ये चंद लकड़ियों ना गिनो साहब! ये हमारे शाम के भोजन की आश है।। बूंद-बूंद कर टपकती नल धारा हमारे कंठ की बुझाती प्यास है।। हम तो कैसे भी जी लेंगे साहब ! समय बदलेगा कभी तो हमारी…आने वाली पीढियों…. की दशा बदलेगी,यही विस्वास है।
विद्यासागर चौबे/जिले का पहाड़िया गांव अनामू जहाँ की आबादी महज 30-35 घरों की है। जो ना सिर्फ दुर्गम टीले और कटीली पहाडियों पर स्थित है, बल्कि बोआरीजोर प्रखंड मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर है और मुख्य मार्ग से केवल 20-25 मीटर के फासले पर स्थित है, बावजूद यह गांव विकास की रोशनी से कोसो दूर है।
पीने का पानी तो किसी तरह ठक ठक करती नले उगल देती है, लेकिन नहाने-धोने’ कृषि कार्य, तथा मवेशियों के पीने के लिए कोई जलस्रोत नही रहने से ‘बिन पानी सब सुन’ वाली कहावत यहां चरितार्थ है। ग्रामीणों की माने तो पानी के आभाव मे उनकी दिनचर्या मशक्क्त से कटती है। जलावन की लकड़ियों के जुगाड़ मे जंगलो की खाक छानना इनकी नियति है।
गांव के एक भी परिवार को उज्ज्वला योजना का लाभ नही मिला। मेसो योजना से मुर्गी पालन शेड संसाधन के आभाव मे ग्रामीणों का मुंह चिढ़ाती है। रोजगार का कोई प्रबंध नही है। जल के आभाव मे कृषि कार्य भगवान भरोसे है। पढ़े लिखे होने के वावजूद बेरोजगारी का दंश झेलते युवक विचौलियों के चंगुल मे फंसे हुए हैं ।
तत्कालीन विधायक ताला मराण्डी के प्रयास से पहुंच पथ तो गांव को मिल गया है, मगर गली-टोला आज भी नालियो मे तब्दील है। गाँव मे न आंगनबाड़ी है ना स्कूल। असनबोना मे आंगनबाड़ी रहने से टिकाकरण का समुचित लाभ गर्भवती और धातृ महिलाओं को नही मिल पाता है।
ग्रामीण निर्मल पहड़िया, मैसी पहड़िया, अन्ना मालतो बताते है कि गांव के पहाड़ी मे बड़ा झरना है जिसका पानी बहकर मंडरो इलाका की ओर चला जाता है, अगर इसका संचयन कर झरना का रुख हमारे गांव की ओर मोड़ दिया जाता तो खेती-बाड़ी आसान हो जाती। ग्रामीणों ने इस आशय का आवेदन प्रखंड से लेकर जिला प्रशासन तक को कई मर्तवा दिया, स्थानीय जन प्रतिनिधि से भी गुहार लगाया लेकिन किसी ने कोई पहल नही की।
क्या कहते हैं अधिकारी :
प्रखंड के बीडीओ ने कहा कि अभी तक ऐसी शिकायत नही मिली है। मेसो द्वारा मुर्गी पालन शेड का लाभ और उज्ज्वला योजना से ग्रामीणों को गैस कनेक्शन का लाभ दिलाया जाएगा। खुद गाँव जाकर ग्रामीणों से मिलूंगा ।
सोमनाथ बनर्जी (बीडीओ बोआरीजोर प्रखंड)