दयावान दीननाथ रुज जिस क्षेत्र की चिंता करते हैं वहां सदियों से एक जनजाति पहाड़ों पर रच-बस रही है । भारत जो एक तरफ स्मार्ट सिटी और हाई स्पीड ट्रेन की ओर पाँव पसार रहा है वहीं दूसरी ओर देश के लिए मरने-मिटने की जज्बा वाले पहाडियाओं के लिए आज भी ढंग की पगडंडियां भी नसीब नहीं है ।अजीब विरोधाभाष है । हां ,यहां की नैसर्गिक सुष्मा अद्वितीय है ।पर्बत कन्दराओं और वन उपत्यकाओं के सौंदर्य पर चार चाँद लगाती निःशंक विहरति किरात – कन्याओं की कल्पना आप कर सकते हैं ।
गोंडवाना युग की राजमहल पहाड़ी श्रींखला ,जो गंगा के दक्षिण हज़ारों मील तक फैली हुई है , आश्रय स्थल है पहाडियाओं का । अन्न-पानी की किल्लत तो स्वभाविक है,उप उत्पत्ति के तौर पर इनका सामना अस्थमा,तपेदिक,मलेरिया,कालाजार,घेघा,रक्ताल्पता आदि से भी है । यही वजह है कि पहाड़िया लोग ज़िन्दगी में वार्धक्य क्या होता है ,नहीं जानते । जवानी भी ढंग से कहाँ नसीब होती है इन्हें।दुनियाँ में जहां विवाह के योग्य रंग-रूप वाली सुशिक्षित तथा धनवान परिवार की लड़की खोजते है लोग , वहीं पहाड़िया की निगाह में लड़की की एकमात्र यग्यता है कि हरदिन चढ़-उतर कर पहाड़ पर पानी ला सकती है या नहीं ।
विज्ञान विषयक सीरियल था -टर्निंग प्वाइंट । जिसमें प्रश्नों के उत्तर देते थे प्रोफेसर यशपाल ।दुनिया के माने हुए साइंटिस्ट ।उनकी एक संस्था थी -भारत जनविज्ञान जत्था ।दिल्ली के दफ्तर में हमारी मुलाकात यशपाल साहब से हुई ।बात चीत में मैंने पहाड़िया की दुः स्थिति सुनाया ।फिर तो ऐसे पीड़ित ,वंचित मानव को नजदीक से देखने की उनकी इच्छा जाग्रत हुई । गोड्डा के सामाजिक एवं सुधिजनों के साथ मिलकर कार्यक्रम तय हुआ ।
प्रोफेसर यशपाल आये,प्रमण्डल स्तरीय कार्यशाला आयोजित हए ।दूसरे दिन पहाड़िया के बीच एक सभा में जब पहाड़ियों से बातचीत हुई,तो यशपाल साहब ने कहा – इनका भला कोई चाहता हो तो मुफ़्त में इन्हें कुछ भी देना बन्द करे।मुफ़्त खोरी की आदत लग चुकी इस कॉम को ।उन्होंने पहाड़ीयाओं को अपना को -ओपरेटिव बना कर कुछ सर्जनात्मक कार्य करने की सलाह दी ।
यह मुनासिब है कि पहाड़ की झूम खेती के अलावे बड़े पैमाने पर वहां औषधीय पौधों की खेती के प्रयास मुफीद सिद्ध होंगे ।इसके साथ ही उन प्राकृतिक सौंदर्य वाले क्षेत्रों में पर्यटन सम्मत सुविधाओं का जाल बिछाना अच्छा रहेगा । आदिम जनजाति के उत्थान हेतु सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए ।आज मोदी मन्त्रिमण्डल का व्यापक विस्तार हुआ है । यहां झारखण्ड में इतने मंत्री और उच्चाधिकारी हैं,पर कहाँ कौन सुंदरपहाडी के पहाड़ों की हालत जानने आते हैं ?कब और कैसे सुधरेगी पहाड़िया जनों की हालत ?