संजीव झा/गोड्डा : चुनावी महासंग्राम जैसे-जैसे नजदीक आते जा रही है सियासी गर्माहट दिनोंदिन बढ़ती जा रही । गोड्डा लोकसभा की बात करें तो अभी तक दो प्रत्याशी कद्दावर होकर मैदान में जमे हैं । एक ओर भाजपा लगातार तीसरी बार जीत का जश्न मनाने यानी हैट्रिक की राह पर खड़ी है। वही सभी विपक्षी दल महागठबंधन की छांव में जेविएम के बल पर भाजपा के जीत अभियान को रोकने में लगी है। हालांकि चुनाव दौर में अभी से जीत हार का आकलन कर पाना काफी मुश्किल है । लेकिन दोनों ही प्रत्याशी अपनी अपनी जीत सुनिश्चित को लेकर लगातार सघन जनसंपर्क में लगे हैं ।
इधर भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे की बात करें तो दो बार के विजेता यह खिलाड़ी वर्ष 2019 में हैट्रिक लगा कर नरेंद्र मोदी की टीम को फिर से मजबूती करने की फिराक में है । निशिकांत दुबे यदि इस बार फिर से जीतने मे सफल होते है तो यह
हैट्रिक गोड्डा लोकसभा के इतिहास में दूसरी हैट्रिक होगी जो भाजपा के ही जगदंबी प्रसाद यादव ने लगाई थी । लेकिन उस हैट्रिक की बात करें तो वह महज 4 वर्षों के अंतराल में ही तीन-तीन चुनाव के परिणाम थे। जहां जगदंबी प्रसाद यादव ने लगातार
तीन बार जीत दर्ज की थी।गोड्डा लोकसभा चुनाव के इतिहास में वे अकेले ऐसे व्यक्ति रहे जिन्होंने चार बार सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। पहली बार इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस से खफा लोगों ने वर्ष 1977 में जगदंबी प्रसाद यादव को लोकदल के टिकट पर गोड्डा लोकसभा का सांसद चुना था । वहीं भाजपा ने 1996 में 1977 के हीरो रहे जगदंबी प्रसाद यादव को अपने पार्टी से खड़ा किया और उन्होंने 96, 98 एवं 99 में हुए लगातार चुनाव में अपनी जीत दर्ज कर भाजपा की ओर से हैट्रिक लगाई थी । गोड्डा लोकसभा चुनाव के 67 वर्षों के इतिहास में लगातार तीन बार जीत किसी ने दर्ज नहीं की थी। हालांकि जगदंबी प्रसाद यादव का कार्यकाल भाजपा में महज 6 वर्षों का ही रहा था।लेकिन निशिकांत दुबे की बात अलग है उन्होंने 2009 में चुनाव जीता फिर 2014 में भी गोड्डा लोकसभा के सांसद बने । अब तक उन्होंने 10 वर्षों के सांसद का कार्यकाल को पूरा कर चुके हैं । अगर इस बार वह जीत सुनिश्चित करते हैं और हैट्रिक बनाते हैं तो शायद सबसे लंबा कार्यकाल गोड्डा लोकसभा में निशीकांत दुबे का ही रहेगा ।
इधर बात करें प्रदीप यादव की तो इस बार महागठबंधन के छतरी के नीचे जेविएम के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं । हालांकि सांसद के रूप में उनका कार्यकाल भले ही कुछ वर्षों का रहा हो लेकिन राजनीति दाव पेच में वे माहिर खिलाड़ी हैं । वर्ष 2002 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया । वर्ष 2004 से 2014 तक हुए तीन-तीन संसदीय चुनाव में उन्होंने मजबूत दावेदारी पेश की जहां हर बार उनका दूसरा या तीसरा स्थान रहा ।
भले ही कुछ वोटों के अंतर से जीत उनके पाले में नहीं आ सकी लेकिन गोड्डा संसदीय क्षेत्र के हर एक पहलू से वाकिफ हैं । इस बार फिर से महागठबंधन के साथ चुनाव मैदान में हैं। और कोई नया गुल खिलाने का मद्दा भी रखते हैं।
बहरहाल अभी तो चुनाव में विलंब है। गोड्डा लोकसभा में अंतिम चरण में होने वाले चुनाव के लिए एक माह से अधिक का समय है । ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आगामी 23 मई को ही सामने होगा।