गोड्डा अब नगर परिषद चुनाव के रंग में रंगने जा रहा है। धीरे-धीरे कुछ रंग पक्के हो रहे है तो कुछ रंग उतरते जा रहे है।
शुरुआती दौर में लगा कि ये आम चुनाव की तरह ही होगा लेकिन अब लगने लगा की ये चुनाव सबसे अलग होगा। पहले विचार मन मे रह जाती थी या फिर कुछ लोगों तक ही पहुँच पाती थी लेकिन अब सूचना तंत्र में क्रांति आयी है।
वोटर या समथर्क बेबाकी से अपनी बात को रख रहे हैं। विरोध या समर्थन खुलेआम हो रहा है। विचारधारा से सहमति रखने वाले आज खुले आम अपने दल के प्रत्याशी के खिलाफ लिख रहे है और अपने चहेते प्रत्याशी के पक्ष में लिख रहे है। वैसे ही कुछ लोग विचारधारा से असहमत होते हुए भी प्रत्याशी के पक्ष में लिख रहे है। कुछ लोग व्यक्तित्व को आगे कर रहे है तो कुछ लोग पिछले 10 साल के कामकाज का रिपोर्ट देख रहे है।
विपक्ष को दोहरा मुद्दा मिला है। एक ये की जिस प्रत्याशी से उनकी टक्कर हैं वो पिछले 10 साल से उस पद पर काबिज है और दूसरा की वो भाजपा का प्रत्याशी है।पूरे चुनाव को केंद्र से लेकर स्थानीय विफलता से जोड़ कर पेश कर रहे हैं । खैर चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप चलते रहता है लेकिन सबसे आश्चर्य ये लग रहा है कि कुछ लोग इस चुनाव में वैसे दलों का प्रचार कर रहे है जिनसे आज तक उनके खानदान का कोई शख्स नही जुड़ा था। यानी लाख कुछ भी कह लीजिए कुछ चीजें नहीं बदलती है।
कुछ चीजें सोशल मीडिया में पढ़ने में अच्छी लगती है लेकिन वास्तविक जीवन से उसका कोई सरोकार नही होता है।
सभी प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को शुभकामनाएं।
अभिजीत तन्मय की कलम से