 जनवरी को लिखी गई पोस्ट है, जिसे ख़ूब पढ़ा गया। किंतु हमें स्वीकार करना होगा कि 31 जनवरी को हममें से कोई भी यह सोच नहीं रहा था कि यह महामारी इतनी तेज़ी से फैलेगी। हम स्वयं को सुरक्षित मान रहे थे।
कल विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव ने कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित करते हुए जो भाषण दिया, उसमें उन्होंने कहा है कि आज की तारीख़ में दुनिया के 118 देशों के 1 लाख 25 हज़ार लोग इस विषाणु से ग्रस्त हैं। अच्छी ख़बर यह है कि अभी भी 77 देश ऐसे हैं, जहां से कोरोना के संक्रमण की कोई सूचना अभी तक नहीं मिली है। किंतु वे कब तक इससे बचे रहेंगे? अगर वे वैश्वीकरण के समक्ष लाचार हैं तो देर-अबेर यह विषाणु उन्हें जकड़ लेगा। अगर यह विषाणु पहले ही वहां पहुंच चुका है तो कौन जाने इसे कितने लोगों तक सीमित रखने में सफलता मिलेगी।
जब मैंने देखा कि इटली में 827 लोग कोरोना वायरस से दम तोड़ चुके हैं, जो कि चीन में हुई मृत्युओं का एक-चौथाई है, तो भूमण्डलीकरण के इस अंधेरे पहलू ने मुझको निराशा से भर दिया। कोरोना से अब जाकर मैं सर्वाधिक चिंतित हुआ हूं। ये सच है कि इटली शीत-प्रधान देश है, भारत वैसा नहीं है, फिर भी यह दु:खद है कि जो बीमारी एक गांव से दूसरे गांव नहीं पहुंचना चाहिए थी, वो आज वैश्वीकरण की कृपा से दुनिया में फैल रही है और कोई इसे रोक नहीं पा रहा है। हम वैश्वीकरण के सामने लाचार हो चुके हैं। वैश्वीकरण का एक आयाम ग्लोबल मार्केट भी है और आज पूरी दुनिया के बाज़ार में आप शॉक-वेव्ज़ महसूस कर सकते हैं। महामारी अपने साथ महामंदी को लेकर आएगी। मृत्युबोध, नैराश्य, व्यामोह और असहायता- जो कि आधुनिक मनुष्य के चार बुनियादी गुण हैं- (अगर आप भारतीय हैं तो इसमें पांचवां गुण जोड़ लीजिये- मसखरी) – इस महामारी के सामने मुंह बाए खड़े होने पर अपनी पूरी आदिम त्वरा से उभरकर सामने आ रहे हैं।
प्राणघातक विषाणु चीन से इटली कैसे पहुंचा? द गार्डियन बतलाता है जनवरी के अंत में इटली में कोराना वायरस के तीन मामले पाए गए थे। इनमें से दो चीनी पर्यटक थे, जो चीन-देश से अपने साथ यह तोहफ़ा लेकर यूरोप पहुंचे थे। रोकथाम की जो कोशिशें इटली में तब की जा सकती थीं, की गईं, किंतु फ़रवरी के महीने में उत्तरी इटली में रोग चुपचाप फैलता रहा। 18 फ़रवरी को इटली के कोन्डोंग्या में 38 वर्ष के एक स्वस्थ व्यक्ति में कोराना के लक्षण दिखलाई दिए। उसका चीन से कोई वास्ता नहीं था। आज उसे इतालवी मीडिया के द्वारा पेशेंट-वन कहकर पुकारा जा रहा है। वह 36 घंटे बिना इलाज के रहा। इससे भी बढ़कर, वह इस अवधि में सार्वजनिक सम्पर्क में रहा और अनजाने ही अपने से मिलने वाले लोगों को संक्रमित करता रहा। आज एक महीने से भी कम समय के बाद इटली में 10 हज़ार से ज़्यादा लोग संक्रमित हैं और 800 से अधिक की मृत्यु हो चुकी है। चीन से कहीं अधिक ठंडा मुल्क होने के कारण वहां पर कोरोना का स्ट्राइक रेट 10 फ़ीसद की घातक दर को छू रहा है। मात्र दो टूरिस्टों ने चीन से हज़ारों किलोमीटर दूर मौजूद यूरोप को सहसा एक वैश्विक महामारी के सामने एक्सपोज़ कर दिया।
भारत देश में यह विषाणु 30 जनवरी को पहुंचा। बतलाने की आवश्यकता नहीं- चीन से। केरल में वुहान विश्वविद्यालय के एक छात्र के साथ इसकी आमद हुई। केरल के बाहर पहला मामला दूसरी मार्च को पाया गया। यह, ज़ाहिर है, इटली से लौटे एक व्यक्ति में था। फिर जयपुर, हैदराबाद और बेंगलुरु में मामले सामने आए। दुनिया में जिन तीन देशों में कोरोना का प्रकोप सबसे अधिक है- चीन, इटली और ईरान- अब वे शेष विश्व के लिए कोरोना के निर्यातक बन चुके हैं। एक से दो, दस से हज़ार, हज़ार से असंख्य की यह मल्टीप्लाइंग चेन-रिएक्शन है। आज दुनिया की आबादी 7.7 अरब है और सवा लाख संक्रमित लोग आबादी का बड़ा छोटा प्रतिशत हैं, किंतु महज़ तीन माह पूर्व तक यह केवल चीन-देश के एक प्रांत की फेफड़ाजनित बीमारी भर थी। वैश्विक सम्पर्क के इस कालखण्ड में आणविक विस्फोट की तरह इसका प्रसार हो सकता है। मुसीबत यह है कि जब आप घबड़ाकर तालाबंदी पर आमादा हो जाते हैं, जैसे कि इटली में हुआ है, तो इससे ग्लोबल इकोनॉमी, जो कि अत्यंत क्षणभंगुर परिघटना है, तीव्रगति से विषाद में चली जाती है। और सेवा क्षेत्र का फुगावा फूटने लगता है।
हज़ार तरह की कॉन्स्पिरेसी थ्योरियां भी चलन में हैं। यह कि चीन-देश जैविक हथियारों का प्रयोग कर रहा था और उसके विफल रहने का यह दुष्परिणाम है। यह कि यह सब झूठ है (ग्लोबल वॉर्मिंग की तरह?) और इसके पीछे मास्क और सेनिटाइज़र का बाज़ार है। यह कि ज़ुकाम-नज़ला जितने लोगों को मारता हे, कोरोना की भी वही मारक क्षमता है। किंतु इटली के आंकड़े मुझको चिंतित कर रहे हैं। खेल-आयोजनों पर इसकी मार दिखने लगी है। शायद जब भारत में आईपीएल पर इसकी मार पड़ेगी, तभी जाकर यहां के लोगों को इसकी गम्भीरता का अहसास होगा। चीज़ों को समझने के भारत के अपने मानदण्ड हैं।
- जब हमें भोजपुरी गीतों, सस्ते चुटकुलों, गंदे खानपान-रहनसहन पर गर्व और त्योहार की हुड़दंग से फ़ुरसत मिले, तब शायद हम सतर्कता को गम्भीरता से लेंगे। हर चीज़ में मसखरी भली बात नहीं है। चुटकुला-प्रधान देश अगर महामारी को लेकर थोड़ा-सा अधिक सचेत हो जाएगा तो दुनिया में उसकी नाक नहीं कट जाएगी।
शुशोभित (लेेखक,सह संपादक अहा जिंदगी)