अभिजीत तन्मय:गोड्डा/रात में अचानक एक बड़ी लॉरी रुकी जिसमें से सरदार जी उतरे। चाय वाले को चाय देने को कहा फिर पानी की बोतल माँगी। एक सांस में सारी बोतल हलक से नीचे उतार दिया लगा जैसे बरसों का प्यासा था।
चाय की प्याली मुँह में लगाई ही थी कि एक दूसरी ट्रक आकर रुकी। उससे एक ड्राइवर और उसका हेल्पर उतरा। सरदार जी का चेहरा सख्त ही था।
उसके लिए भी सरदार ने चाय आर्डर की। गुस्से से सरदार जी ने कहा अगर अगली बार वो मुझे दिखा तो सीधे गाड़ी चढ़ा दूँगा।
रोड पर जब उतर ही गए हो तो भिखारी की तरह माँगों न हाथ क्यों उठाते हो।
ऑफिसर का चमचा ड्राइवर शान बघियाता है।खुद को सरकारी आदमी ही समझता है।
अब बात कुछ समझ मे आ रही थी कि दूसरा ड्राइवर बोला कि अभी डेली का यही हाल है। हर चौक पर कोई ना कोई गाड़ी खड़ी करके तहसील रहा है।
साहेबगंज से निकले तो अभी धार्मिक चंदा दीजिये। सभी थाना में दीजिये। रास्ते मे मिल गए हाइवे पेट्रोलिंग को दीजिये।
माइनिंग अलग लगा हुआ है और फिर डीटीओ का डंडा अलग से है। पता नही एक ही मुर्गा कितनी बार हलाल होगा?
शहर में मोटरसाइकिल वाला भी मिल जाता है वो अलग।
सरदार जी बोले कि सब ठीक है लेकिन अगर पैसा ही लेना है तो सीधे बोलो कानून क्यों समझाते हो?
कानून ही समझाना है तो गाड़ी को पकड़ो,चालान काटो। केस करो। पैसा लेने के लिए चोंचलेबाजी क्यों? कॉलर पकड़ने वाला होता कौन है उसका ड्राइवर?
अब मुझे गुस्से का कारण पता चला कि किसी पदाधिकारी का ड्राइवर उसपर हाथ उठाया था जिस बात की गुरगुरी वो निकाल रहा था।
तब दूसरा ड्राइवर बोला ओभर लोड में तो समझ मे आता है लेकिन जिस दिन अंडर लोड रहता है तो भी पैसा देना पड़ता है।
ऑफिसर या पुलिस वाला बोलता है कि अंडर लोड लाने कौन बोला? हमलोग गाड़ी गिनते है कम या ज्यादा नही!
इतने में गस्ती वाहन आ गयी जो शायद वारंटी को पकड़ने जा रही थी।
वो भी आपस में बातें कर रहे थे कि आजकल सब विभागीय पदाधिकारी रात भर ड्यूटी कर रहे है। दुर्गापूजा की तैयारी चल रही है।
एक दिन मेरी मुलाकात एक पदाधिकारी से हो गयी जो किसी रोज बालू ट्रैक्टर पकड़ कर थाना में जमा करवाए थे लेकिन जब उन्हें पता चला कि सभी शाम को को चंदा देकर निकल गए तब से वो भी रास्ते मे ही कमबेसी में फरिया लेते है।
ईमानदारी से पकड़ कर मुर्गा दो तो थानेदार मुर्गमुसल्लम बना कर खा लेता है तो गुस्सा आएगा की नही इसीलिए फैसला ऑन द स्पॉट ही कर लेते है।
हँसी-मजाक से ही बोला हुआ बात था लेकिन सच्चाई भी यही है। गाड़ी को पकड़ते ही फोन की घंटी बजने लगती है।
कभी राजनीतिक दल के लोग तो कभी आला अफसरों का फोन आ जाता है इसीलिए कौन कानूनी प्रक्रिया में जाता है जो भी आता है बन्दा उसी में खुश हो जाता है।