स्मृति विशेष :बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे बन्दनवार गांव के आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी । – मैं हूँ गोड्डा- maihugodda.com
Home / संपादकीय / स्मृति विशेष :बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे बन्दनवार गांव के आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी ।

स्मृति विशेष :बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे बन्दनवार गांव के आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी ।

पंडित अनूप कुमार वाजपेयी/सालती हैं जिनकी यादें आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी का देहांत हुए आज 16 साल बीत गये मगर उनके सानिध्य में रहे लोगों को आज भी सालती रहती हैं उनकी यादें। साले भी क्यों न ? जिसने भी उनके सानिध्य में थोड़ा समय बिता लिया उनका मुरीद हो गया अनूठे गुणों से आप्लावित होकर। शब्द सधे हुए, भाषा सधी हुई, चलने-बोलने के अंदाज़ निराले और बात-बात में हँसाकर लोट-पोट कर देने वाली शख्सियत थी उनकी। यूँ कहें कि एक विद्वान-विदूषक की छवि वाले भी थे वे, सरस्वती के उपासक थे, जिन कारणों से उनके नाम के आगे “आचार्य” की उपाधि लगना स्वाभाविक था।

आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी का जन्म हुआ था 7 अगस्त, 1937 ईसवी को बिहार राज्य स्थित गोड्डा के निकट बन्दनवार नामक एक गाँव के वैसे साधारण परिवार में जिसे सरस्वती मिली है विरासत में।
बिहार राज्य के विभाजन से हाल के समय में एक और राज्य बना है झारखण्ड। गोड्डा अब झारखण्ड में है। समय के साथ गोड्डा की पहचान बनी एक ज़िला के रूप में, जिसमें है बन्दनवार।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी की पहचान है घर-गाँव में ‘सरलू बाजपेयी’ नाम से। लक्ष्मी कान्त वाजपेयी था इनके पिता का नाम और माता का नाम केशरवती देवी। पिता जाने-माने शिक्षाविद् थे।
आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी की पारिवारिक पृष्ठभूमि में उनके पितामह पंडित रामचरण वाजपेयी “काव्यतीर्थ” को भी कतई नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता क्योंकि वे बीसवीं सदी के प्रारंभिक दौर में हिन्दी, अवधी, ब्रजभाषा के दीप्त कवि थे। बंग्ला के भी विद्वान थे, और, थे शिक्षाविद्। इतना ही नहीं, पंडित रामचरण वाजपेयी के भी पिता थे शिक्षाविद्। आचार्य थे, संस्कृत के, जो थे पंडित गुरुचरण वाजपेयी।

शिक्षा
स्नातक प्रतिष्ठा – संस्कृत में- 1956 ई.
स्नाकोत्तर (आचार्य) – पाली में- 1958 ई.
(प्रथम श्रेणी में पहला स्थान)
स्नाकोत्तर एम. ए. – पाली में-
1960 ई.
डिप्लोमा इन एजुकेशन – 1963 ई.
एल.एल. बी.

अनुसंधानकर्त्ता के रूप में
भारतीय संस्कृति के आलावा पाली साहित्य, संस्कृत, हिन्दी के अध्येता थे। एक चरचित शोधकर्त्ता के रूप में पहचान बनायी।
पाली त्रिपिटक के देवनागरी प्रकाशन में भिक्षु जगदीश कश्यप के नेतृत्व में सम्पादकीय मण्डल में सहायक के रूप में तीन वर्षों तक कार्यरत रहे।
बौद्ध साहित्य अध्ययन में अनुसंधानकर्त्ता के रूप में कार्यानुभव के साथ निपुणता हासिल की और फिर देखते ही देखते उनके वैदुष्य की दुदुम्भी बजने लगी। उन्होंने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का भी आध्ययन किया। सुप्रसिद्ध मंदार पर्वत पर खोदी हुई ब्राह्मी लिपि में पंक्तियाँ हों या फिर आसपास इलाके के गुप्त स्थानों में छिपी किसी अन्य लिपि की पंक्तियाँ, खोज-खोजकर उनमें छिपे इतिहास को जानना शुरू किया उन्होंने। देखते ही देखते दूसरे देशों के भी अध्येता पास आने लगे और कई तो ताउम्र सम्पर्क में रहे भी।

