पुरूष बलशाली है कर्मठ है उसकी चमड़ी मोटी है सख़्त है वो लड़ सकता है सहने की क्षमता ज़्यादा है मगर और कोमल काया की है, कोमल त्वचा सहने की शक्ति पुरुष के मुकाबले आधी से भी कम । मगर यही स्त्री जब माँ का रूप लेती है तो इसके सहने की क्षमता पुरूषों से दुगनी हो जाती है । जहाँ एक फोड़ा जिसका वजन पाँच ग्राम भी नहीं होता वो भी जिस्म पर भारी लगता है और स्त्री जो अब माँ है एक नए और बढ़ते हुए जीवन को मुस्कुराते हुए अपने अंदर नौ महीने तक रखती है । उसके बाद असहनीय पीड़ा सह कर उस जीव को नया जीवन देती है कई बार तो एक नए जीवन के लिए उसे अपना जीवन तक कुर्बान करना पड़ता ।
और यही वो वजह जिस कारण बच्चे के जन्म में पिता जो पुरूष है उससे मुकाबले एक माँ जो स्त्री है उसका समर्पण और योगदान ज़्यादा माना जाता है । कहते हैं पिता मकान बनाता है मगर उसे घर बनाती है माँ । कमाते पिता हैं मगर घर चलाने का हुनर माँ ही जानती है । एक बच्चा पिता को सारी सुख सुविधाएं दे कर शायद पितृऋण से भले ही मुक्त हो सकता है मगर कोई भी जतन कर के वह मातृऋण से मुक्ति नहीं पा सकता ।
एक बहुत बड़े ज्ञानी थे, जब चारों ओर उनका नाम जाना जाने लगा तो उनके मन में आगया कि अब मैं माँ का कर्ज़ चुका सकता हूँ । ये इच्छा उन्होंने माँ के सामने प्रकट की । माँ मुस्कुराई और बोली ठीक है चुका देना कर्ज़ मगर आज रात तू मेरे साथ सो । ज्ञानी बेटा थोड़ा सकुचाया मगर फिर बोला ठीक है मैं सोऊंगा । रात हुई दोनों एक ही बिस्तर पर सोने लगे । जिधर बेटे ने सोना था माँ ने वहाँ पानी गिरा दिया । बेटा झल्लाया बोला “माँ ये क्या है ? मैं इस गीले बिस्तर पर कैसे सोऊंगा ?” माँ मुस्कुराई बोली और बोली “जानता है कितने वर्षों तक तू बिस्तर गीला कर देता था सोते हुए । तब मैं तुझे सूखे में सुला कर खुद गीले में सोती थी । और आज तू एक दिन माँ के लिए गीले बिस्तर पर नहीं सो सकता । तू तो एक दिन का कर्ज़ ना चुका पाया बेटा पूरे जीवन का कैसे चुकाएगा । वैसे भी माँ तो बच्चे के पैदा होते उसका मुंह देख कर उसे अगले पिछले सभी कर्ज़ों से मुक्त कर देती है ।” ज्ञानी बेटे के पास कोई जवाब नहीं था बस माँ के पैरों में लेट गया ।