मोबाइल की घंटी बजी “मेरी जिंदगी सँवारी मुझको गले लगा के बैठा दिया फलक पे मुझे खाक से उठा के”संयोग से मेरे मोबाइल की रिंगटोन यही है ,लेकिन जैसे ही मोबाइल रिसीव किया तो एक आवाज आई “के मिलन” मैंने स्प्ष्ट शब्दों में कहा नही मैं मिलन नही बोल रहा आप कौन ?मैंने सवाल किया तो उधर से जो विलाप सुनने को मिला उससे मैं स्तब्ध रह गया ।आपको पता है वो दर्द था अपने बेटे को खोने की ,एक ऐसे पिता की वो हुंकार मुझे सुनाई दे रही थी ,हालांकि मैंने उन्हें चुप रहने का आग्रह किया और फिर से उनका परिचय पूछा ,लेकिन उनकी आंखों से जो आँशु टपक रहे थे जो मैं महसूस कर पा रहा था उससे मैं खुद को अपने काबू में नही रख पा रहा था मेरी आँखें भी नम हो रही थी लेकिन अबतक उन्होंने परिचय नही दिया था ,फिर मैंने उन्हें समझाया और परिचय पूछा ,हालांकि वो मुझे नाम से नही मेरे काम से जान रहे थे उन्होंने अचंभित होकर फिर पूछा कि के मिलन नाय बोली रहलो छौ ? मैने कहा नही फिर उन्होंने कहा कि पत्रकार जी ही बोली रहलो छौ नी ?मैने कहा हाँ बोल रहा हूँ फिर उन्होंने अपना परिचय दिया और कहा सभे लोग करो मदद बेकार होय गेल्ह्नों ।हमरो बच्चा काल 3 बजे खत्म होय गेल्ह्नों ।यह सुनकर मैं कल्पित हो उठा ….वो बोलने वाले सख्श ने भीख मांगकर विगत कई वर्षों से अपने बच्चे को जीवन देने के लिए जूझ रहे थे ।गोड्डा दुमका,देवघर के आलावे कई स्थानों के चौथे स्तम्भ ने भी आगे आकर उनके बच्चे के लिए आर्थिक सहायता के लिए चंदे इकठ्ठे कर मदद की थी ।सांसद ने अपनी पहल पर बच्चे के इलाज के लिए प्रधानमंत्री कोष से भी राशि दिलाई थी ,अडानी फाउंडेशन ने भी उनके इलाज के लिए राशि उपलब्ध कराई थी ।कई समाज सेवी,एनजीओ ,युवा ,व्यवसायी,एवं अन्य माध्यमो से राशि उनके बच्चे के लिए चंदे के रूप में आई थी ।वो दिन याद है जब उस बच्चे को लेकर उनके माता पिता को भीख मांगते देखा जाता था ,चाहे क्रिकेट का मैदान हो,चाहे सदर अस्पताल,चाहे बीच चौराहा ,या फिर किसी राजनेता के आने पर उनके सामने अपने बच्चे के लिए भीख मांगते रहते थे ।गोड्डा से उन्हें हर सम्भव मदद मिला लेकिन भगवान के ये मंजूर नही था आखिरकार सभी सहायतों के बाद तकरीबन 27 लाख खर्च होने के बावजूद उनका थैलसिमियाँ पीड़ित बड़ा लड़का नही बच सका ।उस बच्चे ने कल 3 बजे शाम में वेलोर के अस्पताल में दम तोड़ दिया ।
यह एक बेहत दुःखद पल है उस परिवार के लिए जिन्होंने दिन रात एक करने के बाद बच्चे के लिए क्या नही किया ।लेकिन बोनमैरो का सफल ऑपरेशन होने के बावजूद बच्चा सलामत नही हो सका और उसकी जिंदगी चली गई ।
लेकिन इससे भी बड़ा दुख का पहाड़ उनके सामने खड़ा है उनके उनके दूसरे बच्चे को भी थैलसिमियाँ है,और उसे भी उसी प्रक्रिया से गुजरना है ।और अब उन परिवार के पास फूटी कौड़ी भी नही ,हमारी सामाजिक मेहनत रंग नही ला सकी हो सकता है हमने मेहनत में कोई कमी की लेकिन क्यों न हमसब फिर एक बार उनके दूसरे बच्चे के लिए खड़ा रहें ताकि वो फोन करने वाला व्यक्ति गोड्डा के जयकांत मांझी का हौसला न टूटे ।
जयकांत मांझी अपने बड़े बेटे की अर्थी लेकर वेलोर से चल चुका है कल गोड्डा पहुँच रहा है ।हमे आशा है आपसभी इनके लिए फिर से एक नई ऊर्जा के साथ जुड़ेंगे ।
राघव मिश्रा