जीवन के आरम्भिक दौर में
छात्र जीवन से ही स्तरीय रचनाएँ आरम्भ कीं। अपनी कविताओं-गीतों के माध्यम से एक अलग पहचान बनायी जो बढ़ती ही गयी।
लेखन जगत में कदमबोसी होते ही आश्विन मास में दुर्गापूजा अवसर पर अपने क्षेत्र में लगने वाली ‘बारकोप मेला’ पर गीत रचकर एवं कुछ व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से खूब सुर्खियाँ बटोरीं। उन्हें प्रकाशित भी कराया नालन्दा से, और गाँव-समाज में प्रतियाँँ वितरित कीं।
बारकोप मेला पर गीत के बारे में उन्होंने लिखा है :-
“तर्ज- मन डोले मेरा तन डोले।”
द्रष्टव्य हैं गीत की कुछ पंक्तियाँ :-
“बारकोप मेला ठेलमठेला
चलु सखि देखन आज हे
मन ना मानै बिन देखे
सुनै छिये उठै छै दुरगा मैया
मंडप में सज-धज के..।”
आंचलिक खोरटा यानी अङ्गिका भाषा का भी पुट है इस गीत की पंक्तियों में तो दूसरी ओर “देख तेरे संसार की हालत” तर्ज पर रचित एक गीत तो लोक-कण्ठों में जा बसा। द्रष्टव्य हैं इसकी भी कुछ पंक्तियाँ :-
दिन-भर थक के चूर हुआ अब सोने दे भगवान्,
क्यों तुम करते हो परेशान।
ऊपर मच्छर नीचे खटमल मिल के मारे जान,
क्यों तुम करते हो परेशान।।
लाखों कोशिश करके हारा,
मच्छर ने तो जान ही मारा,
धूआँ करके घर में बिखेरा,
भाग न पाये फिर भी लुटेरा।।सुबह-शाम मैं देता हूँ डी. डी. टी. छिड़कान,
अब सोने दे भगवान्।।
कुश्ती होती नित्य बिछौने खटमल और इन्सान ,
अब तो सोने दे भगवान्।।”
इतना ही नहीं, एक अन्य गीत “ओ भोज खाने वाले लोटा न भूल जाना” भी गाँवों में चरचित हुआ जिसे लोगों ने नाटकों के मंचों पर भी खूब गाया मगर इन सब रचनाओं के पूर्व 1952 ईसवी में छात्र विश्वनाथ ने अपने गाँव बन्दनवार में एक पुस्तकालय की स्थापना कर डाली थी जिसका नाम दिया था “आदर्श पुस्तकालय।” नित्य ससमय खुलाता वह पुस्तकालय जो उनके पैतृक घर के एक हिस्से में था। वर्षों चला, मगर अब मुट्ठीभर लोगों की स्मृति में है वह पुस्तकालय।
पुस्तकालय की स्थापना के साथ उन्होंने व्यंग्य विधा में एक रचना की जिसका नाम है “बन्दनवार चलीसा।” यह रचना भी प्रकाशित करायी जो बहुचरचित तो हुई परन्तु समय की आवाज ने उसे दरकिनार कर दिया और फिर दुर्लभ हो गयी। बावजूद इसके कुछेक लोक-कण्ठों पर आज के समय में भी कभी-कभार उतरती है वह जो दोहों, सोरठों में विरचित है। शब्दों के जादूगर आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी तन-मन से लगे थे साहित्य सृजन में मगर इसी बीच आया बिहार प्रशासनिक सेवा में दी गयी परीक्षा का परिणाम और चले उसमें सेवा देने।

सरकारी सेवा में
बिहार प्रशासनिक सेवा में मजिस्ट्रेटसी, विकास, राजस्व, कारा, पंचायती राज, परिवहन, साहाय्य एवं पुनर्वास, आदि विभिन्न सेवाओं में उत्तरदायित्वों का दक्षतापूर्वक निर्वहन करते हुए 31 अगस्त, 1995 ईसवी को वे भागलपुर से सेवानिवृत्त हुए। क्षेत्रीय जनगणना उपनिदेशक पद पर भी उन्हें सेवा देने का अवसर मिला। कुल 32 वर्षों तक सरकारी सेवा दी, फिर भी बीतते समय के साथ कुछ कर गुज़रने की जिजीविषा बढ़ती ही गयी चूँकि उसकी बुनियाद बहुत पहले ही पड़ चुकी थी। यही वजह है कि सरकारी सेवा की व्यस्तता के बावजूद एक कठिन यात्रा कर नया कीर्तिमान स्थापित किया।

साहसिक अभियान के आयोजक एवं नेतृत्वकर्त्ता के रूप में
19 जून, 1980 ईसवी से 23 जून, 1980 ईसवी के मध्य बोकारो से लेह (लद्दाख) तक स्कूटर/ बाईक से साहसिक अभियान का सफलतापूर्वक आयोजन तथा उसका नेतृत्व किया। इस यात्रा का नाम था “सी टू स्काई ऑन मोबाईक।”
1980 ईसवी में ही वैष्णोदेवी का दरशन हेतु जम्मू गये। इन यात्राओं के पूर्व 1977 ईसवी में अमरनाथ की दुर्गम यात्रा की जहाँ उन्हें कतिपय दिव्य अनुभूतियाँ हुईं। आकर पूरा वृत्तांत घर-परिवार में बताया और यह भी बताया कि आचानक कैसे वृद्धावस्था को प्राप्त एक देवी ने पहुँचकर उन्हें अमरनाथ का दरशन कराया फिर वह अन्तर्धान हो गयी। आज भी पूरा प्रसंग मुझे अवश्य याद है चूँकि उस समय सुननेवालों में परिवार का सदस्य के नाते मैं भी एक था। कठिन यात्राओं की दास्तान लिखने वाले वे साहसिक पुरुष पर्वतारोही भी थे।

