शहर में अपने कम्पनी के नाम बेचकर दलाली करने वाले उसी शख्स की बात कर रहा हूँ जो पिछले दिनों अपनी उड़ी चांदी पर बाल नही उगा पाए थे ,हलांकि इस क्रम में वो महाशय वन की सैर करते खूब नजर आये ,वैसे उस उड़ी चांदी में पत्ते तो अब उगेंगे नही ,लेकिन वन जाकर किसी और के वृक्ष को हरा जरुर कर रहे हैं ,ये वन प्रेम कब प्रगाढ़ पर आया इसका तो मुझे पता नही ,लेकिन एक कहानी जो इस वन के प्रसंग से सामने आई वो ये थी की ,महाशय गये थे बोटा “लकड़ी का टुकड़ा” लाने,लेकिन उन्हें क्या पता था की मेरी लात कुत्ते पर ही पड़ जायेगी और वो हपक लेगा , हुआ यूँ की उनकी आदत तो यहाँ आने के साथ ही भू धातु पर टिकी हुई थी ,अचानक इन्हें गम्हार और सागवान का बोटा दिख गया ,फिर क्या था की बस आव देखा न ताव साहब ने कर ली दोस्ती उस वन के कर्मचारी से ,धीरे धीरे साहब ने तो अपनी रोटी सेंक ली ,लेकिन उस कर्मचारी की चतुर चलाँकी के आगे मात खा गये ,जब दोस्ती गहरी होती गई तो साहब बोटा को लेकर पलंग कुर्सी में व्यस्त रहे ,और कर्मचारी ने तोशक तक का मजा ले लिया !जब ये गहरी दोस्ती एक शाम के जश्न तक पहुंची तो साहब ने भी हल्की फुहार ले डाली ,लोगों की माने तो साहब जागरण मनाने वन विभाग जाते हैं ,लेकिन उस शाम की तो बात ही निराली थी ,जब साहब होस में नही थे ,विभागी कर्मचारी के गुप्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जब ये शाम के वक्त उड़े चांदी पर बाल उगाने की असफल प्रयास कर रहे थे, तो उसी वक्त इनकी आँख भी दोखा खा गई ,और वही बोटा उठाने के चक्कर में इनकी लात पड़ गई कुत्ते पर ,कुत्ते ने भी अपनी बिरादरी की विपरीत प्रजाति को परखा और जरा भी विलम्ब न करते हुए ले लिया कच से !फिर क्या बेचारे के दिमाग में तो जाकर सेट हो गया की काटा तो मुझे कुत्ते ने ही है ,अब बाताये भी तो कैसे ?लेकिन उनके दिमाग में एक युक्ति सूझी और उन्होंने अपने ही बिरादरी के किसी सख्श को लेकर चल पड़े सदर अस्पताल ,लेकिन वहां पहुंचकर ये भी बोलने में शर्म आ रही थी की मुझे कुत्ते ने काटा है !अब हाल तो असमंजस में फंसा था बताए भी तो कैसे हलांकि काफी मसक्कत के बाद उन्हें सुई तो पड़ गई ,लेकिन ये डर अबतक सता रहा है की कभी हम भू धातु सोचते सोचते भू भू न करने लगें !
पीतल टेबलेट भी खिलाने की भी हो चुकी है बात ,कहा इससे गैस खत्म होगा !
हलांकि ताजा प्रकरण में भी साहब के कुछ नारद बिष्णु के शरण में ही दिखे थे !हलांकि साहब या साहब के कोई नारद महादेव से कभी नजर नही मिलाते और न ही सामने पर छलबलाते हैं ,क्यूंकि उन्हें अब कुत्ते काटने से ज्यादा अपनी स्थान विशेष की चिंता है ,कहीं महादेव का त्रिनेत्र खुला तो जल जायेगी !
साहब दलाली नही छोड़ सकते ये उन्होंने खुद से करार किया है,सुनने में तो यहाँ तक भी आया था की पिछले दिनों एक कड़क अधिकारी आ जाने से कुछ दिन बिल में दुबके पड़े थे ,उस कड़क की तो कड़क ही इतनी कड़ी थी की अपने चेम्बर में बिठाकर पीतल टेबलेट मुह में ठूंस कर खिला देने की बात तक कह डाली थी ,साथ ही ये भी कहा गया था सभी गर्मी और गैस इसे खाने पर निकल जायेगी !
सकपकाए साहब कुछ दिन तो झेल कर रहे लेकिन जब किसी विवाद में फंसकर अधिकारी की ही यहाँ से कट गई तो फिर बिल से बाहर दुबके ,हलांकि धान कटने के बाद चूहा भी बिल से बाहर निकलता है !चूहा से इसलिए सम्बोधित किया जा रहा है की साहब की किसी बड़े ऊँचाई बहुत कम है जब वो किसी अधिकारी के सामने दांत निकालते हैं ,तभी अधिकारी के कद काठी के सामने चूहे की तरह दीखते हैं ,हलांकि अधिकारी के इर्द गिर्द फुदकने वाले चूहे कभी गौदाम की बोरी नही काट सकता !
वन प्रकरण का अगला भाग अगले अंश में !