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यहां सगाई के बाद होती है पढ़ाई ,पहले पढाई फिर विदाई वाला स्लोगन फेल,बाल विवाह का बड़ा केंद्र है गोड्डा।

राघव मिश्रा/असग़र खान/गोड्डा: ‘बाल विवाह’ भारत में एक बड़ी समस्या है, जिसे रोकने के तमाम प्रयासों के बावजूद यह समस्या कम तो हुई है, लेकिन अभी भी आंकड़े भयावह ही हैं. यूनिसेफ ने इसी वर्ष एक आंकड़ा जारी किया था जिसके अनुसार पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बाल विवाह भारत में होता है. 1.5 मिलियन लड़कियों की शादी 18 साल पूरा होने से पहले हो जाती है. जबकि भारत में शादी की वैध उम्र लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 है. बात अगर अपने देश की करें तो यहां सबसे ज्यादा बाल विवाह राजस्थान में होता है जहां लगभग 51.2 प्रतिशत लोगों का बाल विवाह होता है. बिहार-झारखंड और बंगाल जैसे राज्यों में भी स्थिति अलार्मिंग है. स्वतंत्र पत्रकार मो. असगर खान के साथ स्थानीय पत्रकार राघव मिश्रा ने झारखंड के इस गोड्‌डा जिले से एक ग्राउंड रिपोर्ट की है, जिसके जरिये हमें यह पता चल सकता है कि समस्या कहां तक फैली है और इसपर अबतक लगाम क्यों नहीं कसी जा सकी है ।
गोरगामाा गांव जो बड़ी कल्याणी पंचायत में पड़ता है ,पुलिया पार करके गांव के भीतर दाखिल हुआ और दस कदम आगे बढ़ने पर गांव में एक आंगनबाड़ी केंद्र दिखा, जिसकी रंग छोड़ती दीवारों पर झारखंड सरकार का एक होर्डिंग टंगा मिला. इसमें सबसे ऊपर ‘पहले पढ़ाई, फिर विदाई’ लिखा हुआ था. बायीं तरफ के निचले हिस्से में मुख्यमंत्री रघुवर दास की तस्वीर चस्पा थी.

इसी तसवीर को दिखाते हुए गांव के सुभाष चंद्र झा कहते हैं कि, “ देखिए तसवीर में क्या लिखा है. यहां तो ना पहले पढ़ाई है, ना बाद में. सिर्फ विदाई होती है. बाल विवाह के खिलाफ चाहे जितनी जागरुकता फैलायी जाये, लेकिन आज भी यहां 80 फीसदी बाल विवाह ही होते हैं. समूह में बाल विवाह देखना है तो बैसाख यानी अप्रैल-मई में गांव आइए, फिर हर घर में शहनाई सुनाई देगी.”
गोड्डा शहर से हाईवे 133 पर तकरीबन चार किमी चलने के बाद दाईं तरफ एक मोड़ है, जहां मुश्किल से चार माइल आधी-अधूरी बनी पक्की और पीसीसी सड़क के बाद गोरगामा गांव शुरू हो जाता है. यानी जिला मुख्यालय से गांव की दूरी महज बारह किलोमीटर और कई थानों से भी कमोबेश इतनी ही. लेकिन बावजूद इसके यहां पुलिस-प्रशासन की मुस्तैदी महज खानापूर्ति मालूम पड़ती है.

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गांव में एक मीडिल और पंचायत में दो हाईस्कूल भी है,  पर लड़कियां पांचवीं-छठी जाते-जाते अपने सुसराल और लड़के मजदूरी या खेत में लग जाते हैं. गोरगामा  गांव गोड्डा प्रखंड में ही आता है और  यहां करीब 250 घर हैं. इस गांव की 90 फीसदी से भी अधिक आबादी पिछड़ी जाति के चपोता समुदाय से आती है. इनके यहां बाल विवाह का रिवाज पूर्वजों से चला आ रहा है.

