वैज्ञानिकों ने सरकार को लिखा,इस वक्त बन्द हो गोबर,गौ मूत्र ,हवन के औसधि गुणों का प्रचार ।
एक ओर हाल के दिनों में एक वायरस ने विश्व को ऐंड़ी छोटी एक करवा दिया है विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर तमाम वैज्ञानिक इसके एंटी वैक्सीन की तलाश में शोध कर रहे हैं ।कई देशों में लॉक डाउन की स्थिति है लोग बन्द कमरों में रह रहे हैं ।अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है ।
कोरोना नामक वायरस फैलने के बाद भारत मे भी इसके असर दिखने लगे और इससे मौतें भी हुई है।
लेकिन इन सबके इतर भारत मे लोग अंधविश्वास की ओर फिर से बढ़ रहे हैं फिर से अतीत की ओर देश को धकेलने में लगे हैं लोग तरह तरह के मजाक कर रहे हैं ।
इस तरह के दुष्प्रचार हमारे गोड्डा जिले में भी देखने को मिल रहा है ।कुछ लोग गौ मूत्र में इसके इलाज ढूंढने में लगे हैं तो कुछ हवन और ग्रहों के माध्यम से वायरस को खत्म करने के नियम पढा रहे हैं ।एक ओर जहां पूरी दुनियां हलकान है ,वैश्विक महामारी से लेकर भारत मे राष्ट्रीय आपदा घोषित हो चुकी है ,तमाम राज्यों में भीड़ ,आयोजन ,स्कूल कॉलेज या किसी भी प्रकार का लोगों के समूह को इकट्ठा न होने की हिदायत दी जा रही है ।कई राज्यों में तमाम सरकारी कर्यक्रम रद्द हो चुके हैं ।लोगों को पूरी तरह से सतर्क किया जा रहा है लेकिन भारत अफवाहों और अंधविश्वासों की ओर जा रहा है ।
खुले में लकड़ी और पत्तियां जलाने पर प्रदूषण होता है, इसलिए लोगों पर 5000 रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान है, पर इन प्रावधानों को बनाने वाले हवन के धुएं से प्रदूषण रोकने की बातें करते हैं…..
◆वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पांडेय की टिप्पणी ©
जनज्वार। पिछले महीने देश के 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने एक पत्र के माध्यम से सरकार से अनुरोध किया था कि गाय के गोबर और मूत्र में कैंसर जैसे रोगों के इलाज खोजने वाले शोध योजनाओं को बंद कर देना चाहिए। पिछले महीने ही आयुष मंत्रालय, डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और अनेक दूसरे केंद्रीय विभागों ने भावी शोधार्थियों से देसी गाय के गोबर, मूत्र और दूध के औषधीय गुणों को खोजने वाले शोध प्रस्तावना को भेजने का आह्वान किया था, इसी के बाद वैज्ञानिकों ने एकजुट होते हुए यह पत्र लिखा। देश के लगभग सभी अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक इसमें सम्मिलित हैं।
दरअसल आरएसएस-बीजेपी और दूसरे अतिवादी हिन्दू संगठनों का गाय एजेंडा किसी से छुपा नहीं है। पौराणिक कहानियों और ग्रंथों को पूरे विज्ञान का आधार मानने वाले इन लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और देश का दुर्भाग्य यह है कि प्रधानमंत्री के साथ साथ दूसरे मंत्री भी इसी विचारधारा के हैं।
अभी हाल में ही कोरोना वायरस का इलाज भी गोबर और गौ मूत्र में खोज लिया गया, विदेशी मीडिया तो ऐसे दावों को एक चुटकुले की तरह प्रकाशित करता है। कोरॉना वायरस ही नहीं, यहां तो कैंसर और एड्स जैसे रोगों का इलाज भी लोग गोबर में खोज लेते हैं। पिछले वर्ष ही स्वघोषित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने बड़े जोर शोर से प्रचारित किया था कि उनका स्तन कैंसर केवल गोमूत्र के लेप से ठीक हो गया है, जिसका मजाक पूरी वैज्ञानिक बिरादरी ने उड़ाया था।
पर अवैज्ञानिक मिजाज वाले नित नए दावे करते रहते हैं। कोई कहता है, गाय एक चलती फिरती अस्पताल है, दूसरा कहता है कि गाय सांस के साथ ऑक्सीजन छोड़ती है, तीसरा कहता है गाय पर दाएं से बाएं हाथ फिराया तो एक रोग ठीक होगा और बाएं से दाएं हाथ फिराया तो दूसरा रोग ठीक होगा।
