गतांक से आगे….
अशरफ अली के कहने पर पाकिस्तान में मजलिस लगी हुई है। सबों के सामने हीरो, हीरोइन और उसका बेटा खड़ा है
वापस जाने के एवज में नायिका का बाप हीरो को मानसिक रूप से प्रताड़ना देता है।
वो हीरो से इस्लाम जिंदाबाद कहने को बोलता है।
हीरो इस्लाम जिंदाबाद बोलता है।
नायिका का पिता पाकिस्तान जिंदाबाद बोलने को कहता है।
हीरो पाकिस्तान जिंदाबाद भी बोल देता है।
अब जब इसके बाद भी मन नही भरा तब जज्बात से खेलते हुए हिंदुस्तान मुर्दाबाद बोलने को कहता है।
ये सुनते ही हीरो को मिजाज आक्रोशित हो जाता है और वो कहता है आपका पाकिस्तान जिन्दाबाद है इससे मुझे कोई तकलीफ नही है लेकिन मेरा हिंदुस्तान जिंदाबाद था,जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा।
आज यहां भी यही परिस्थिति है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि हीरो की नायिका अपने पिता के पक्ष में है। यहां सिनेमा की तरह ड्रामा बहुत ज्यादा तो नही है लेकिन नेपथ्य से आवाज आ रही है कि अगर अपनी फैमिली के साथ रहना चाहते हो तो तुम भले सुरेंद्र से सुलेमान मत बनो लेकिन बेटा को रोहन से रेहान बनाना ही होगा।
रजिया को राधा बना कर घर बसाने वाला इंसान किस उधेड़बुन में जी रहा है इसका अंदेशा किसी को नही है। सरकारी नौकरी छोड़कर अपने परिवार को बचाने की आस में दर दर भटक रहा है। आज उसकी कहानी सुनने के बाद कुछ लोग उसके साथ खड़े है लेकिन वो इंसान खुद इतना परेशान है कि वो ये निर्णय नही ले पा रहा है कि वो क्या करे। पुलिस की शरण में जाये , अदालत से गुहार लगाये या पंचायती कर मामले का निबटारा करे।
दिल्ली में नौकरी करते हुए यहाँ केस लड़ना ये भी सम्भव नही है और बेटा,पत्नी को छोड़ कर एक हारे हुए जुआरी की तरह लौट कर जाना भी गवारा नही है।
तनाव में उसने यहां तक कह दिया कि अगर सबकुछ हारा हुआ नजर आएगा तो उसके ही घर के सामने जहर खा कर जान दे दूँगा लेकिन रोहन को रेहान बना कर नही ले जाऊँगा। राधा बनी रजिया को अगर यहां रहना है तो वो रहे लेकिन वो अपने बेटे को लेकर जाएगा।
अभिजीत तन्मय
आने वाले एक दो दिनों में और कुछ तस्वीर साफ होगी तब तक बने रहे अगले अंक के इंतजार में।