झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी आज संघर्ष कर रहे है! मरांडी जी की छवि साफ़ है और आदिवासी तथा दिकू में भी उनकी काफी पैठ है।
झारखण्ड की राजनीति में बदलाव भी चाहते है लेकिन इस लड़ाई में उन्हें वफ़ा से ज्यादा बेवफाई ही मिली है!
कार्यकर्त्ता हमेशा वफादार रहे लेकिन नेता,सांसद या विधायक बनते ही बेवफा हो गए. एक गाना उन पर सही जमता है ,भँवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुवंर ।
इस बार मोदी लहर में वो अपनी भी सीट नहीं बचा सके,हर बार जीते हुए विधायक दगा कर जाते है उसके बावजूद वो आज भी भाजपा के करीब नहीं गए जबकि सत्ता के गलियारों से हमेशा ही ये आवाज सुनाई देती रही कि भाजपा के कई नेताओं के संपर्क में है बाबूलाल!
अगर इतिहास हो देखेंगे तो एक बात सभी लगभग राज्यों में सामान मिलेगी की भाजपा से कई पूर्व मुख्यमंत्रियों ने बगावत कर एक नहीं पार्टी बनाई लेकिन वो पार्टी भाजपा के खिलाफ कहीं भी खड़ी नहीं हो सकी. दिल्ली में साहेब सिंह वर्मा ने बगावत की लेकिन आज उनका पुत्र भाजपा से सांसद है।
यु.पी में कल्याण सिंह विरोध किये लेकिन आज केंद्र में भाजपा सरकार के कारण राज्यपाल है और उनका पुत्र भाजपा से जीता हुआ नेता. गुजरात में केशुभाई पटेल भी अलग हो गए लेकिन आज उनका बेटा भाजपा में है. शंकर सिंह बाघेला भी घर वापसी के फिराक में है।
मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी भाजपा छोड़ा लेकिन आज भाजपा के टिकट से जीत कर केंद्र में मंत्री है।
दक्षिण भारत के कर्नाटक में भाजपा का परचम लहराने वाले येदुरप्पा ने भी बगावत किया लेकिन जमीन पर आ गए. आज पुनः भाजपा के सांसद है।
इतने उदाहरण के बावजूद भी अगर बाबूलाल भाजपा के खिलाफ खड़े है और दुरी बना कर रखे हुए है तो जरूर उनके अंदर हिम्मत है या फिर कोई मज़बूरी,
आज बाबूलाल जी भाजपा के खिलाफ झामुमो से भी हाथ मिलाने को तैयार है जबकि झामुमो के हेमंत सोरेन ने ही बयान दिया था की भाजपा झारखण्ड में एवीएम और जेवीएम के सहयोग से जीतती है।
झारखण्ड में गठबंधन की रूप-रेखा तैयार हो रही है लेकिन ये 2019 के लोक सभा के रिजल्ट के बाद ही फलीभूत होगा!
अभिजीत तन्मय