अब घर में रहूँ या भाग जाऊँ ये जानकर भी माँ बाप गुस्सा नही करेगा ।
अभिजीत तन्मय/छोटी सी उम्र में गुस्सा और घर से निकल गयी…आंखों में आंसू के रूप में दर्द छलक रहा था!
कोई भी काम कर लेंगे लेकिन घर नही जाएंगे!
मुझे लगा कि किसी बात से खफा होकर घर से निकल गयी होगी समझाने पर समझ जाएगी लेकिन वो घर जाना ही नही चाहती थी।
कारगिल चौक के किनारे बने खादी ग्रामोद्योग के भवन के एक किनारे #सर्वोदय टेलर्स की गली में वो मुझे मिली।
उम्र महज 14 साल की होगी। उसी टेलर्स की दुकान से एक युवक ने मुझे फोन किया था। उस युवक ने मुझे बताया कि दुकान खोलते समय मेरी नजर उस पर पड़ी थी लेकिन मैं ध्यान नही दिया। मुझे लगा कि कोई होगी लेकिन जब कुछ देर के बाद भी उसे उसी जगह पर देखा और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे तब मुझसे रहा नही गया और मैं(युवक) उससे पूछा कि क्यो रो रही हो?
उसके पैर में कीचड़ लगा हुआ था और पैरों में चप्पल भी नही था तब मैंने उसका पैर साफ करवाया और उसे चप्पल खरीद कर दिया। फिर उसे नाश्ता भी करवाया।
तब मैं उस बच्ची से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है और घर से क्यों भागी हो?
उसकी आँखों मे फिर से आँसू आ गए और धीरे से बोली घर रणगांव है।
मैं पूछा पंजवारा के समीप वाला?
वो बोली हाँ!
घर से भागने का कारण, मम्मी पापा चिंता नही करेंगे?
वो बोली नही करेंगे!
एक बार तो गुस्सा आया लेकिन दूसरे ही पल वो आँसू पोछते हुए बोली मम्मी पापा अब इस दुनिया मे नही है।
चाचा के साथ रहती हुँ लेकिन अब नही रहना है। काम करूँगी और चार साल के छोटे भाई को पढ़ाऊंगी!
अब सोचने पर मैं मजबूर था कि ऊपर वाला जब ऐसे लोगो की किस्मत लिखता है तो क्या उस समय स्याही खत्म हो जाती है!
नाबालिग लड़की जिसे दुनिया की सच्चाई की कोई समझ ही नही है वो काम करने निकल गयी है। ये तो भला हो कि उसपर किसी भले इंसान की नजर पड़ गयी वर्ना बहुत कुछ अनर्थ भी हो सकता था!
अब मेरी जिम्मेदारी बढ़ चुकी थी। सबसे पहले एसडीपीओ रवि कांत भूषण को सूचना दिया। उन्होंने महिला थाना से संपर्क करने को कहा। तब मेरी बात बाल संरक्षण पदाधिकारी से हुई जिन्होंने मुझे बताया कि उस बच्ची को महिला थाना ले जाइए और थाना के द्वारा बाल संरक्षण समिति के किसी सदस्य को इसे सौंप दिया जाएगा।
बाद में बाँका जिला के बाल संरक्षण समिति को इस बच्ची के परवरिश के लिए उसके रिश्तेदारों पर दवाब बनाने का काम किया जाएगा साथ ही साथ सरकार के द्वारा ऐसे बच्चे जिनके परवरिश में परिवार वाले सक्षम नही होते है उन्हें 2 हजार रुपये महीना आर्थिक सहायता दिया जाता है।
इस बच्ची के माता-पिता कोई नही है। एक चार साल का मासूम छोटा भाई है अगर इसे और उसके भाई को ये राशि मिल जाये तो उसे काम करने की जरूरत भी नही पड़ेगी और उसके रिश्तेदार उनदोनो बच्चों को भार भी नही मानेंगे।
इस बात का भरोसा दिलाने पर वो बच्ची महिला थाना जाने को तैयार हो गयी। मेरे साथ वो युवक मो. इम्तियाज भी गए
रणगांव,पंजवारा बाँका की रहने वाली वो बच्ची जिसका नानी घर सबलपुर, बौंसी है वो वहाँ भी जाना नही चाहती है।
इतनी छोटी उम्र में माता पिता का साया ऊपर वाले ने छीन लिया लेकिन स्वाभिमान कूट कूट कर भर दिया है।
बस अब दुआ कीजिये कि जल्द से जल्द उनदोनो बहन-भाई को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता मिलने लगे।
हालांकि बच्ची को बाँका बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया है।