अच्छा-बुरा सरकार तय नहीं करेगी

बातचीत के दौरान मेरी नजर हल्के लाल-पीले रंग की साड़ी पहनी हुई एक वृद्ध महिला पर पड़ी. वो मुझे देख मवेशियों को सानी देना छोड़ देती हैं और पास आकर शंका भरी नजरों से पूछती है-की बात छैय, आरो के छेकें (क्या बात है और कौन हो)? अपना परिचय देने के बाद मैंने जब उनका नाम जानना चाहा तब उन्होंने कहा-

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“बढ़ियां सै लिखौ… नाम नाय बतैभों खाली लिखौ कि बस्ती में एक महिला हयरंग बोलय छैले. भागी जाय छै, बड़का बड़का घरौ करौ लड़का लड़की भागी गेलै आरो बर्बाद होय गेलै. हौं यही बास्तील कहै छियै जबै भागबे करभें तै आपनो सांय कै लय कै भागी जो.  पंद्रा साल होय छै तबै गौना दै दैछिये. जो चलौ जो आपनो घौर. शादी तै हमरा सीनी पांचो सालो में, छवो सालो में, सातो सालो में, आठो सालो में, नवौ सालो में बारो सालो में. पढाई लिखाई तै… पढथौं तो भी नाय पढथौं तो भी, धान कचिया काटे बाला छियों हमरानी.
(बढ़िया से लिखिए, नाम नहीं बताएंगे सिर्फ लिखिए कि बस्ती में एक महिला इस तरह से बोल रही थी. बड़े बड़े घरों के लड़के- लड़कियां भाग रहे हैं और बर्बाद हो जाते हैं. हां इसलिए कहते हैं कि जब भागोगे ही तो अपने पति के साथ भाग जाओ. इसलिए 15 साल होता है तब गौना(गांव की भाषा में लड़की की विदाई) दे देते हैं और कहते हैं जाओ चले जाओ अपने घर. शादी तो हमलोग पांच साल, छह साल, सात साल, आठ साल, नौ साल या 12 साल में कर देते हैं. हमलोगों का बच्चा पढ़ेगा तो भी, नहीं पढ़ेगा तो भी, उसे कचिया (हंसुआ) लेके धान ही काटना पड़ेगा.)

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वे अपना नाम नहीं बताने की जिद पर आखरी समय तक अडिग रहीं, लेकिन बाल विवाह से संबंधित कई सारी बाते बताईं. बताया कि उनकी शादी किस उम्र में हुई उन्हें याद तो नहीं है, लेकिन 18 वर्ष में तीन बच्चों की मां बनने पर आस-पड़ोस से मिलने वाली बधाई की बात वह इस उम्र में भी नहीं भूली हैं.

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भौं तरेरते हुए उन्होंने कहा कि लिखो, सरकार हमको पकड़ने भी आएगी तो उसके समाने भी कहेंगे, तुमलोगों ने टीबी-मोबाइल लाकर बर्बाद कर दिया गरीब के बच्चा को. हमारी और हमारे बाप-दादा की शादी भी पांच साल में हुई है. यह हमारी परंपरा और पूर्वजों की पहचान है. अच्छा-बुरा सरकार थोड़ी ही तय करेगी.” इनके मुताबिक इन्हें ना ही सरकार का डर और न पुलिस का.
इन इलाकों में सरकार के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारे की हकीकत जान पड़ती है. साथ ही बाल विवाह रोकथाम को लेकर सरकार जो दावे करती हैं, उनपर सवाल भी खड़े होते हैं.  गांव वालों के मुताबिक इस गांव में बाल विवाह पुलिस के सामने ही हो जाता है.

गोड्डा में 63 प्रतिशत बाल विवाह
गोड्डा सबसे अधिक बाल विवाह वाला जिला है और झारखंड देश में चौथा. नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफएचएस) के मुताबिक गोड्डा में 63.5 फीसदी बाल विवाह होता है. गढ़वा में 58.8 प्रतिशत , और देवघर में  52.7 प्रतिशत. यह क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं. जबकि देशभर में बाल विवाह के मामले में झारखंड में 38 प्रतिशत  हैं. राजस्थान में सर्वाधिक 51.2 प्रतिशत, बिहार में 49.2 व पश्चिम बंगाल में 45.2 प्रतिशत बाल विवाह होता है.
गोड्डा में भले ही सबसे अधिक बाल विवाह होता हो, लेकिन सीआईडी की रिपोर्ट की माने तो यहां पिछले चार साल में एक भी बाल विवाह नहीं हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार बीते चाल साल में (2014-17) में राज्य में बाल विवाह के मात्र 18 मामले ही दर्ज हुए हैं. इनमें घढ़वा, देवघर में दो-दो मामले दर्ज हुए हैं लेकिन गोड्डा का जिक्र नहीं है.
गौरतलब है कि इसी जिला के बोआरीजोर प्रखंड में जुलाई 2016 में झारखंड के पूर्व भाजपा अध्यक्ष ताला मरांडी और उनके बेटे मुन्ना मरांडी पर बाल विवाह को लेकर मामला दर्ज हुआ था. आरोप था कि बेटे मुन्ना मरांडी ने 11 साल की नाबलिग लड़की से शादी की थी.

