अभिजीत तन्मय/गोड्डा:आज सदर अस्पताल परिसर के टूट रहे पुराने भवनों को गौर से देख रहा था और एक नए भवन के निर्माण की कल्पना में डूब रहा था कि सहसा एक हाथ का स्पर्श मेरे कंधे पर हुआ।
मुड़कर देखा तो सदर अस्पताल के ही एक डॉक्टर थे। मुस्कुरा कर अभिवादन किया। उन्होंने पूछा इतने गौर से क्या देख रहे है? मैं बोला सर अब काफी जगह दिखने लगा। बर्न वार्ड और चाइल्ड केयर वार्ड का भवन बन जाने के बाद भी कुछ जगह बच जाएगा।
डॉक्टर साहब थोड़ा गंभीर होते हुए बोले कि बन ही जाएगा तो क्या हो जाएगा,यूँ ही बेकार पड़ा रहेगा बिना डॉक्टर का!
डॉक्टर आये इसकी चिंता कोई नही करता है जो सबसे जरूरी है। जो बचे है अब वो भी जा रहे है। फलाना डॉक्टर साहब का भी वीआरएस लगभग क्लियर हो चुका है अब बताओ कि इस अस्पताल में कितने बचेंगे?
कोई नया आने को तैयार होता है नही।
तब मैं बोला कि नए डॉक्टर की फसल अब बहुत कम तैयार हो रही है। जितनी हो रही है वो सभी हाईब्रीड है। छोटे शहरों के वातावरण में ढल नही पाते है और किसी बड़े शहर में एडजस्ट हो जाते है।
डॉक्टर थोड़े भावुक होकर बोले कि इस शहर या जिला की चिंता कोई नही करता है। जिसको जब कष्ट होता है तो अस्पताल की नाकामी को आकर गिना देता है लेकिन ईमान से कोई बोल सकता है कि गोड्डा सदर अस्पताल की कमियों को लेकर कोई भी आगे आया हो या धरना प्रदर्शन किया हो। जब मरीज के साथ कुछ हो जाए तो मारने वाले बहुत पहुँच जाते है लेकिन जनहित के मुद्दे पर बोलने वाला एक भी नही मिलता है।
समाज के एक भी जनप्रतिनिधि, तथाकथित समाजसेवी या संगठन इस मुद्दे पर आगे नही आए। आज करीब 6-7 अच्छे डॉक्टर शहर में अपना क्लिनिक चला रहे है और खुश है वीआरएस लेकर।
अगर माहौल नही सुधरा तो आगे की स्थिति और भी भयावह हो जाएगी।
अपनी ही बिरादरी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि शहर के सभी बड़े-बड़े डॉक्टर समाजसेवा तो कर रहे है लेकिन किसी क्लब के जरिये। स्कूलों में जाकर डायविटीज नाप रहे है तो कहीं पर बीपी! अगर सचमुच गोड्डा की जागरूक जनता इनसे सप्ताह में सिर्फ दो घंटे सदर अस्पताल के लिए मांग ले तो यहाँ के मरीजों की तीन हिस्सा परेशानी समाप्त हो जाएगी।
क्लब और कम्पनी के लिए तो काम कर ही रहे है लेकिन सप्ताह में सिर्फ 2 घंटे गोड्डा की जनता के लिए दे देते तो यहां की जनता आपका ऋण ताउम्र याद रखती।