आदिवासी महिला रो रही गढियाली आंसू।
गोड्डा जिला में प्रस्तावित अडानी पावर प्लांट के लिए यूँ तो सरकार के द्वारा कम्पनी को जमीन हस्तांतरित कर दी गयी है जिसमे कई रैयतों को मुआवजा भी मिल गया है ।
लेकिन आज प्रॉजेक्ट से सटे माली मौजा का जमाबन्दी नम्बर 42 माली संथाली 16 बीघा 16 कट्ठा 7 धुर पर बिना नोटिस एवं मुआवाज़े के ही धानी फसली जमीन को रौंद दिया।
रैयतों का कहना है कि अडानी के ठेकेदारों ने जबरदस्ती जमीन को पोकलेन से रौंदा कई पेड़ को भी उखाड़ दिया। रैयतों का आरोप है कि बिना नोटिस एवं मुवावजे के ही जमीन पर अडानी ने बुलडोजर चलवा दिया ।
जबकि जमीन पर मौजूद अडानी के एरिया ऑफिसर ने कहा कि सरकार द्वारा 166 एकड़ जमीन का LPC मिल चुका है जिसके तहत ही जमीन को एक्वायर किया जा रहा है ।इन विरोध करने वाले रैयत लोगों का भी पैसा आ चुका है ,इन्हें नोटिस भी दिया गया है ।
महिलाएं जमीन के लिए रो रही घड़ियाली आंसू
एक तरफ जहां रैयतों का आरोप है कि 3 दिन पहले एरिया ऑफिसर के द्वारा कहा गया था कि जमीन नही लेंगे तुमलोगों का, लेकिन अचानक आकर पूरे खेत को रौंद दिया।
इस घटना के बाद ग्रामीण आदिवासी महिलाएँ विलाप कर रही है।लेकिन ये आंसू महज एक घड़ियाली आंसू लग रहा है ,क्योंकि वो जमीन के लिए गिड़गिड़ा तो रही है।
लेकिन वहीं उन रैयतों का नाम भी उपायुक्त कार्यालय में दर्ज है जो आज विरोध कर रहे हैं ,उन्हें नोटिस भी भेजा गया था लेकिन मुवावजा लेने कैम्प में नही पहुंचे और आज वही लोग रो रो कर राजनीतिकरण कर मामले को तूल दे रहे हैं ।
कानून के मुताबिक 80%रैयतों की सहमति पर ही मिलता है LPC
भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक 80%प्रतिशत रैयतों की सहमति के बाद ही लेंड पोजिशन सर्टिफिकेट कम्पनी को सरकार देती है ।जो गोड्डा प्रोजेक्ट के लिए कम्पनी को मिल चुका है।
अधिकारी की की माने तो महज चार पांच लोग ही ऐसे बचे हैं ,वो भी वैसे लोग जिन्होंने नोटिस के बावजूद कैम्प में जाकर पैसा नही लिया ।
इन लोगों का विरोध शुरू से है लेकिन कम्पनी को LPC मिलने के बाद वो अपना काम तो करेगी ।नियम के मुताबिक पहले नोटिस के बाद ही ,रैयत को जमीम पर किसी भी प्रकार का फसल नही लगाने का प्रवाधान है ।
लेकिन बावजूद इसके फसल लगाने के बाद बर्बाद हुआ जो नही होना था ।ऐसे रैयतों को पुनः नोटिस भेजकर पैसे लेने को कहा जायेगा ।
क्या आदिवासी हो रहे हैं राजनीतिकरण का शिकार?
ऐसे में सवाल यह लगता है कि कही माली मौजा के कुछ आदिवासी राजनीतिकरण के शिकार तो नही हो रहे हैं ,कहीं ऐसा तो नही की नियम को ताक पर रखकर सारा नीति बनाया गया हो ?
हालांकि ऐसी स्थिति से भी रैयत इनकार कर रहे हैं ,लेकिन कुछ रेटों का कहना है कि पैसा मिलेगा तो जो करना होगा करेगा बिना पैसा का नही चढ़ने दिया जाएगा ।
ऐसे बयानों से साफ जाहीर होता है कि कहीं न कहीं बचे हुए कुछ आदिवासी रैयत की मन से स्वीकृति भी है जो पैसा नही ले पाए हैं।
क्या कहती है उपायुक्त
जिला उपायुक्त किरण कुमारी पासी ने कहा कि माली मौजा के कुछ रैयत का विरोध शुरू से रहा है उन्हें भी नोटिस भेजा गया था, वैसे विरोध करने वालों में तीन चार लोग हैं जो मुवावजा नही लिए हैं ।
उपायुक्त ने कही हैं कि उन्हें फिर से नोटिस भेजा जाएगा और फिर भी नही लेंगे तो उसे टेब्यूलर में कमिश्नरी भेज दिया जाएगा ।
बता दें कि भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक 80 प्रतिशत रैयतों की सहमति के बाद ही सरकार LPC सर्टिफिकेट देती है ।जो अडानी को मिल चुका है ऐसे में कुछ चंद रैयत ही बचे हैं जो मुवावजा लेने से इनकार कर रहे हैं।
अब अगर नोटिस के बावजूद भी उन लोगों का विरोध है तो ये महज एक राजनीतिकरण ही लग रहा है ।