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मामला दर्ज नहीं होने के प्रश्न पर जिला बाल सरंक्षण पदाधिकारी कहना है कि चूंकि विवाह होने से पहले सूचना मिल जाती है तो उसे रोक दिया जाता. इसी कारण मामला दर्ज नहीं हो पाता है.
बाल विवाह के रोकथाम को लेकर सरकार और सामाजिक संस्थाओं की जागरुकता अभियान का असर इन इलाकों में देखने को तो नहीं मिला, लेकिन गोरगावा गांव में दस साल तक की बच्चियों की मांग सिंदूर से भरी मिली. यहां लड़कियों के पंद्रह की उम्र में पहुंचते पहुंचते उनके बचपन पर पाबंदी लग जाती है. ग्रामीणों के मुताबिक गोरगामा में बाल विवाह समस्या नहीं बल्कि परंपरा और पूर्वजों की पहचान है.
31 प्रतिशत ड्रॉप आउट
गोरगामा से वापस लौटने लगे तो पड़ोस के रतनपुर गांव के कैलाश फरियत सात साल की बेटी और दो विवाहित भतीजी के साथ पुलिया के किनारे बैठे मिले. दोनों भतीजियों के मांग में सिंदूर भरा देख मैंने कुछ जानना चाहा तो वे चेहरे को छुपाते हुए और किनारे जा खड़ी हो गईं. लोगों ने बताया कि बच्चियों की उम्र 13-14 साल हो रही और ये दोनों छठी क्लास में पढ़ती हैं. लेकिन कैलाश फरियत अगले साल इनकी पढ़ाई छुड़ाकर इनकी विदाई करने की तैयारी में अभी से ही लग गए हैं.
कैलाश फरियत कहते हैं, “इनकी की शादी दस वर्ष में हो गई थी अब अगले साल इनका गौना और छोटकी का ब्याह करना है जिसके जुगाड़ में अभी से ही लगना पड़ेगा. गांव वालों के लिए खेत ही जीविकोपार्जन का साधन है. मगर इस बार खेती पे निर्भर नहीं रह सकते हैं, क्योंकि धान की फसल ठीक नहीं हुई है.
21 वर्ष में आप लड़की की शादी करते हैं तो सरकार मदद देगी और अगर बाल विवाह करेंगे तो दंड, फिर ऐसा क्यों करते हैं?
इसपर पर वे कहते हैं, “क्या करें,  हमलोगों के समाज में 10 साल के बाद कोई लड़की से शादी नहीं करेगा. दूसरे समाज में लड़की नहीं दे सकते हैं. इसलिए दस में ब्याह और 14-15 तक गौना करना पड़ता है. आजकल लड़का-लड़की के भागने का भी डर लगा रहता है.”
इसी सवाल के जवाब में आसपास जमा लोगों में से एक ने बताया कि कल ही पुलिस आई थी. कई बार पुलिस आ चुकी है. पुलिस के सामने ही बाल विवाह हो जाता है. जब इस व्यक्ति की बात रिकॉर्डिंग करनी चाही तो उसने अनुरोध करते हुए मना कर दिया. लेकिन अंत में कहा कि गांव की समास्या यह नहीं है. बल्कि  बेरोजगारी और गरीबी है. बाल विवाह तो हमारे संस्कृति से जुड़ा है.
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 31 प्रतिशत लड़कियां स्कूल सिर्फ इसलिए छोड़ देती हैं, क्योंकि 14-19 वर्ष तक में उनकी शादी करवा दी जाती है.
कम हुए हैं बाल विवाह के मामले दर्ज