इन सबसे दूर हमारे समाज को गाय के फायदे पता है और गावों में इसका उपयोग भी किया जाता है। गोबर से उपले बनाकर चूल्हा जलाया जाता है, गोबर से बायोगैस बनाई जाती है, गोबर से खाद बनती है। गोबर का लेप मिट्टी की दीवारों पर और फर्श पर चढ़ाया जाता है, जो फर्श और दीवारों को ठंडा रखता है। पत्र में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि सरकार की यह योजना अवैज्ञानिक है, और जनता के टैक्स से जुटाई गई राशि को व्यर्थ करने के समतुल्य है।
इस कदम से देश में घर्म आधारित छद्म सोच को बढ़ावा मिलेगा और लोगों में अंधविश्वास पनपेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार किसी विषय पर शोध योजनाओं को स्वीकृति देने से पहले इसकी गंभीर वैज्ञानिक विवेचना की जानी चाहिए। यह एक ऐसा विषय है जिसमें तथ्य नहीं है, यह विज्ञान नहीं है बस श्रद्धा है।
सरकार इससे पहले वर्ष 2017 में भी पंचगव्य के लाभ बताने के लिए शोध योजनाएं आमंत्रित कर चुकी है और अनेक जगह इसपर अनुसंधान किए जा रहे हैं। ऐसे अनुसंधानों का निष्कर्ष पहले से ही तय कर दिया जाता है, और हमारे देश में विज्ञान के नाम पर ऐसा मजाक बार बार किया जाता है।
धर्म को आगे कर विज्ञान को नकारने वाले वैज्ञानिकों की भी कमी अपने देश में नहीं है, और यह पुरानी परंपरा रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के भी कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिक पहले यह सार्वजनिक तौर पर प्रचारित करते थे कि हवन के दौरान हवा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती नहीं बल्कि घटती है। वहां के इस दशक के आरंभ में रहे एक सदस्य सचिव ने तो इस निष्कर्ष के साथ एक शोधपत्र भी प्रकाशित करा दिया था।
विरोधाभास तो देखिए, खुले में लकड़ी और पत्तियां जलाने पर प्रदूषण होता है, इसलिए लोगों पर 5000 रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान है, पर इन प्रावधानों को बनाने वाले हवन के धुएं से प्रदूषण रोकने की बातें करते हैं। घरों में भी जब घी का इस्तेमाल रसोई में किया जाता है तब चिमनी या एग्जॉस्ट को चालू कर दिया जाता है, पर हवन में घी हवा साफ करती है। यही वो वैज्ञानिक हैं जो गोबर को पवित्र मानते हैं, पर जब प्रदूषण अधिक होता है तब इसके जलाने पर पाबंदी लगा देते हैं।
इतना तो तय है कि वास्तविक वैज्ञानिक बस ऐसे ही पत्र लिखते रहेंगे और धर्म को आगे रखने वाले वैज्ञानिक और नेता, जो सरकार चला रहे हैं, वे विज्ञान को पीछे छोड़कर चमत्कार की दुकान सजाते रहेंगे। इससे पहले वैज्ञानिकों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को पत्र लिखा था और उस प्रस्ताव को वापस लेने की अपील की थी जिसमें दवाइयों, टूथपेस्टों और शैंपू में गोमूत्र, गोबर और दूध पर अनुसंधान के लिए पैसा खर्च करने की पेशकश की गई थी। वैज्ञानिकों ने इसे ‘अवैज्ञानिक’ बताया था। वैज्ञानिकों ने कहा था कि विज्ञान मंत्रालय की एक इकाई विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा जारी किए गए प्रस्तावों के लिए बुलावा पत्र “त्रुटिपूर्ण” है और यह भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा की विश्वसनीयता को गंभीर रूप से कम कर देगा।
इनसबके बीच हमारे गोड्डा जिले में भी तरह तरह के आयोजन हो रहे हैं ,लोग बड़ी संख्यां में एकत्रित हो रहे हैं ।अखबारों में धर्म गुरु कोरोना से बचने के उपाय हवन को बता रहे हैं ,तो किसी को गौ मूत्र में ही अस्पताल से लेकर डॉक्टर तक दिख रहा है ।
ऐसे में बड़ा सवाल है कि सरकार या जिला प्रशासन को ऐसी चीजों पर ध्यान क्यों नही है ।
किसी महामारी से बचने के लिए आपको सावधान रहने की जरूरत है ।