एक पर्वतारोही के रूप में

1969 ईसवी में 15 सितम्बर से 12 अक्तूबर तक पर्वतारोहण में “नेहरू पर्वतारोहण संस्थान” उत्तरकाशी, उत्तरांचल” से आधारभूत प्रशिक्षण प्राप्त किया। पारसनाथ पहाड़ी के साथ-साथ कई पहाड़ियों पर सफलतापूर्वक आरोहण किया। यूँ कहें पहाड़ों-पर्वतों को मित्र बनाया। भरपूर यात्राएँ कीं। अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के अन्तिम भूभाग तक परिभ्रमण किया। न स्वयं नीरस जीवन जीया और न ही आसपास के वातावरण को कभी नीरस रहने दिया। संगीत का भी भरपूर लुत्फ उठाया।

एक संगीतज्ञ के रूप में
एक अच्छे गायक, हारमोनियम वादक के अलावा बाँसुरी वादक भी थे। इतना ही नहीं, तबला-डुग्गी पर भी हाथ फेर लिया करते थे। जीवन के हर लम्हे को आँखों में कैद करना चाहते थे जिस कारण उनके पास तसवीरों का अम्बार लग गया।

एक कुशल फोटोग्राफर के रूप में
महाविद्यालय के समय से ही फोटोग्राफी में अभिरुचि थी। इसी अभिरुचि के कारण अपने गाँव बन्दनवार के अनेक व्यक्तियों की तसवीरें उन्होंने अपने कैमरे में कैद कीं जो आज भी उनके स्वजनों की धरोहरें हैं। जहाँ भी पदस्थापित रहे फोटोग्राफर एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी रहे। साथ-साथ लेखनी भी अनवरत चलती रही। साहित्यिक कार्यों में भी लगे ही रहे।

गम्भीर रचनाएँ
“स्वप्न-जाल” (प्रकाशित, जिसमें हैं उनकी कविताएँ।)
बीडीओ दरशन, झुमका गिरा रे, बन्दनवार पचासा सहित गद्य और पद्य विधा की 50 से अधिक अप्रकाशित कृतियाँ।

एक अनूठी कृति
अपने अथक परिश्रम से उन्होंने “पाली से संस्कृत और संस्कृत से अंगरेजी शब्दकोश” तैयार किया जो रह गया दुर्योग से अप्रकाशित। जीर्ण-शीर्ण हो रही है वह अमूल्य कृति।

एक सिद्ध आचार्य की भूमिका में
सरकारी सेवा से निवृत्त होने के बाद सिविल सेवा एवं प्रांतीय सिविल सेवा की परीक्षाओं हेतु “पाली एवं हिन्दी” भाषा एवं साहित्य की तैयारी उम्मीदवारों को कराया करते थे देवघर ज़िला के जसीडीह से सटे धर्मपुर मुहल्ला, सिमरिया रोड स्थित अपने निजी आवास पर। जहाँ शिक्षा देते थे उस पावन स्थल का नाम दे रखा था “पाली पीठ।”
सबकुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था परन्तु एक दिन अचानक ईश्वर ने उनके शुभचिंतकों को बड़े सदमे में डाल दिया। क्षण भर में अनन्त पथ के पथिक हो गये आचार्य विश्वनाथ वाजपेयी अपने आवास से। वह स्याह दिन था 2003 ईसवी का 9 जून। विशेषकर साहित्य-सृजन क्षेत्र में उनके अनेक ऐसे सपने थे जो अधूरे ही रह गये। शायद तभी तो उन्होंने अपनी पुस्तक “स्वप्न- जाल” में ही लिख डाला था :-
“तुमुल कोलाहल भरी दुनिया में थका सा मैं नीन्द के एक पल को खोजता हुआ कुसुम-सेज पर अब सोने जा रहा हूँ। सम्भव है नीन्द में केसर-चन्दन से सुवासित कोई सपना दिखे किन्तु अपनी नसीब तो फकत पहरेदारी की है, मालिकाना हक की नहीं।
चन्दन-चर्चित देह-गंध
औ केसर की है क्यारी।
मैंने की है अब तक इनकी
सपनों में रखवाली।”

About मैं हूँ गोड्डा

MAIHUGODDA The channel is an emerging news channel in the Godda district with its large viewership with factual news on social media. This channel is run by a team staffed by several reporters. The founder of this channel There is Raghav Mishra who has established this channel in his district. The aim of the channel is to become the voice of the people of Godda district, which has been raised from bottom to top. maihugodda.com is a next generation multi-style content, multimedia and multi-platform digital media venture. Its twin objectives are to reimagine journalism and disrupt news stereotypes. It currently mass follwer in Santhal Pargana Jharkhand aria and Godda Dist. Its about Knowledge, not Information; Process, not Product. Its new-age journalism.

Check Also

कोरोना अपडेट :कोरोना का रोना रोने से ज्यादा हमे गंभीर होने की है जरूरत,जरूरी जानकारी पढ़ें ।

कोरोना वायरस को लेकर आज की तारीख़ के दो अपडेट हैं- एक ये कि विश्व …

03-28-2024 17:03:01×