बाल विवाह के आंकड़ों और इलाके में इसके रोकथाम के लिए चलाए जा रहे हैं अभियान पर,  जिला बाल सरंक्षण पदाधिकारी रितेश कुमार कहते हैं,  “गांवों में बाल विवाह पहले की तुलना में काफी कम हुए हैं. हमलोग समुदाय के साथ मिलकर-बैठकर इसके विरुद्ध लोगों को जागरूक कर रहे हैं. शपथ दिलाते हैं कि ना वे बाल विवाह करेंगे और न किसी को करने देंगे. कोई चीज धीरे-धीरे खत्म होती है, न कि अचानक. लगातार प्रयास से ही बाल विवाह की प्रथा समाप्त होगी. रही बात मामला दर्ज होने की है तो ताला मरांडी के केस को छोड़ दीजिए तो बाल विवाह का ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है.”
वहीं बाल विवाह के रोकथाम के लिए की जा रही कोशिशों को झारखंड बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर काफी नहीं मानती है. इन्होंने भी पुलिस के समक्ष गांवों में होने वाले बाल विवाह की बात को माना है. कहा कि आयोग के पास चतरा, सरायकेला और पलामू में हुए बाल विवाह में पुलिस की संलिप्तता रही है. इस मामले आयोग ने कार्रवाई हेतु सीनियर अॅाथरिटी को पत्र भी लिखा है.
आगे वे कहती हैं, “राज्य में बाल विवाह में बहुत कमी नहीं आयी है. सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिनकी रिपोर्टिंग तक नहीं होती है. इसके रोकथाम के लिए जिला प्रशासन की टीम लगी हुई, लेकिन मेरा मानना है कि सिर्फ दिशा-निर्देश दे देने से समस्या खत्म नहीं हो जाती है. इसके लिए ग्राउंड लेवल पर काम करने की जरूरत है.”
अन्य जातियों में भी बाल विवाह
गोड्डा के सदर प्रखंड के गोरगामा के अलावा रतनपुर, बड़ी कल्यानी, राजपुरा, चारकाकोल, तरवारा, मंझवारा, ढ़ोडरी परासी समेत लगभग एक दर्जन गांव ऐसे हैं जहां 30-50 फीसदी चपोता जाति की आबादी है.
स्थानीय पत्रकार बरुण मिश्रा बताते हैं कि बाल विवाह की समस्या सिर्फ यहीं तक नहीं सिमटी है. बल्कि गोड्डा के पथरगामा प्रखंड में आने वाले राजौंद कला, राजौंद खुर्द, अम्बा बथान और ठाकुरगंगटी प्रखंड के भागैया और तेतरिया आदि तक पसरी हुई है. इस तरह का विवाह मंडल और मुस्लिम में भी होता है, जिसकी संख्या वैसी नहीं जैसी चपोता जाति में है.
मिश्रा का मानना है कि इसके रोकथाम के लिए जितना प्रचार-प्रसार होता है, वैसा दिखता नहीं है. जब कभी खबर छपती है तब पुलिस की धर-पकड़ शुरू हो जाती है.
सरकार बाल विवाह जैसी समस्या को समाज की कुरीतियां मानती और इसके उन्मूलन को अपनी प्रथामिकता बताती हैं. यही बात मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 29 नवंबर को झारखंड मंत्रालय में आयोजित बाल विवाह उन्मूलन हेतु कार्य योजना कार्यक्रम में भी दोहराई. अब इसे खत्म करने का नया एक्शन प्लान तैयार किया है, जिसके तहत पहले से चल रही लाडली लक्ष्मी और कन्यादान योजना खत्म करके सुकन्या योजना शुरु की जाएगी. लेकिन राज्य में बाल विवाह जैसी बड़ी समस्या से निपटने के लिए सरकार ने अलग कोई बजट नहीं रखा है

