32 साल के मुन्ना कुमार साव लाॅकडाउन की दुश्वारियां झेल रहे देश के करोड़ों श्रमिकों की तरह ही हैं. अलग है तो अब बदली हुई उनकी जीवन दृष्टि. साइकिल पर सैकड़ो किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए पाइडल मारने के साथ उनका संकल्प मजबूत होता जाता है. वे अब कभी किसी दूसरे राज्य में या महानगर में मजदूरी के लिए न जाने का संकल्प ले चुके हैं. 30 अप्रैल को बंबई से झारखंड के गोड्डा 21 दिन में पहुंचने का लक्ष्य लेकर वे साइकिल से चले हैं और अभी एक तिहाई सफर पूरा कर मध्यप्रदेश के इटारसी में हैं. वे गोड्डा सदर प्रखंड के ही एक गांव के रहने वाले हैं. मुंबई से गोड्डा की दूरी 2049 किलोमीटर है.
मुन्ना कुमार साव हर दिन 100 किलोमीटर साइकिल चलाने का लक्ष्य रख कर 30 अप्रैल को मुंबई से चले और सात अप्रैल की रात वे हरदा व इटारसी के बीच में थे. उन्होंने लक्ष्य रखा है कि वे हर दिन 100 किलोमीटर साइकिल चलाएंगे और 21 दिनों में झारखंड के गोड्डा के मल्हारा रानीडीह स्थित अपने घर पहुंच जाएंगे.
मुन्ना उन हजार-बारह सौ मजदूरों के ग्रुप में शामिल थे, जो मुंबई में कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करते हैं. वे बताते हैं उनके बहुत सारे साथियों को वहां रूम पर ही बैठा दिया गया है, जबकि 200 के करीब पैदल ही घर के लिए निकल गए.
घर आने के लिए 2000 रुपये में खरीदी पुरानी साइकिल
मुन्ना जब मुंबई से गोड्डा के लिए निकले हैं तो वे अकेले हैं. उन्होंने घर आने के लिए लाॅकडाउन में ही दो हजार रुपये में एक साइकिल खरीदी और फिर उस में अपना बैग व छोटा-मोटा सामान टांग कर निकल पड़ेे. वे बताते हैं कि महाराष्ट्र से निकलने में थोड़ी दिक्कत आयी लेकिन मध्यप्रदेश में कोई दिक्कत नहीं आ रही है. पुलिस वाले भी पूछते हैं तो सारी बातें बता देने पर उदारता से कहते हैं – जाओ भैया.
वे कहते हैं कि पहले यह खबर मिली कि इधर से हमलोगों के लिए गाड़ी जाएगी लेकिन इंतजार लंबा होने पर मैं निकल पड़ा. लाॅकडाउन के बाद मुंबई में जिंदगी बहुत कठिनाई से गुजर रही थी. एक दिन में एक बार खाना मिलता था और जितना खाना नहीं मिलता था उससे अधिक परेशानी होती थी. दो-दो घंटे लाइन में रहने पर खाना मिलता था.
मुंबई में 500 रुपये की दिहाड़ी करने वाले मुन्ना कहते हैं लाॅकडाउन के पहले 80 रुपये में 800 एमएल केरोसिन मिलता था, लाॅकडान के बाद 80 रुपये में 500 एमएल मिलने लगा. वे लोग वहां केरोसिन स्टोव पर खाना बनाते थे. वे जब सप्ताह भर पहले मुंबई से निकले थे तो उनके पास 1500 रुपये थे, लेकिन अब 400 रुपये बचे हैं. यानी एक तिहाई सफर में ही ज्यादातर पैसे खत्म हो गए. आगे पैसों की दिक्कत नहीं आएगी इस सवाल पर वे कहते हैं: हां, दिक्कत तो हो सकती है लेकिन किसी तरह पहुंचेंगे घर. वे कहते हैं कि रास्ते में कहीं कोई उदार आदमी मिल जाता है तो मदद कर देता है, कोई कुछ खाने को भी दे देता है.
परिवार में रहते हैं तीन बच्चे व पत्नी,सभी घर पर ।
आठवीं पास मुन्ना कुमार साव के तीन बच्चे हैं. 13 व 11 साल के दो बेटे हैं और नौ साल की एक बेटी है. पत्नी व बच्चे गांव पर ही रहते हैं. वह कमाई के लिए समय-समय पर मुंबई जाते रहते हैं. मुन्ना का हरदा में मेडिकल टेस्ट भी हुआ जिसमें कोई दिक्कत नहीं पायी गयी.
वे बताते हैं कि किसी दुकान पर रुकने पर मोबाइल चार्ज कर लेते हैं ताकि लोगों से संपर्क बना रहे. रात कैसे गुजराते हैं, इस सवाल पर वे कहते हैं कि कहीं कोई मंदिर या सार्वजनिक स्थल आदि होता है तो उसके बरामदे पर रात गुजार लेते हैं. मुन्ना बताते हैं कि घर जाने के लिए हमलोगों ने करीब 500 लोगों की लिस्ट दी थी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
मुन्ना बड़ी मजबूती से कहते हैं कि अब वे दोबारा कभी मुंबई नहीं जाएंगे. अपने गांव में नमक-रोटी खाएंगे और खेती-बारी करेंगे और मुंबई के सेठ को बुलाकर कहेंगे कि यह देखो ऐसा है मेरा गांव.