सरकार झारखण्ड राज्य का एकलौता ” सरकारी होमियोपैथिक कॉलेज” जब 2003 में गोड्डा जिला में खुला तब ऐसा लगा की ये गोड्डा के लिए एक “मील का पत्थर” साबित होगा लेकिन आज 14 साल बीत जाने के बाद भी इस कॉलेज के बदनसीबी का वनवास ख़त्म नहीं हुआ है!
गोड्डा मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दुरी पर बना ये कॉलेज आज अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रहा है. क्या तात्कालीन गोड्डा के किसी भी पदाधिकारी को जिला में कहीं और सरकारी जमीन नहीं मिला जो उस बियाबान जगह में कॉलेज का निर्माण करा दिया गया
कॉलेज तक पहुँचने के लिए बच्चों को एक सड़क तक मयस्सर नहीं है. कॉलेज में छात्रावास अभी तक निर्माणाधीन है जिस कारण पुरे झारखण्ड से आकर पढ़ने वाले बच्चे गोड्डा में रहते है और यहीं से प्रतिदिन कॉलेज जाते हैं ।
लड़कियों को आने-जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. असमाजिक तत्वों से भी निबटना पड़ता है।
अब इस कॉलेज के प्रति सरकार का नजरिया देखिये की 157 पद सृजित होने के बावजूद इस कॉलेज में महज 3 दर्जन टीचिंग और ननटीचिंग स्टाफ है जिस कारण समुचित पढाई नहीं हो पा रही है. प्रैटिकल की कोई व्यवस्था ही नहीं है. आज तक इस कॉलेज को अनुच्छेद 2 के तहत मान्यता ही नहीं मिली है
अभी तक जितने भी बच्चे यहाँ से पास हुए है उनका कोई भविष्य है ही नहीं ।
यहीं कारण है कि आज यहाँ के बच्चे क्लास रूम में ना होकर कॉलेज के सामने भूख हड़ताल कर रहे है. जिन हांथों में किताबें होनी चाहिए वो सरकार के खिलाफ तख्तियां लिए हुए हैं।
क्या हर बार की तरह ये आंदोलन भी दम तोड़ देगा? सिस्टम के आगे झुक जायेगा? क्या इस बार भी सरकार की जीत हो जायेगी?
आज चंद्रवशी जी के इलाके में कॉलेज रहता तो क्या इसका यही हाल होता!
लेकिन मैं चंद्रवशी जी को दोष क्यों दूँ? जिन गोड्डा के लाल(मंत्रियों) ने इसे यहाँ स्थापित किया क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती थी ?हेमलाल मुर्मू स्वास्थ्य मंत्री भी रहे अगर वो चाहते तो क्या इस कॉलेज का भविष्य सवंर नहीं सकता था?
आज बच्चों के साथ-साथ झारखण्ड की जनता की भी किस्मत खराब है. दोषी आजतक की सभी सरकार है लेकिन जो इस समस्या को जानते हुए भी अनदेखी कर रहे है वो झारखण्ड के साथ अन्याय कर रहे है!
अभिजीत तन्मय