गदर एक प्रेम कथा 2
जिंदगी और मौत से जूझ रहा है हीरो संजीव
कहानी पूरी तरह गदर फ़िल्म पर आधारित है ,हीरो संजीव और हीरोइन नजमा है जो एक प्रेम की कहानी गढ़ दिया है इस पूरी कहानी को हम बताएंगे लेकिन पहले आप वर्तमान की कहानी से रूबरू हो लीजिये नायिका नजमा अपने पति संजीव को अपने घर बुलाती है और फिर पति की उसके गांव में ऐसी पिटाई की जाती है कि वो जिंदगी और मौत से जूझ रहा है ।
उसे गोड्डा सदर अस्पताल से रेफर कर दिया गया है ,नायिका के फोन पर हीरो आ तो जाता है लेकिन हीरोइन या अपने बच्चे को वापस लेकर नही जा पाता है इसी बीच हीरो संजीव कुमार को हीरोइन का घर रानीडीह में इतनी पिटाई की जाती है कि वो कोमा में चला जाता है ।
पुलिस को इस फ़िल्म यानी कहानी की पूरी जानकारी लिखित में आज से तीन महीने पूर्व से थी मगर पुलिस वर्तमान परिदृश्य में धार्मिक भावनाएं आहत न हो इसके लिए कानून की ओर से भी कोई पहल नही की थी ।
हीरो पति आज मौत से जूझ रहा है जिसके पीछे उसका एक मित्र और एक रिलेटिव दिल्ली से लेकर गोड्डा तक साथ दे रहे हैं ।आज हीरो की स्थिति गम्भीर है ।इसके लिए कहीं न कहीं जिला पुलिस को जिम्मेवार ठहराने से इनकार नही किया जा सकता है ।
हीरो संजीव कुमार के साथ जैसे ही ये घटना गोड्डा जिले के रानीडीह में घटा पुलिस तुरन्त अलर्ट हो गई रानीडीह से लेकर अस्पताल तक पुलिस छावनी में रही हीरोइन के पिता को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है ,लेकिन हीरो को अबतक इंसाफ नही मिल पाया है वो इस वक्त कोमा में है ।
इस कहानी में एक बच्चा भी है जो संजीव औऱ नजमा के इसी प्रेम कथा के बीच का है ,उसके ही धर्म परिवर्तन पर पूरी फिल्म टिकी हुई है और बच्चा गायत्री मंत्र शुद्ध शुद्ध पढ़ता है ,बच्चे ने भी फ़िल्म की कहानी में अपना पक्ष टूटी फूटी भाषाओं में रखा है जो अपने पापा संजीव कुमार के साथ बातचीत के दौरान का है ।
अब चलते हैं तीन माह पूर्व …
तीन माह पूर्व ग़दर:एक प्रेम कथा-2
अवैध दस्तावेजों के साथ वैध रिश्ते को बचाने की कवायद!
सन्नी देओल की फ़िल्म ग़दर एक प्रेम कथा में जब हीरो अपनी पत्नी को उसके पिता के भरोसे पर मायके भेज देता है लेकिन उसके पिता द्वारा जबरदस्ती बेटी को रख लिया जाता है और पुराने सारे रिश्तों को भूल जाने की हिदायत दे दी जाती है तब हीरो अपने बेटे के साथ पाकिस्तान जाकर उसे लाने के लिए जी जान लगा देता है।
अंत में सबकुछ ठीक भी हो जाता है लेकिन इस पार्ट 2 की कहानी उस फिल्म की कहानी से कुछ मिलती भी है और कुछ हट कर भी है।
इस फ़िल्म में हीरो बुंदेलखंड(यूपी) का रहने वाला संजीव कुमार है और नायिका नजमा रानीडीह गांव जिला गोड्डा(झारखण्ड) की।
लगभग 10 साल पहले यहाँ का एक परिवार दिल्ली गया हुआ था वहां ये नायिका नजमा भी गयी हुई थी। हीरो के घर में ही भाड़े पर रहने वाला ये परिवार काफी हिलमिल गया था।
इसी बीच नायिका को जो पूर्व से ही तलाकशुदा थी उसका दिल हीरो पर आ गया। हीरो भी पारिवारिक बंधन में बँधा हुआ था लेकिन कमबख्त इश्क़ ने सब कुछ भूला दिया।
बाद में इस रिश्ते के खुलासा होने के बाद वो परिवार दिल्ली से वापस गोड्डा आ गया लेकिन इश्क़ और आशिक दोनों बिछड़न की आग में जल रहे थे।
अंत मे इश्क़ की इम्तेहान की घड़ी आई और नायिका नजमा ने अपने दर्द और जुदाई की दास्तान फोन पर सुनाई। आशिक भागते हुए गोड्डा पहुँचा और लोक लाज,परिवार एवम धर्म की भी परवाह ना करते हुए अपनी नायिका को समाज के सामने अपना लिया। दो समुदाय के बीच मे कुछ लोग विरोध में खड़े हुए तो कुछ लोग समर्थन में भी आये।
