आखिर ये कैसी मजबूरी
अभिजीत तन्मय गोड्डा/झारखण्ड के निर्माण के पूर्व से ही झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का वर्चस्व झारखण्ड की राजनीति पर रहा है दिशोम गुरु शिबू सोरेन इस पार्टी के सर्वमान्य नेता रहे है और आज भी है! आदिवासियों ने उन्हें भगवान् की उपाधि दी है।
मूलतः झामुमो मांझी,मंडल,महतो और मुस्लिम की पार्टी थी. यही इनके वोट बैंक थे।
संथाल परगना की मिटटी शुरू से ही झामुमो के लिए उपजाऊ रही. शिबु सोरेन मुख्यतः इसी इलाके से ही राजनीति करते आये! आज उनके परिवार के अन्य सदस्य भी इसी इलाके से जनप्रतिनिधि के रूप में चुने गये है।
झामुमो को उसके शिखर तक पहुँचाने में पार्टी के कुछ अन्य कद्दावर नेताओं का योगदान रहा जिन्होंने अपनी क्षमता के बल पर संघटन को मजबूत किया लेकिन कहीं ना कहीं एक अंहकार का भाव डेरा जमा लिया जिस कारण वैसे नेता खुद को पार्टी से बड़ा समझने लगे।
इसी गफलत में पूर्व सांसद और झामुमो में शिबू सोरेन के बाद अपनी पकड़ रखने वाले सूरज मंडल ने पार्टी से बगावत कर खुद को झामुमो से अलग कर लिया।
उनके जाने के बाद झामुमो कुछ कमजोर जरुर हुआ लेकिन सूरज मंडल का अस्तित्व समाप्त हो गया।आज वो पेंडुलम हो चुके है।
झामुमो में थिंक टैंक माने जाने वाले “स्टीफन मरांडी” भी एक बार टिकट विवाद के कारण पार्टी छोड़ दिए।
वो निर्दलीय विधायक भी बने वो भी पहली बार दुमका से चुनाव लड़ रहे हेमन्त सोरेन को हरा कर! बाद में वो कभी झाविमो तो कभी कांग्रेस का चक्कर लगा कर वापस पुनः झामुमो में आकर आज महेशपुर विधानसभा से विधायक है।
कुछ इसी प्रकार की गफलत साइमन मरांडी को भी हो गयी थी. वो खुद भी झामुमो से सांसद रहे और उनकी पत्नी भी कई बार विधायक रही।
झारखंड सरकार में उन्हें भी मंत्री बनने का मौका मिला लेकिन घमंड उन्हें भी बीच में ले डूबा था. भाजपा के टिकट से चुनाव लड़े लेकिन जनता ने नकार दिया।
लिट्टीपाड़ा विधानसभा के उपचुनाव में झामुमो के विधायक अनिल मुर्मू की असमय मौत के बाद खाली हुई सीट के लिए पुनः उन्होंने घर वापसी की और झामुमो के बैनर तले विधायक बने।
आज झामुमो के एक समय के मजबूत नेता “हेमलाल मुर्मू” पार्टी से बगावत कर भाजपा में चले गये है. भाजपा ने उन्हें संघटन में महत्वपूर्ण पद भी दिया है।
भाजपा ने उनपर विश्वास कर राजमहल लोकसभा से टिकट भी दिया था लेकिन वो जीत नहीं सके,आज उसी विधानसभा से झामुमो विधायक दल के नेता सह पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विधायक है।
वैसे धोखाधड़ी का शिकार झामुमो पूर्व से ही होती आई है. अर्जुन मुंडा भी झामुमो से ही भाजपा में गये थे,जमशेदपुर के भाजपा सांसद विद्युत् वरण महतो भी झामुमो के ही विधायक थे।
राजनीति और क्रिकेट दोनों अनिश्चितताओं का खेल है. कब क्या हो जाएगा ये मालुम नहीं।
आज झामुमो के पास पुराने नेता लौट कर आ रहे है हो सकता है भविष्य में हेमलाल मुर्मू भी वापस झामुमो में चले जाए।
कुछ और नेता है जिनकी राजनीति अब संन्यास की ओर अग्रसर है लेकिन जबरदस्ती दुसरे पार्टी में अपनी जगह बनाने के लिए प्रयासरत है. कुछ लोग मुद्दों पर आधारित राजनीति करते है और कुछ लोग लोक सभा और विधानसभा की रुपरेखा देख कर खुद को किसी जगह सक्रिय करते है।
पार्टी और नेता दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे है, झारखण्ड की राजनीति में झामुमो का अस्तित्व हमेशा रहेगा लेकिन अब ये देखना दिलचस्प होगा की नई पीढ़ी के नेता के साथ पुराने नेता किस प्रकार तालमेल बिठा पाते है? क्या यही तालमेल भविष्य में शिबू सोरेन के नहीं रहने पर भी बना रहेगा?
आज झारखण्ड के एक समय के कद्दावर नेता सूरज मंडल जिनकी तूती पार्टी संगठन के साथ साथ एकिकृत बिहार में गूंजती थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हाशिये पर चले गए हैं ,शायद उन्हें भी यह एहसास हो चुका है अब उनका झामुमो में कोई वजूद नही रहा और न ही संथाल की राजनीति में यही कारण है कि अपने पुत्र के भविष्य को देखते हुए वो भाजपा की गोद मे बैठे हैं ।