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महामारी की आशंका : जिले में पांव पसार रहा इंसेफेलाइटिस!

छः मरीज अस्पताल में भर्ती ,रांची के रिम्स भेजा गया ब्लड सैम्पल ।

अभिषेक राज/ठंडी और गर्मी के मौसम में इंसेफेलाइटिस होने का खतरा बढ़ गया हैं। वर्तमान में तीन बच्चे जिसकी उम्र दस वर्ष से भी कम हैं। उनका इलाज सदर अस्पताल में चल रहा है।

लेकिन दिनोंदिन स्थिति और बिगड़ती जा रही है। जिसका इलाज चल रहा है उनमे से पोड़ैयाहाट प्रखंड के हाथिहरियारी की सुजाता मुर्मू, पथरगामा प्रखंड के चिलरा रामपुर की संगीता कुमारी, मिथुन यादव व ठाकुरगंगटी के झुरकुसिया की सीमा कुमारी शामिल है। इसके अलावे रविवार को तीन अन्य मरीज भी भर्ती हुए है।

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इसमें सुंदरपहाड़ी की मनीषा मरांडी, पोड़ैयाहट की रीना हांसदा, बोआरीजोर का सुनील सोरेन अन्य शामिल है।

 

इन सभी मरीजों रक्त का सैंपल रांची लैब भेजा गया है। पूरी तरह लैब में जांच होने के बाद ही इंसेफेलाइटिस रोग होने पर मुहर लग सकेगा।

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हालांकि जो लक्षण इन मरीजें में पाए गए है इससे इंसेफेलाइटिस होने का संभावना है। इन मरीजों में भी इंसेफेलाइटिस का ही लक्षण पाया गया है।

 

लेकिन पानी के प्रति जागरूकता के अभाव में इंसेफेलाइटिस से भी खतरनाक माना जाने वाला एईएस जिले में पांच पसार सकता है। जिससे मासूमों की जान खतरे में होगी।

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अगर अस्पताल में ऐसे संक्रमण रोगियों के इलाज की व्यवस्था की बात करे तो इसमें विभाग पूरी तरह से लापरवाह है। इन संक्रमण से होने वाले रोगियों का इलाज भी समान्य मरीजों के साथ किया जा रहा है।

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जिससे अन्य मरीजों को भी इस रोग के चपेट में आने की आशंका 100 प्रतिशत है। जब सवाल उठते है तो विभाग के अधिकारी द्वारा यह दलील दी जाती है कि अस्पताल में ऐसे रोगियों के इलाज के लिए आइसोलेशन वार्ड की व्यवस्था है।

 

लेकिन सच्चाई यह है कि दो वर्ष से सिर्फ कागज पर ही आइसोलेशन वार्ड चल रहा है।

स्वास्थ्य विभाग करती रही है बीमारी से बचाव और रोकथाम का दावा :
स्वास्थ्य विभाग द्वारा बीमारी से बचाव व रोकथाम के लिए जिला मुख्यालय से लेकर ब्लॉक व उपकेन्द्र स्तर पर पूरी तैयारी का दावा किया जा रहा है।

 

लेकिन पड़ताल पर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित पीएचसी, सीएचसी पर डॉक्टरों व अन्य कर्मचारियों की कमी के कारण लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रहीं हैं।

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या फिर यू कहे कि सदर अस्पताल को छोड़ कर अन्य जितने भी सरकारी संस्थान है यहां पर महज खानापूर्ति की जाती है। इधर पीने के पानी का इंतजाम करने वालों में कोई खास रूची नहीं दिख रही है।

 

गर्मी में पदाधिकारियों के तमाम निर्देश के बाद भी अभी तक खराब हैण्डपम्प ठीक नहीं हो सकें हैं।

बन्द रहते है पीएचसी, सीएचसी :

जिले के ज्यादातर सीएचसी, पीएचसी पर स्थापित ईटीसी केन्द्रों पर ताला लटकता रहता है। इसके पीछे प्रभारी चिकित्साधिकारियों का तर्क होता है कि जब मरीज आते है तो उन्हें ईटीसी में भर्ती किया जाता है।

 

अभी तक किसी भी सीएचसी, पीएचसी पर इंसेफेलाइटिस से पीड़ित होने वाले मरीज को भर्ती नहीं किया गया है। जिससे अभी तक ईटीसी से एक भी मरीज को ठीक नहीं हो सकें हैं।

पानी को लेकर लोगों में नहीं है जागरूकता :

मौजूदा समय में इंसेफेलाइटिस से भी खतरनाक बीमारी बना एईएस जो कि शुद्ध पानी के अभाव में फैलता है को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी उनकी सेहत पर भारी पड़ सकती है।

 

पानी को लेकर लोगों में जागरूकता की कमीं के कारण इस बीमारी के पैर फैलाने का खतरा बना हुआ है।

 

जल निगम व ग्राम पंचायतें भी ग्रामीणों को पीने के लिए शुद्ध पानी मुहैया कराने के इंतजाम को लेकर गम्भीर नहीं है।

 

जिसका परिणाम यह है कि लोग आज भी देशी हैण्डपम्प का पानी पीने व खाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। साथ ही हैण्डपम्प के बगल में ही जमा पानी से भी बीमारी का खतरा है। इसके बाद भी जिम्मेदार गम्भीर नहीं है।

लोगों के देशी नल का पानी पीने के लिए इस्तेमाल करने से जिले में एईएस का खतरा है।

क्या कहते है सिविल सर्जन :

इंसेफेलाइटिस के लक्षण कुछ मरीजों में पाए गए है। सभी के रक्त का सैंपल रांची लैब भेजा गया है।

 

सोमवार की शाम तक रिपोर्ट आ जाएंगे। इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है। कुछ मरीज ऐसे भी है जो साहिबगंज हॉस्टल में रहते थे या फिर वहां कुछ दिन रह कर आए है। विभाग पूरी तरह से सक्रिय है।

-डॉ आरडी पासवान, सिविल सर्जन, गोड्डा

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