कौन देगा अपना बेटा

गोरगामा से राजपुरा गांव की दूरी मुश्किल से तीन किलोमीटर है. गांव के बीचों-बीच सुधीर मंडल का मकान है, जिसके बगल में सीता राम की राशन की दुकान है. दुकान पर तकरीबन 13 साल की एक लड़की बैठी मिली जिसकी मांग में सिंदूर भरा था. लोगों ने बताया कि ये सीता राम की बहन है और इसका विवाह दो साल पहले ही हुआ है.
गांव में चपोता के अलावा मुस्लिम, मंडल और यादव जाति यहां की मुख्य आबादी है. इतनी छोटी सी उम्र में आपलोग शादी क्यों कर देते हैं? इस प्रश्न के जवाब में सुधीर मंडल कुछ बोलते उससे पहले उनकी  पत्नी कहने लगती हैं, “लड़कियां भागने लगी हैं, लव मैरिज करने लगी हैं. पंद्रह दिन पहले इसी गांव से एक लड़की भाग गई.”
कौन लड़की और किसके साथ भाग गई, पूछने पर सभी चुप हो गये. इतने देर में सीता राम और उनके साथ कुछ लोग दुकान के पास इकट्ठा हो गए. सीता राम मुस्कुराते हुए कहते हैं,  “इस जाति में इसी उम्र में शादी की जाती है. बड़ा होकर ना लड़का मिलेगा ना लड़की. और अगर बेटियों की शादी इस उम्र में नहीं करेंगे तो कौन देगा बेटा.”
गांव वालों के मुताबिक बड़ा होना दस वर्ष है, और पंद्रह के बाद शादी की उम्र पार हो जाती है. बाल विवाह को लेकर इन गांवों में लगभग ग्रामीणों का एक ही मत है. यहां अपने-अपने हिसाब से तर्क-कुतर्क देने वाले कई मिले, मगर इस समाज से कोई भी इसे गलत बताने वाला नहीं.
एनएफएचएस के मुताबिक झारखंड में 88.1 प्रतिशत बाल विवाह में गांव में ही होते हैं. हालांकि पिछले दास सालों में इस तरह के विवाह में 22-24 प्रतिशत तक कमी आई है, लेकिन इतनी ही तेजी से राज्य की आबादी भी बढ़ी है.

मुख्यमंत्री ने भी गोड्डा के बाल विवाह पर जताई चिंता 

गोड्डा जनचौपाल के लिए 22 तारीख को गोड्डा पहुंचे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी गोड्डा में हो रहे बाल विवाह पर गहरी चिंता जताई ,उन्होंने कहा कि बाल विवाह गोड्डा के लिए कलंक है ,इसके लिए समाज को आगे आना होगा ,उन्होंने कहा कि सरकार भी 1 जनवरी 2019 से मुख्यमंत्री सुकन्या योजना ला रही है जिसके तहत बेटी के जन्म से लेकर पढाई तक के लिए सरकार प्रोत्साहन राशि देगी ।उन्होंने कहा कि बेटी के जन्म के ठीक बाद प्रोत्साहन मिलेगा फिर प्रथम वर्ग में नामंकन के बाद प्रोत्साहन मिलेगा फिर पांचवी और भी 10वीं और ग्यारवीं क्लास में जाने पर इस सुकन्या योजना का लाभ मिलेगा और शादी का उम्र हो जाने के बाद शादी के लिए मुख्यमंत्री कन्यादान योजना से लाभ मिलेगा ,लेकिन सुकन्या योजना का लाभ लेने के लिए शर्त सिर्फ यह है कि पढाई पूरी करने तक उम्र से पहले बेटी कुंवारी हो ।

इस ग्राउंड रिपोर्ट की पूरी कहानी का वीडियो मैं हूँ गोड्डा .कॉम के पास सुरक्षित है ।

About मैं हूँ गोड्डा

MAIHUGODDA The channel is an emerging news channel in the Godda district with its large viewership with factual news on social media. This channel is run by a team staffed by several reporters. The founder of this channel There is Raghav Mishra who has established this channel in his district. The aim of the channel is to become the voice of the people of Godda district, which has been raised from bottom to top. maihugodda.com is a next generation multi-style content, multimedia and multi-platform digital media venture. Its twin objectives are to reimagine journalism and disrupt news stereotypes. It currently mass follwer in Santhal Pargana Jharkhand aria and Godda Dist. Its about Knowledge, not Information; Process, not Product. Its new-age journalism.

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