बामुलाहिजा होशियार !
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मुगल और अंग्रेज चले गए लेकिन मुगलिया तथा लार्ड साहबी छोड़ कर गए और कुछ पदाधिकारी आज भी इसी भ्रम में है कि वह उन्हीं के DNA हैं।आये दिन जिला के एक सर्वोच्च शिक्षण संस्थान में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जहां एक पदाधिकारी अपने पद की नशे में गुरु की गरिमा को तार तार करते नजर आए। जो कार्य गुड़ की मिठास से हो सकती थी उसके लिए जहर निकालना यह लार्ड साहबी नहीं तो और क्या है?
आश्चर्य तो तब होता है जब इतने घृणित कार्य होते हैं पर ऐसे कार्यों के लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण में बैठकर निराकरण करने के बजाय वरीय पदाधिकारी व बुद्धिजीवी तमाशा देख रहे हैं । क्या यही है मोदी के सपनों का श्रेष्ठ भारत । क्या इन्हीं पदाधिकारियों के भरोसे हम कुशल वह स्वस्थ प्रशासन देने की वादा जनता से करेंगे ?
क्योंकि आज यहां कोई नेता अपमानित नहीं हुआ है। आज विधायिका नहीं हारी है । पराजित हुई है तो शासन प्रशासन का विश्वास और भरोसा।
नए बरसात का पानी जब नदियों में आता है तो छिछले नदी में दोनों किनारों को तोड़कर पानी मैदानी भागों में फैल जाती है लेकिन जो नदी गहरी होती है वह पानी को अपनी गहरी धारा में समेटते हुए किनारों को बचाते हुए निकल जाती है। शायद यह सीख छिछली प्रशासन को लेना चाहिए !