बिल नहीं देने के कारण बिना माँ की बच्ची को अस्पताल ने रखा गिरवी!
जिप उपाध्क्षया की पहल पर पीड़ित पिता को मिली बच्ची!
समाज में कुछ ऐसी घटनाएं देखने को मिलतीहै जिससे मानवता शर्मसार हो जाती है! धरती का भगवान् कहे जाने वाला डॉक्टर आज अपनी कार्यशैली के कारण बदनाम हो रहा है! बीमार लोगों का अंग प्रत्यरोपण करते -करते ये लोग भी अपने ह्रदय का प्रत्यारोपण कर देते है तभी तो इंसानियत इनके चौखट पर रोती-गिड़गिड़ाती है और इन्हे सिर्फ पैसे की खनक सुनाई पड़ती है! पूरा सिस्टम कहीं ना कहीं बिक चूका है शायद इसी कारण एक गरीब इलाज़ के लिए सरकारी अस्पताल पहुँचता है लेकिन वहां के दलाल सिर्फ पैसों के लिए इंसानी शरीर का सौदा कर देते है!
रेफर हुआ मरीज भागलपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल के लिए निकलता है लेकिन 10 मिनट के बाद वो एम्बुलेंस गोड्डा के किसी प्राइवेट अस्पताल के सामने खड़ी हो जाती है और वहीँ से शुरू हो जाती है दलाली! मरीज के अंदर जाते ही परिजनों का दोहन शुरू हो जाता है! एम्बुलेंस ड्राइवर तुरंत अस्पताल प्रबंधन से पैसे लेकर चला जाता है!
विभागीय_नेटवर्क_का_शिकार
इसी नेटवर्क का शिकार गोड्डा प्रखंड के सुंडमारा गाँव का निवासी चन्दर हांसदा हो गया. पिछले माह की 23 तारीख को उसने अपनी गर्भवती पत्नी को सदर अस्पताल पहुँचाया लेकिन बाद में उसे रेफर कर दिया गया. दलाल इस बात को जैसे ही जाने उसे गोड्डा हॉस्पिटल(प्राइवेट) में पहुंचा दिए. बेहोशी की हालत में ही उसकी पत्नी शुकुमणि हांसदा का ऑपरेशन किया गया. उसे बेटी हुई लेकिन उसकी स्थिति बिगड़ती ही चली गयी. इधर बच्ची भी कमजोर थी. उसे NICU में रखा गया. 28 अक्टूबर को माँ की मौत हो गयी. तब तक बिल बढ़ कर 75 हजार से ज्यादा हो गया. मौत के बाद प्रबंधक ने पीड़ित से शर्त रखी की बाकी के पैसे लेकर आओ और अपनी बच्ची को ले जाओ!
- जिप उपाध्यक्षा की पहल पर कैद से छुटी बच्ची
आज तीन सप्ताह के बाद जब पैसे जमा नहीं हो पाया तब चन्दर हांसदा जिप उपाध्यक्षा लक्ष्मी चक्रवर्ती से मिला. जिप उपाध्यक्षा इस मामले को गंभीरता से लेते हुए खुद से अस्पताल पहुंची और अस्पताल प्रबंधक से मिलकर मामले को उठाया. बाद में प्रबंधक ने 5000 रूपये लेकर बच्ची को उसके पिता को सौप दिया!
अपने घर के जानवरों को बेचकर अपनी पत्नी का इलाज करा रहा चन्दर हांसदा आज पत्नी को खो चूका है! नवजात बच्ची अब तक कैद थी, गिरवी थी क्यूंकि उसकी जन्म का खर्च और उसकी मृत माँ के इलाज़ की राशि उसका पिता नहीं चूका सका था! इससे ज्यादा बदनसीबी उस बच्ची की क्या हो सकती है?
इस मुद्दे पर जब अस्पताल प्रबंधक लबरेज आलम से पूछा गया तो उन्होंने बताया की ऐसी कोई बात नहीं है! बेटी की तबियत ठीक नहीं थी जिस कारण उसे इलाज़ के लिए रखा गया था! आरोप झूठा है!
“बेटी बचाओ…. बेटी पढ़ाओ” आखिर ऐसे माहौल में भला कैसे सफल हो सकेगा! क्या मोदी जी का सपना भाजपा शाषित राज्य में ही टूट जाएगा!