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गोड्डा :लाइफ लाइन है बीमार ,सदर अस्पताल में एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर नही।

अजित कुमार सिंह/जिले के 13 लाख से ज्यादा वाली आबादी के लिए लाइफ लाइन मानी जाने वाली सदर अस्पताल की खुद की स्वास्थ्य बेहाल है ,मानव संसाधनों से जूझ रहा अस्पताल आज महज रेफरल अस्पताल बनकर रह गया है ।

सन1955 में बने इस अनुमंडल अस्पताल को वर्ष 1995-96 में सदर अस्पताल का दर्जा मिला ,जिलेवासियों को लगा कि अब यहाँ धीरे धीरे स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने लगेंगी .नया 100 शैया वाले भवन भी झारखण्ड बनने के बाद वर्ष 2013-14 में मिला जो जिसमे अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की लगभग सभी चीजें मंगवाई गयी .मगर इन सब से ऊपर जो सबसे महत्वपूर्ण और जीवन रक्षक संसाधन चाहिए थी वो आज तक उपलब्ध नही हो सका है .और वो है मानव संसाधन .इस बात को अस्पताल के मेनेजर भी भली भाँती जानते और मानते भी हैं .
चलिए सिविल सर्जन की ही मान भी लेते हैं तो कोई विशेषज्ञ चिकित्सक अगर नही हैं तो क्या आँख के डॉक्टर सीने में उठे मर्ज का इलाज ,या कोई इएनटी का डॉक्टर टूटे हुए हड्डी को जोड़कर मरीज का इलाज कर सकता है, नहीं !! चलिए अब इस सौ शैया वाले इस सदर अस्पताल में कर्मियों की जरुरत और उपलब्ध आंकडें पर एक नजर डालते हैं …….इस अस्पताल में दस चिकित्सा पदाधिकारी की जरुरत है जिसमे 5 उपलब्ध हैं 5 रिक्त ,वहीँ 1 महिला चिकित्सा पदाधिकारी , 1 दन्त चिकित्सक , 2 शिशु रोग विशेषग्य ,1 नेत्र चिकित्सक उपलब्ध हैं जो स्वीकृत बल के अनुरूप हैं .वहीँ 2 फिजिशियन ,2 स्त्री रोग विशेषज्ञ की जगह 1 उपलब्ध ,तो सर्जन के 2 ,1 मनोचिकित्सक ,2 निश्चेतक ,1 चर्मरोग ,1 इ एन टी ,1 हड्डी रोग विशेषज्ञ ,1 फॉरेंसिक ,विशेषज्ञ के पद आज भी रिक्त हैं .अब जब सर्जन और हड्डी रोगों वाले चिकित्सक ही उपलब्ध न हों जिनके मरीज सबसे ज्यादा होते हैं तो फिर यहाँ से मरीजों को रेफर करना ही विकल्प बचता है .और हमारे सिविल सर्जान का ये कहना कि किसी मरीज को कोई शिकायत नही होती कुछ बेमानी नहीं लगती !!

ये तो रही चिकित्सीय कर्मी की बात ,अब जरा तकनिकी कर्मियों की बात करें तो उसका भी घोर अभाव सदर अस्पताल में है .ANM और GNM के अलावे लैब टेकनीशियन ,XRAY तकनीशियन ,फिजियोथेरापिस्ट ,ओटी सहायक ,डेंटल सहायक ,इ सी जी तकनीशियन ,पुरुष एवं महिला वार्ड सेविका
,फार्मासिस्ट इत्यादि के सभी पद रिक्त हैं .अब सरकार की तरफ से हो रहे विलंब या असमर्थता को देखते हुए जिले की उपायुक्त द्वारा डीएमएफटी फण्ड के द्वारा कुछ चिकित्सकों और पारा मेडिकल कर्मियों को अनुबंध के आधार पर एक अच्छी पहल करते हुए कुछ महीनो पहले ही बहाल किया गया था तो सदर अस्पताल में कुछ राहत रोगियों को मिलने लगी .मगर विडम्बना देखिये कि डीएमएफटी के तहत चिकित्सकों का भुगतान तो शुरू हो गया मगर जो पारा मेडिकल कर्मी हैं उन्हें नियुक्ति के पांच माह बीतने के बाद भी अभी तक भुगतान नही शुरू हो सका है ,जिससे सभी कर्मी मायूस हैं ।
इस मामले को लेकर जब जिला के दोनों भाजपा विधायक से पूछा गया तो अशोक भगत ने बताया कि मामले की जानकारी मिली है,डीसी और सीएस से मिलकर रास्ता निकालेंगे! वहीं अमित मंडल ने कहा कि ये फैसला हमारा था कि डीएमएफटी की राशि से बहाली कर स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा किया जा सकता हैं लेकिन मानदेय नहीं मिलने से इनका मनोबल कमजोर हो रहा है।
इधर स्वास्थ्य व्यवस्था और कर्मियों के वेतन को लेकर जब हमने सिविल सर्जन और उपायुक्त से बात किया तो उपायुक्त महोदया का कहना था कि उनके द्वारा डी एम एफ टी फंड से वेतन के एवज में पैसे का भुगतान कर सिविल सर्जन कार्यालय को कब का भेज दिया है तो वहीँ सिविल सर्जन के अनुसार
पारा मेडिकल कर्मियों के कागजातों की पुष्टि कराई जा रही है उसके बाद विभागीय अधिकारीयों के दिशा निर्देशानुसार ही भुगतान किया जायेगा ।

बहरहाल ,एक ही वक्त में बहाल चिकित्सकों के कागजात की जांच एक माह में होकर भुगतान शुरू हुई वहीँ कर्मियों के जांच में पांच माह लगना कुछ सवाल जरुर खड़ा करता है …कर्मियों की कमी से जूझता लाइफ लाइन सदर अस्पताल को उपायुक्त की सकरात्मक पहल से पटरी पर लाने का जो प्रयास हुआ वो सराहनीय था मगर स्वास्थ्य महकमे और सिविल सर्जन की तरफ से जो असहयोगात्मक रवैया अपनाया जा रहा है उससे कहीं ऐसा न हो कि पांच महीने से काम कर रहे सभी कर्मी वेतन के अभाव में काम छोड़ पलायन कर जाएँ और फिर पुनः मुषिको भवः वाली स्थिति हो जाय ।

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