खैर शादी हो गयी और लड़की नजमा से गीता बन गयी। इस बीच कई साल बीत गए। दिल्ली में घर और पति की सरकारी नौकरी जो मायने रखता था।
नायिका का आनाजाना अपने मायके से बना रहा जो कुछ लोगों को (धर्म के ठेकेदारों) अखरता था। इस बार भी पिछले माह ये परिवार दिल्ली से गोड्डा आया और नायिका के घर वाले उसे अपने घर ले गए।
शादी के 8-9 साल बाद अब फिर परिवार वालों को अपना धर्म याद आने लगा और नायिका नजमा अपने पति संजीव के साथ जाने को इनकार कर रही है।
पत्नी संजीव के साथ 5 साल का बेटा भी है जिसे उसकी माँ ने रख लिया है।
नायक पिछले 10 दिनों से गुहार लगा रहा है लेकिन कोई भी हल नही निकल रहा है।
अंतिम सहारा पुलिस प्रशासन ही है लेकिन ये प्रमाणित करना कि नजमा कैसे गीता बनी ये टेढ़ी खीर है। नायिका नजमा के पूर्व का निकाह और तलाक के कागजात भी मौजूद नही है।
आज नायक सिर्फ उम्मीद के सहारे ही गोड्डा में पड़ा हुआ है कि “शायद उसका प्यार वापस आ जाये”
प्यार को भूल जाने को भी तैयार है लेकिन अपने बगिया का फूल को कैसे भूल जाये। जो गायत्री मंत्र का पाठ फर्राटा पढा करता है उसे जबरन कुरान हाथ मे देने के लिए संजीव परेशान था ।
यह कहानी एक वास्तविक जीवन जीने वाले की है ।
गतांक से आगे….
अशरफ अली के कहने पर पाकिस्तान में मजलिस लगी हुई है। सबों के सामने हीरो, हीरोइन और उसका बेटा खड़ा है
वापस जाने के एवज में नायिका का बाप हीरो को मानसिक रूप से प्रताड़ना देता है।
वो हीरो से इस्लाम जिंदाबाद कहने को बोलता है।
हीरो इस्लाम जिंदाबाद बोलता है।
नायिका का पिता पाकिस्तान जिंदाबाद बोलने को कहता है।
हीरो पाकिस्तान जिंदाबाद भी बोल देता है।
अब जब इसके बाद भी मन नही भरा तब जज्बात से खेलते हुए हिंदुस्तान मुर्दाबाद बोलने को कहता है।
ये सुनते ही हीरो को मिजाज आक्रोशित हो जाता है और वो कहता है आपका पाकिस्तान जिन्दाबाद है इससे मुझे कोई तकलीफ नही है लेकिन मेरा हिंदुस्तान जिंदाबाद था,जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा।
आज यहां भी यही परिस्थिति है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि हीरो संजीव की नायिका नजमा अपने पिता के पक्ष में है।
यहां सिनेमा की तरह ड्रामा बहुत ज्यादा तो नही है लेकिन नेपथ्य से आवाज आ रही है कि अगर अपनी फैमिली के साथ रहना चाहते हो तो तुम भले सुरेंद्र से सुलेमान मत बनो लेकिन बेटा को रोहन से रेहान बनाना ही होगा।
नजमा को गीता बना कर घर बसाने वाला इंसान किस उधेड़बुन में जी रहा है इसका अंदेशा किसी को नही है। सरकारी नौकरी छोड़कर अपने परिवार को बचाने की आस में दर दर भटक रहा है।
आज उसकी कहानी सुनने के बाद कुछ लोग उसके साथ खड़े है लेकिन वो इंसान खुद इतना परेशान है कि वो ये निर्णय नही ले पा रहा है कि वो क्या करे। पुलिस की शरण में जाये , अदालत से गुहार लगाये या पंचायती कर मामले का निबटारा करे।
दिल्ली में नौकरी करते हुए यहाँ केस लड़ना ये भी सम्भव नही है और बेटा,पत्नी को छोड़ कर एक हारे हुए जुआरी की तरह लौट कर जाना भी गवारा नही है।
तनाव में उसने यहां तक कह दिया कि अगर सबकुछ हारा हुआ नजर आएगा तो उसके ही घर के सामने जहर खा कर जान दे दूँगा लेकिन रोहन को रेहान बना कर नही ले जाऊँगा।
राधा बनी रजिया को अगर यहां रहना है तो वो रहे लेकिन वो अपने बेटे को लेकर जाएगा।
लेकिन अंत मे कहानी अब संजीव के जीवन से जुड़ चुकी है और अब वो जिंदगी और मौत से जूझ रही लेकिन अब उसकी नायिका भी कैमरे से मुह चुरा रही है कुछ भी बोलने से इनकार कर रही है ।
फिलहाल हीरो संजीव के साथ हुई मारपीट के मामले में हीरोइन नजमा के पिता गिरफ्तार हो चुके हैं ।पुलिस का कहना है मामले की जांच कर आगे की कार्रवाई करेंगे ।